ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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भारत में युद्ध आधारित फिल्में सिर्फ मनोरंजन का जरिया नहीं होतीं, बल्कि भावनाओं, बलिदान और देशभक्ति का माध्यम बन जाती हैं। ऐसी ही फिल्म है ‘120 बहादुर’, जो 1962 की रेजांग ला की ऐतिहासिक लड़ाई पर आधारित है। यह कहानी उन 120 भारतीय सैनिकों की है, जिन्होंने असंभव परिस्थितियों में लड़कर अद्भुत वीरता दिखाई। फिल्म की आत्मा मजबूत है, लेकिन इमोशनल कनेक्ट कुछ जगहों पर कमजोर पड़ जाता है।
पहला हाफ: धीमी रफ्तार में कहानी की शुरुआत
फिल्म की शुरुआत रेडियो ऑपरेटर (स्पर्श वालिया) की यादों से होती है। उनके नजरिए से हम सैनिकों के परिवार, उनके रिश्तों और उनकी भावनाओं को देखते हैं। निर्देशक रजनीश घई ने कोशिश की है कि दर्शक सैनिकों की मानव-भावनाओं से जुड़ें, लेकिन स्क्रीनप्ले उतना प्रभावशाली नहीं बन पाता।
फरहान अख्तर के किरदार शैतान सिंह भाटी और राशि खन्ना वाला गाना कहानी के प्रवाह को रोक देता है। पहला हाफ यह तय नहीं कर पाता कि यह भावनाओं पर केंद्रित फिल्म है या युद्ध पर। हालांकि, यह बात सराहनीय है कि फिल्म केवल एक हीरो नहीं, बल्कि सभी 120 सैनिकों को बराबर जगह देती है।
सिनेमैटोग्राफी: फिल्म का सबसे बड़ा आकर्षण
फिल्म का सबसे खूबसूरत हिस्सा है तेत्सुओ नागाटा की सिनेमैटोग्राफी। लद्दाख की कठोर और खूबसूरत लोकेशन को जिस तरह कैद किया गया है, वह दर्शकों को सीधे युद्धभूमि में ले जाता है। असली लोकेशन पर शूटिंग ने फिल्म को असाधारण रियलिज्म दिया है। युद्ध के दृश्य रॉ, भावुक और बेहद असरदार हैं। कैमरे का काम दर्शकों को पूरी तरह जोड़कर रखता है।
दूसरा हाफ: फिल्म अपनी असली ताकत दिखाती है
जैसे ही फिल्म दूसरे भाग में युद्ध के दृश्य दिखाती है, कहानी पकड़ में आ जाती है। भारतीय और चीनी सैनिकों की भिड़ंत बेहद प्रभावशाली है। सैनिकों का जज्बा, उनके बलिदान और आखिरी सांस तक लड़ने की इच्छा दिल को छू जाती है।
एक सीन भावनाओं को चरम पर ले जाता है—जब चीनी सैनिक भी शैतान सिंह को सम्मान देते हैं। इसके अलावा चॉकलेट वाला सीन फिल्म को गहरा अर्थ देता है, जो युद्ध की मानवीयता को सामने लाता है।
अभिनय: सपोर्टिंग एक्टर्स चमके, लीड थोड़ा फीका
फरहान अख्तर ने कोशिश तो की है, लेकिन उनका हाई-क्लास हिंदी उच्चारण और पॉलिश्ड डायलॉग डिलीवरी इस रॉ मिलिट्री किरदार पर उतना फिट नहीं बैठता। न उनका लहजा और न उनकी कद-काठी शैतान सिंह से मेल खाती है। वे क्लाइमेक्स में बेहतर दिखते हैं, लेकिन तब तक बाकी कलाकार काफी आगे निकल चुके होते हैं।
स्पर्श वालिया, अंकित सिवाच, विवान भटेना और बाकी कलाकारों ने शानदार अभिनय किया है। कई जगह लगता है कि वही फिल्म के असली हीरो हैं।
देखें या नहीं?
‘120 बहादुर’ एक भावुक, साहसी और विजुअली मजबूत फिल्म है। यह महान नहीं, लेकिन अच्छी फिल्म है, जो 120 बहादुर सैनिकों के बलिदान को सम्मान देती है। इमोशनल गहराई कुछ जगह कम है, लेकिन युद्ध दृश्य और कहानी का मूल संदेश असर छोड़ते हैं।
हम इसे 3 स्टार देते हैं।
एक बार जरूर देखी जाने वाली फिल्म—क्योंकि असली हीरो पर्दे पर नहीं, सरहद पर खड़े होते हैं।
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