संसद से कानून तक: बिल बनने की पूरी प्रक्रिया सरल भाषा में समझें

भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहाँ जनता की आवाज़ संसद के ज़रिए कानूनों में बदलती है। संसद के दो सदन हैंलोकसभा और राज्यसभा। कोई भी बिल (विधेयक) तभी कानून बन सकता है जब वह दोनों सदनों से पास हो जाए और अंत में राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाए। यह पूरी प्रक्रिया चार चरणों से होकर गुजरती है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।

1. संसद में बिल की शुरुआत

सबसे पहले किसी एक सदनलोकसभा या राज्यसभामें बिल पेश किया जाता है। बिल दो प्रकार के होते हैं:

सरकारी बिल (Government Bill): जिसे सरकार पेश करती है।

निजी सदस्य बिल (Private Member Bill): जिसे किसी सांसद द्वारा पेश किया जाता है।

देखिये, अगर बिल सरकारी है तो इसे पहले मंत्रिमंडल की मंजूरी लेनी होती है। इसके बाद संबंधित मंत्री या सांसद इसे सदन में प्रस्तुत करता है। इस चरण में बिल का केवल परिचय होता है, ताकि सभी सदस्य समझ सकें कि यह किस विषय से जुड़ा है।

कई बार बिल को जनता के सामने भी रखा जाता है ताकि लोग सुझाव दे सकें। इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया का एक अहम हिस्सा माना जाता है।

2. विचार-विमर्श और समिति की भूमिका

बिल पेश होने के बाद उस पर गहन चर्चा होती है। सांसद बिल के प्रावधानों पर अपने-अपने विचार रखते हैं। अगर किसी बिल में बहुत तकनीकी या जटिल मुद्दे होते हैं तो उसे संसदीय समिति को भेजा जाता है।

समिति विशेषज्ञों और हितधारकों से राय लेती है और देखती है कि बिल में कहीं कोई कमी तो नहीं है। समिति की रिपोर्ट आने के बाद उसमें जरूरी संशोधन किए जाते हैं। यह चरण बेहद महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इसी में तय होता है कि बिल व्यावहारिक है या नहीं।

3. मतदान की प्रक्रिया

जब चर्चा पूरी हो जाती है, तो बिल पर मतदान कराया जाता है।

साधारण बिलों को पास करने के लिए साधारण बहुमत चाहिए होता है। यानी उपस्थित और मतदान करने वाले सांसदों में से बहुमत का समर्थन मिलना चाहिए।

लेकिन अगर बात संविधान संशोधन बिल की हो, तो इसके लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।

यदि बिल एक सदन से पास हो जाता है, तो उसे दूसरे सदन में भेजा जाता है। वहाँ भी वही प्रक्रिया दोहराई जाती हैचर्चा और मतदान।

4. राष्ट्रपति की स्वीकृति

जब बिल दोनों सदनों से पास हो जाता है, तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते हैं:

बिल को मंजूरी देना।

बिल को वापस भेजना (सिर्फ सामान्य बिल के मामले में)

बिल को कुछ समय के लिए रोकना।

अगर राष्ट्रपति बिल को वापस भेजते हैं और संसद उसे फिर से पास कर देती है, तो राष्ट्रपति को अंततः मंजूरी देनी ही पड़ती है।

5. कानून का लागू होना

आपको बता दें, राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद बिल कानून बन जाता है। इसे गजट (सरकारी अधिसूचना) में प्रकाशित किया जाता है और पूरे देश में लागू कर दिया जाता है।

बहरहाल, कानून बनाने की यह प्रक्रिया दिखाती है कि भारत में लोकतंत्र सिर्फ एक शब्द नहीं बल्कि एक जीवंत व्यवस्था है। संसद में बिल पेश होने से लेकर उसके कानून बनने तक हर चरण में जनता की राय, सांसदों की बहस और विशेषज्ञों की सलाह शामिल होती है। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी कानून बिना सोच-समझे या मनमाने ढंग से लागू हो।

इसी प्रक्रिया की वजह से हमारे देश में बने कानून व्यापक विचार-विमर्श का परिणाम होते हैं। यह लोकतंत्र की ताकत और जनता की भागीदारी का बेहतरीन उदाहरण है।


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