भारत की युवा ताकत बनी चिंता की वजह! क्या चीन-जापान जैसी हालत की ओर है देश?

"जिसका कोई नहीं होता, उसका वक्त होता है", ये कहावत तो आपने जरूर सुनी होगी, और हो सकता है कि कभी किसी को ज्ञान के तौर पर कहा भी हो।

एक जमाने में भारत के डेमोग्राफिक डिविडेंड पर भी ये खूब जमी थी, लेकिन अब तस्वीर बदलती नजर आ रही है।

जिस युवा शक्ति को भारत की सबसे बड़ी ताकत बताया गया, अब वही देश के लिए एक नई टेंशन का सबब बनती दिख रही है।

दरअसल, भारत की प्रजनन दर (Total Fertility Rate - TFR) तेजी से घट रही है और ये अब 2.1 के रिप्लेसमेंट लेवल से नीचे 1.9 तक आ पहुंची है।

अगर यही ट्रेंड जारी रहा, तो भारत भी कहीं चीन और जापान की तरह बुजुर्गों के देश में तब्दील न हो जाए।


भारत की आबादी अब भी विशाल, पर TFR में गिरावट है बड़ी चेतावनी

संयुक्त राष्ट्र की हालिया जनसांख्यिकी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की आबादी 2024 में 146.39 करोड़ तक पहुंच गई है।

पर साथ ही इस रिपोर्ट ने आगाह किया है कि भारत की कुल प्रजनन दर 1.9 पर आ चुकी है।

यानी महिलाएं अब अपनी प्रजनन आयु में औसतन 2 से कम बच्चों को जन्म दे रही हैं।

इसका सीधा असर आने वाले वर्षों में युवा आबादी के घटने और बुजुर्गों की संख्या बढ़ने के रूप में दिख सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आज की चुप्पी, कल का शोर भी बन सकती है।


चीन-जापान से मिले सबक: वहां क्या हुआ?

भारत से कुछ दशक आगे चीन और जापान पहले ही इस जनसांख्यिकी संकट से जूझ रहे हैं:


  • चीन की TFR अभी 1.18 पर है। सरकार इसे बढ़ाने के लिए "तीन बच्चे" नीति तक लागू कर चुकी है, लेकिन युवा शादी करने और बच्चे पैदा करने से कतरा रहे हैं।


  • जापान की स्थिति और भी खराब है, वहां TFR 1.15 तक गिर चुकी है। वहां 29.3% आबादी 65 साल या उससे ऊपर है, यानी हर तीसरा जापानी अब बुजुर्ग है।


  • चीन में 2040 तक 40 करोड़ से अधिक बुजुर्ग होने का अनुमान है। यही संकट भारत की तरफ भी बढ़ता दिख रहा है।


प्रजनन दर घट रही है, क्योंकि...

इस गिरती प्रजनन दर के पीछे कई सामाजिक-आर्थिक कारण हैं:


  • युवा अब शादी देर से कर रहे हैं, या कर ही नहीं रहे।

  • नौकरी, करियर और जीवनशैली प्राथमिकता बन चुके हैं।

  • महिलाओं की शिक्षा और रोजगार में भागीदारी बढ़ी है, जिससे परिवार की योजना बदली है।

  • शहरी जीवन में महंगाई और जगह की कमी भी परिवार को छोटा रखने का कारण बन रही है।


जैसा कि रिपोर्ट कहती है, "ये जनसंख्या संकट नहीं, असली संकट ‘कम इच्छित प्रजनन’ का है।”


क्या होता है TFR और क्यों है ये अहम?

TFR यानी Total Fertility Rate वो औसत संख्या है, जितने बच्चे एक महिला अपनी प्रजनन आयु में पैदा करती है। अगर TFR 2.1 हो, तो वो आबादी को स्थिर (replacement level) बनाए रखता है।

अगर TFR इससे नीचे चला जाए, तो धीरे-धीरे युवा आबादी घटने लगती है और बुजुर्ग आबादी बढ़ने लगती है।


भारत में अभी कितनी युवा आबादी?

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार:


  • 0-14 आयु वर्ग: 24%

  • 10-19 आयु वर्ग: 17%

  • 10-24 आयु वर्ग: 26%

  • कामकाजी आयु (15-64): 68%

  • बुजुर्ग (65+): 7%


ये आंकड़े बताते हैं कि भारत अभी युवा है, लेकिन ये अवस्था स्थायी नहीं है। "जो चढ़ता है, वो उतरता भी है", और यही बात डेमोग्राफिक डिविडेंड पर भी लागू होती है।


2047 का सपना और जनसांख्यिकीय जोखिम

ध्यान देने वाली बात ये भी है कि प्रधानमंत्री मोदी का "2047 तक विकसित भारत" का सपना इसी युवा शक्ति पर आधारित है।

लेकिन अगर ये युवा शक्ति सिकुड़ने लगी, तो सपना हकीकत बनने से पहले ही धुंधला पड़ सकता है।

“कल जो ताकत थी, आज वो चिंता बन गई है”, इसलिए वक्त रहते नीति में बदलाव, प्रजनन को प्रोत्साहन, और फैमिली फ्रेंडली वेलफेयर स्कीम्स जरूरी हो गई हैं।


अब जरूरत है ‘संख्या संतुलन’ की, न कि सिर्फ नियंत्रण की

भारत ने दशकों तक जनसंख्या नियंत्रण पर ज़ोर दिया, अब वक्त है जनसंख्या संतुलन की नीति की ओर बढ़ने का।

जैसा कि रिपोर्ट कहती है, "अब असली चुनौती ये है कि लोग जितने बच्चे चाहते हैं, उतने पैदा कर भी पा रहे हैं या नहीं।"

अगर ये ध्यान में नहीं रखा गया, तो भारत का भविष्य चीन-जापान जैसे संकटों की ओर जा सकता है, जहां बुजुर्ग तो बहुत होंगे, पर उन्हें संभालने वाला युवा वर्ग शायद नहीं।

आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ।

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