क्या राफेल को पीछे छोड़ेगा कावेरी इंजन? स्वदेशी ताकत की नई उड़ान

भारत में रक्षा क्षेत्र की आत्मनिर्भरता की बात हो और उसमें कावेरी इंजन का जिक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता।

1989 में शुरू हुआ ये प्रोजेक्ट अब फिर चर्चा में है, खासकर राफेल के सोर्स कोड विवाद के बाद।

इस इंजन को लेकर सोशल मीडिया पर #FundKaveriEngine ट्रेंड कर रहा है और देश की जनता चाहती है कि सरकार इस अधूरे सपने को साकार करे।


कावेरी इंजन क्या है?

कावेरी इंजन एक स्वदेशी टर्बोफैन इंजन प्रोजेक्ट है, जिसे भारत के गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टैब्लिशमेंट (GTRE) ने तैयार किया है।

GTRE, DRDO की एक प्रयोगशाला है और इसका लक्ष्य था एक ऐसा इंजन बनाना जो 81-83 kN थ्रस्ट देता हो। इसे शुरू में LCA तेजस के लिए डिजाइन किया गया था।


शुरुआत शानदार, लेकिन रास्ता कठिन

प्रोजेक्ट की शुरुआत 1989 में हुई। भारत चाहता था कि लड़ाकू विमानों में विदेशी इंजनों पर निर्भर न रहना पड़े।

लेकिन इस इंजन को बनाने के लिए धातु विज्ञान, एयरोथर्मल डायनेमिक्स, कंट्रोल सिस्टम जैसी जटिल तकनीकों की जरूरत थी।

1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद, पश्चिमी देशों ने भारत पर कई तकनीकी प्रतिबंध लगाए।

भारत को सिंगल-क्रिस्टल ब्लेड, विशेष मिश्रधातु और उच्च तापमान झेलने वाले मैटेरियल नहीं मिले।

फंडिंग की कमी, उच्च तकनीकी संसाधनों की अनुपलब्धता और विदेशी मदद में आनाकानी के कारण प्रोजेक्ट बार-बार अटकता गया।


तेजस में नहीं मिल पाया मौका

शुरुआत में कावेरी को तेजस फाइटर जेट में लगाया जाना था। लेकिन कावेरी इंजन उस स्तर का प्रदर्शन नहीं कर पाया जो तेजस के लिए आवश्यक था। नतीजतन, भारत को अमेरिकी GE F404 इंजन का सहारा लेना पड़ा।


फिर से जिंदा हुआ प्रोजेक्ट

हाल के वर्षों में भारत ने ‘मेक इन इंडिया’ और आत्मनिर्भर भारत जैसी योजनाओं को बढ़ावा दिया है। इसका असर कावेरी इंजन पर भी पड़ा।

अब GTRE इसका ड्राई वैरिएंट यानी बिना-अफ्टरबर्नर इंजन UAV, UCAV (घातक) और AMCA जैसे भविष्य के विमान कार्यक्रमों के लिए विकसित कर रहा है।

GTRE ने बताया कि, ड्राई कावेरी में अब तक की सारी तकनीकी खामियों को दूर किया गया है। इंजन को कठोर परीक्षणों से गुजारा गया और इसने शानदार प्रदर्शन किया है।

इंजन में लगाया गया उच्च क्षमता का फैन खासतौर पर 13-टन वज़नी RSPA (Remotely Piloted Strike Aircraft) के लिए विकसित किया गया है।


ऑपरेशन सिंदूर और जियो-पॉलिटिकल ज़रूरत

ऑपरेशन सिंदूर में जब भारतीय लड़ाकू विमान दुश्मन की सीमा में घुसकर लौटे, तब सबकी निगाहें उनके शानदार परफॉर्मेंस पर टिक गईं। अब देश महसूस कर रहा है कि स्वदेशी तकनीक ही असली ताकत है।

भारत-चीन सीमा पर तनाव, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बिगड़े वैश्विक समीकरण और विदेशी सप्लाई चेन की अनिश्चितता ने स्वदेशी इंजन की ज़रूरत को और भी जरूरी बना दिया है।


राफेल और सोर्स कोड विवाद

हाल ही में भारत ने फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमान का 'सोर्स कोड' मांगा ताकि उसमें स्वदेशी हथियार, जैसे अस्त्र मिसाइल, जोड़े जा सकें।

लेकिन डसॉल्ट एविएशन और सैफरन जैसी फ्रांसीसी कंपनियों ने इसे साझा करने से मना कर दिया।


सोर्स कोड क्या होता है?

ये एक प्रकार की सिस्टम की निर्देश पुस्तिका है, जो बताता है कि विमान का हर हिस्सा कैसे काम करेगा, जैसे रडार कैसे स्कैन करेगा, मिसाइल कब फायर होगी आदि।

अब चूंकि भारत को ये कोड नहीं मिला, इसलिए भविष्य में स्वदेशी इंजन का होना जरूरी हो गया है, ताकि भारत अपने हथियारों, सॉफ्टवेयर और अपडेट्स को खुद नियंत्रित कर सके।


क्या कावेरी राफेल के लायक है?

अभी नहीं, लेकिन भविष्य में 90 kN थ्रस्ट की क्षमता हासिल करने के बाद, ये AMCA जैसे फाइव्थ-जेनरेशन विमानों या भविष्य के भारतीय लड़ाकू जेट्स के लिए उपयुक्त हो सकता है।

अगर ये लक्ष्य पूरा होता है, तो भारत राफेल जैसे विमानों के लिए स्वदेशी इंजन विकल्प भी तैयार कर सकता है।


अभी मामले में क्या हो रहा है?

सरकार ने DRDO को हर साल 100 इंजन तक उत्पादन का बजट मंजूर किया है। GTRE इस प्रोजेक्ट को फिर से नई जान दे रहा है।

सोशल मीडिया पर जनता भी अब साथ है, #FundKaveriEngine ट्रेंड कर रहा है और सरकार से फुल-स्पीड फंडिंग की मांग हो रही है।

आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ।

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