ओडिशा का बालासोर जिला, जून की गर्म दोपहर, और एक स्थानीय थाने की दीवारों के भीतर दबी हुई वो सच्चाई, जिसने कानून-व्यवस्था के पूरे ढांचे पर सवाल खड़ा कर दिया है।यहां भोगराई थाना में एक युवक को दो दिन तक बिना एफआईआर दर्ज किए, लोहे की जंजीरों में बांधकर रखा गया। न चार्जशीट, न कोई आदेश, बस पुलिसिया मनमानी और कथित कानून का नंगा नाच।पीड़ित का नाम, कार्तिक। जुर्म, एक बाइक के लेनदेन में उलझा विवाद। सजा, दो दिन की कैद और बेड़ियों में बंधी इज्जत।मामला बाहर तब आया, जब पीड़ित की पत्नी ने हार मानने की बजाय स्थानीय भाजपा नेता अशीष पात्रा से मदद मांगी।आशीष ने न केवल ये बात सांसद प्रताप सारंगी तक पहुंचाई, बल्कि खुद सुनिश्चित किया कि इस अन्याय के खिलाफ कार्रवाई हो।सांसद का थाने में अचानक पहुंचना बना निर्णायक मोड़गुरुवार को जब सांसद सारंगी भोगराई के दौरे पर पहुंचे, तो उन्होंने बिना किसी सूचना के थाने का रुख किया।वहां का दृश्य देखकर वह खुद चौंक उठे, कार्तिक को जंजीरों में जकड़ा हुआ पाया। सांसद ने तुरंत बालासोर एसपी राज प्रसाद को वीडियो कॉल कर थाने के भीतर की सच्चाई सामने रखी।सांसद के हस्तक्षेप के बाद तुरंत कार्तिक को मेडिकल जांच के लिए भेजा गया और रिहा कर दिया गया।पुलिस की तरफ से जो सफाई आई, वो और भी शर्मनाक थी, “स्टाफ की कमी थी, इसलिए बांधना पड़ा।”अमानवीयता पर सफाई का चोलाथाना प्रभारी बलभ साहू की तरफ से दी गई ये दलील, न केवल कानून के खिलाफ है, बल्कि सांसद सारंगी के शब्दों में, “पूरी तरह असंवैधानिक और अमानवीय कृत्य है।” उन्होंने ये भी बताया कि इससे पहले भी भोगराई थाना में इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं और वो इन्हें पहले भी उजागर कर चुके हैं।जैसे ही बात ने तूल पकड़ा, ओडिशा के डीजीपी ने तत्काल प्रभाव से थाना प्रभारी को सस्पेंड कर दिया।लेकिन अब सवाल सिर्फ सस्पेंशन का नहीं है, सवाल पुलिस की मानसिकता का है, जो कानून की बजाए मनमानी पर चलती है।कानून की कुर्सी पर 'थानेदारी का आतंक' क्यों बैठा है?एक आम नागरिक को बिना एफआईआर, बिना कोर्ट वारंट, दो दिन तक जंजीरों में रखना न सिर्फ भारतीय संविधान की धज्जियां उड़ाना है, बल्कि ये मानवाधिकारों के मुंह पर तमाचा है।क्या यही है ‘जनसेवा’? क्या यही है ‘कानून का राज’? पीड़ित को अब मिलेगा इंसाफ? या फिर यही मामला अगले हफ्ते भुला दिया जाएगा?सवाल ये भी है कि क्या कार्तिक जैसे पीड़ित को इस ‘अमानवीय’ अनुभव के लिए कोई न्यायिक राहत मिलेगी? क्या उसकी पत्नी की बहादुरी और एक सांसद का सीधा हस्तक्षेप ही आखिरी उम्मीद रह गया है?जो तस्वीरें और रिपोर्ट्स सामने आई हैं, वो एक व्यवस्था की उस सच्चाई को उजागर करती हैं जिसे आम जनता ‘पुलिस स्टेशन’ के नाम से जानती है, जहां कई बार कानून से ज्यादा जोर वर्दी का चलता है।आखिर में यही है कि सांसद का एक बयान सब पर भारी, “अगर संविधान के रहते हुए भी कोई व्यक्ति बेड़ियों में जकड़ा जा सकता है, तो हमें सिर्फ पुलिस सुधार की नहीं, मानसिकता की भी जरूरत है।”बहरहाल, आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ। Comments (0) Post Comment