क्या आप जानते हैं कि भारत का पहला बैंक जब बना था, तब उसमें भारतीयों की एंट्री ही बैन थी?जी हाँ, सही पढ़ा आपने! आज भारत की बैंकिंग प्रणाली दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में एक महत्वपूर्ण आधार मानी जाती है।छोटे-छोटे गांवों तक पहुंच बनाने वाले बैंक और डिजिटल पेमेंट सिस्टम देश के हर नागरिक को फाइनेंशियल नेटवर्क से जोड़ते हैं।मगर एक समय ऐसा भी था जब भारत में बैंक की दुनिया शुरू हुई थी, और उसमें भारतीयों का घुसना तक मना था।चलिए, तो बिना देरी के आपको आज इस बैंक के इतिहास की पूरी कहानी बताते हैं, कैसे ये बैंक बना, किसने बनाया, इसमें भारतीय क्यों नहीं जा सकते थे, और आखिरकार कैसे इस पर ताला लग गया?बैंकिंग की शुरुआत: जब मुद्रा नहीं, सौदा चलता थाबैंकिंग का विचार उतना नया नहीं है जितना हम सोचते हैं। इतिहासकारों के मुताबिक, दुनिया में बैंकिंग की शुरुआत लगभग 2000 ईसा पूर्व मेसोपोटामिया से मानी जाती है।तब मंदिरों और महलों में अनाज और धातु जैसे सामानों को उधार देना आम था। भारत में भी प्राचीन काल में वैश्य और साहूकार वर्ग इसी प्रकार का वित्तीय लेन-देन करता था।लेकिन "आधुनिक बैंकिंग" की बात करें तो वो ईस्ट इंडिया कंपनी के दौर में भारत में दाखिल हुई।भारत का पहला बैंक - Bank of Hindostan (1770)भारत का पहला बैंक Bank of Hindostan था, जिसकी स्थापना 1770 में कोलकाता (तब का कलकत्ता) में हुई थी। इसे Alexander and Company नाम की एक अंग्रेजी फर्म ने स्थापित किया था।ये बैंक अंग्रेजी व्यापारियों और ब्रिटिश संस्थाओं को वित्तीय सेवाएं देने के लिए बनाया गया था।इस बैंक ने उस समय के अंग्रेजी व्यापारिक साम्राज्य को ऋण, जमा और बिल डिस्काउंटिंग की सुविधाएं दीं। लेकिन एक बड़ा फर्क ये था कि ये बैंक "भारतीय नागरिकों के लिए नहीं" था।क्यों बैन थी भारतीयों की एंट्री?अंग्रेजों का शासन उस वक्त पूरी तरह से व्यापारिक हितों से प्रेरित था। भारतीयों को किसी भी तरह की आर्थिक ताकत न मिले, इसके लिए व्यवस्था इस तरह बनाई गई थी:Bank of Hindostan सिर्फ अंग्रेजों और ब्रिटिश व्यापारिक समुदाय के लिए था। भारतीय नागरिकों को खाता खोलने, ऋण लेने या किसी भी सेवा का लाभ उठाने की अनुमति नहीं थी।इस बैंक को ब्रिटिश सत्ता और ईस्ट इंडिया कंपनी की वित्तीय जरूरतों के लिए "बैकबोन" की तरह विकसित किया गया था।इस प्रतिबंध का एक कारण ये भी था कि उस समय भारतीय जनता की बैंकिंग की समझ और साक्षरता बेहद सीमित थी।अंग्रेजों को भी डर था कि आम भारतीयों के शामिल होने से वित्तीय गड़बड़ी या डिफॉल्ट का जोखिम बढ़ सकता है।कैसे लग गया बैंक पर ताला?हालांकि बैंक ऑफ हिंदोस्तान ने शुरुआती दशकों में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन 1830 के दशक आते-आते ये गंभीर वित्तीय संकटों में फंस गया। इसके मुख्य प्रमोटर Alexander and Company की वित्तीय स्थिति बिगड़ने लगी।1832 में Alexander & Co. दिवालिया हो गई, और उसी साल Bank of Hindostan को स्थायी रूप से बंद कर दिया गया।इस बैंक की बंदी ने भारत में बैंकिंग प्रणाली के शुरुआती सफर को कुछ वर्षों के लिए रोक जरूर दिया, लेकिन ये अनुभव भारतीय बैंकिंग ढांचे के लिए एक सीख भी बन गया।इसके बाद कैसे बदला बैंकिंग का चेहरा?1806 में आया Bank of Calcutta (जो बाद में Imperial Bank और फिर State Bank of India बना), ये भारत के पहले स्थायी बैंकिंग ढांचे की शुरुआत मानी जाती है।इसके बाद भारत में कई "Presidency Banks" खुले, जैसे Bank of Bombay (1840) और Bank of Madras (1843)। धीरे-धीरे भारतीय नागरिकों को भी बैंकिंग सेवाओं का हिस्सा बनने का अवसर मिला।तो कुल मिलाकर, सादे और कम शब्दों में कहा जाए तो पूरी कहानी ये है कि Bank of Hindostan भारत में आधुनिक बैंकिंग का पहला कदम था, लेकिन इसकी बनावट ऐसी थी कि ये सिर्फ एक वर्ग विशेष के लिए था यानि ब्रिटिश और उनके व्यापारिक हित।तो आज जब हम बैंकिंग को लोकतांत्रिक और सर्वसुलभ मानते हैं, तब ये जानना जरूरी है कि एक समय ऐसा भी था जब भारतीय नागरिकों को अपने ही देश के बैंकों में घुसने की इजाजत नहीं थी।लेकिन समय बदला, व्यवस्था बदली और आज भारतीय बैंकिंग प्रणाली दुनियाभर में अपनी ताकत और गहराई के लिए जानी जाती है।आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ। Comments (0) Post Comment