सर चकरा जाएगा इस ऑटो वाले का बिज़नस आइडिया जान कर

मुंबई की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी और ट्रैफिक के बीच रोज़ाना हज़ारों ऑटो ड्राइवर सड़कों पर मेहनत करते नज़र आते हैं। किसी की दिनभर की कमाई 500 रुपये से ऊपर नहीं जाती, तो कोई 1000-1500 पर दिन खत्म करता है।

लेकिन इसी भीड़ में छुपा बैठा था एक ऐसा ऑटो ड्राइवर, जिसने बिना ऑटो चलाए एक ऐसा जुगाड़ खड़ा कर लिया था, जिससे वह महीने के लाखों रुपये छाप रहा था, वो भी पूरी सफाई से, बिना पसीना बहाए।

जी हाँ, बिल्कुल सही पढ़ा आपने। दरअसल, इस पूरे मामले की शुरुआत हुई अमेरिकी दूतावास के बाहर से, जहां हर दिन सैकड़ों लोग वीज़ा इंटरव्यू के लिए पहुंचते हैं। 

दूतावास के नियम बेहद सख्त होते हैं, मोबाइल, बैग, पर्स, कुछ भी अंदर ले जाना मना होता है, और यही वो गैप था जिसे एक चालाक ऑटो ड्राइवर ने अपनी ‘स्मार्ट स्कीम’ में बदल दिया।


'सर, बैग स्टोरेज उधर है।।। बस 1000 रुपये!'

पिछले हफ्ते इस कहानी का खुलासा किया वेन्यू मोंक (VenueMonk) के को-फाउंडर राहुल रुपाणी ने, जो खुद भी वीजा इंटरव्यू के लिए वहां पहुंचे थे।

उन्होंने बताया कि जब उन्हें दूतावास में बैग ले जाने से मना किया गया, तो वो असमंजस में खड़े थे।

तभी पास खड़ा एक ऑटो वाला उनके पास आया और बोला, "सर, बैग स्टोर करना है? कर देंगे… बस 1000 रुपये लगेंगे।"

राहुल को पहले ये मज़ाक लगा, लेकिन थोड़ी बातचीत के बाद उन्हें समझ आ गया कि यह एक पूरा 'सिस्टम' है।

उस ऑटो ड्राइवर ने न सिर्फ उन्हें जगह दिखाई, बल्कि बताया कि वह हर दिन दर्जनों, बल्कि सैकड़ों लोगों के बैग स्टोर करता है, हर बैग के बदले फिक्स रेट - ₹1000।


हर बैग से मोटी कमाई, बिना रजिस्ट्रेशन

सीधा गणित लगाया जाए तो अगर दिन के 100 बैग भी जमा हुए, तो एक दिन की कमाई ₹1 लाख। महीने में 25 दिन का भी कैलकुलेशन लगाया जाए, तो यह ₹25 लाख तक पहुंच सकता है।

हालांकि, राहुल के मुताबिक ये आंकड़ा महीने में ₹5-8 लाख के बीच रहता था। वजह साफ है, कोई ट्रांसपोर्ट कॉस्ट नहीं, कोई ईंधन खर्च नहीं और कोई मेहनत नहीं।

इस 'बैग स्टोरेज स्कीम' में खास बात यह थी कि अमेरिकी दूतावास के बाहर बैग जमा करने की कोई आधिकारिक व्यवस्था नहीं थी। तो लोगों के पास ऑप्शन नहीं था। डर और मजबूरी में वे इस जुगाड़ को मानने को मजबूर हो जाते थे।


पुलिस की मिलीभगत से चलता था 'स्टोरेज धंधा'

दावा है कि यह पूरी व्यवस्था पुलिस की मिलीभगत से चल रही थी, क्योंकि इतने खुलेआम चल रहे धंधे को बिना संरक्षण के संभालना मुमकिन नहीं।

ऑटो ड्राइवरों ने दूतावास के सामने खुद का एक अनाधिकारिक ‘स्टोरेज नेटवर्क’ बना लिया था, जहां न कोई रसीद मिलती थी, न कोई सुरक्षा की गारंटी।


LinkedIn पोस्ट से हिला पूरा सिस्टम

राहुल रुपाणी ने जब यह पूरी घटना LinkedIn पर पोस्ट की, तो देखते ही देखते पोस्ट वायरल हो गई।

उद्योगपति हर्ष गोयनका ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी और ड्राइवर की 'एंटरप्रेन्योरशिप' की तारीफ कर डाली।

कई लोगों ने इसे मुंबई का 'बैग स्टोरेज स्कैम' करार दिया, तो कुछ इसे 'इंडियन जुगाड़ू माइंड' का उदाहरण कहने लगे।


अब बंद हुआ खेल, जांच में जुटी पुलिस

लेकिन हर स्मार्ट स्कीम की तरह, इसका अंत भी जल्द ही हुआ। पोस्ट के वायरल होते ही पुलिस विभाग पर सवाल उठने लगे।

शिकायतें दर्ज होने लगीं और मीडिया में मामला गर्माया। और आखिर में पुलिस को ना चाहते हुए भी हरकत में आना ही पड़ा।

अब खबर है कि ड्राइवर की दुकानदारी पर ताला लग चुका है। पूछताछ की जा रही है और पुलिस यह भी जांच कर रही है कि कहीं इसके पीछे किसी वरिष्ठ अधिकारी की सहमति या साझेदारी तो नहीं थी।

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह जुगाड़ पिछले कई महीनों से चल रहा था और इसमें सिर्फ एक नहीं, बल्कि 2-3 ऑटो वाले शामिल थे, जो बारी-बारी से काम संभालते थे।

आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ।

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