भारतीय लोकतंत्र में एक बड़ा बदलाव दस्तक दे सकता है। केंद्र सरकार ने लोकसभा में तीन अहम विधेयक पेश किए हैं, जिनके मुताबिक अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई मंत्री किसी गंभीर आपराधिक मामले में गिरफ्तार होता है और 30 दिन तक जेल में रहता है, तो उसे पद छोड़ना होगा। और अगर इस्तीफा नहीं दिया गया तो 31वें दिन स्वतः पद से हटा दिया जाएगा। जी हाँ, दरअसल यह प्रस्ताव उस ऐतिहासिक घटना से जुड़ा है जब मार्च 2024 में दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ईडी ने गिरफ्तार किया था। केजरीवाल जेल में रहते हुए भी मुख्यमंत्री पद पर बने रहे और सरकार चलाई। उनके मंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन भी जेल में रहते हुए मंत्री पद पर बने रहे। यह पहली बार हुआ था जब कोई सीएम जेल से सरकार चला रहा था। सरकार अब कह रही है कि ऐसा दोबारा न हो, इसलिए यह बिल लाया गया है। कौन से हैं तीन बिल? • गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज अमेंडमेंट बिल 2025 – पुदुचेरी सहित अन्य केंद्र शासित प्रदेशों पर होगा लागू।• द कॉन्स्टिट्यूशन 133वां अमेंडमेंट बिल 2025 – प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री और दिल्ली सरकार पर लागू।• जम्मू कश्मीर रिऑर्गेनाइजेशन अमेंडमेंट बिल 2025 – जम्मू-कश्मीर में लागू। इन तीनों का मकसद एक ही है – गंभीर अपराध में गिरफ्तार मंत्री या मुख्यमंत्री को 30 दिन बाद पद से हटाना। गंभीर अपराध वह होगा, जिसमें 5 साल या उससे ज्यादा की सजा का प्रावधान है। सरकार और विपक्ष आमने-सामने आपको बता दें, गृह मंत्री अमित शाह ने जब लोकसभा में यह बिल पेश किया तो विपक्ष ने कड़ा विरोध किया। विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार इस कानून का इस्तेमाल लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकारों को गिराने के लिए कर सकती है। कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने इसे लोकतंत्र की आत्मा पर हमला बताया। वहीं सरकार का कहना है कि यह कदम राजनीतिक नैतिकता को बचाने के लिए जरूरी है। सवाल और शंकाएँ • निर्दोष जब तक दोषी साबित न हो: भारत का कानून कहता है कि कोई भी व्यक्ति तब तक दोषी नहीं है जब तक अदालत सजा न सुना दे। लेकिन यह बिल सिर्फ गिरफ्तारी और हिरासत के आधार पर पद छिनने की बात करता है। • 2000 से ज्यादा अपराध शामिल: भारत में 2000 से ज्यादा अपराध ऐसे हैं जिनमें 5 साल से ज्यादा की सजा हो सकती है। इनमें गंभीर अपराधों के साथ कुछ छोटे अपराध भी आते हैं। • एजेंसियों की भूमिका: विपक्ष का कहना है कि ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों का राजनीतिक इस्तेमाल पहले से होता आया है। 2014 से 2022 के बीच ईडी की 95% कार्रवाइयाँ विपक्षी नेताओं पर हुईं। ऐसे में आशंका है कि इस कानून का दुरुपयोग हो सकता है। समाधान क्या है? कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि केवल गिरफ्तारी के आधार पर किसी मंत्री को हटाना लोकतंत्र को कमजोर करेगा। बेहतर होगा कि ऐसे मामलों की फास्ट-ट्रैक कोर्ट में सुनवाई हो और निष्पक्ष तरीके से दोष साबित होने पर ही कार्रवाई हो। इससे एक तरफ जनता के चुने हुए नेताओं की जवाबदेही तय होगी और दूसरी तरफ लोकतांत्रिक ढांचा भी सुरक्षित रहेगा। बहरहाल, यह बिल अगर पास होता है तो भारत के राजनीतिक इतिहास में बड़ा मोड़ होगा। नेताओं के लिए यह संदेश होगा कि पद पर रहते हुए जेल से शासन चलाना अब संभव नहीं होगा। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या यह कानून लोकतंत्र को मजबूत करेगा या फिर विपक्ष को निशाना बनाने का नया औजार बन जाएगा? आपका क्या मानना है? क्या सिर्फ 30 दिन की हिरासत के आधार पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री को पद से हटा देना सही है? Comments (0) Post Comment
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