उपराष्ट्रपति चुनाव में साउथ की अहमियत: राधाकृष्णन बनाम सुदर्शन, नायडू-स्टालिन पर टिकी नजरें

देश की राजनीति में उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर इस बार दक्षिण भारत सुर्खियों में है। एक तरफ NDA ने तमिलनाडु से आने वाले सी.पी. राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाया है, तो दूसरी ओर इंडिया गठबंधन ने आंध्र प्रदेश के पूर्व नौकरशाह सुदर्शन रेड्डी पर दांव लगाया है। दोनों उम्मीदवारों का संबंध सीधे-सीधेसाउथ पॉलिटिक्ससे है। सवाल यह है कि आखिर क्यों दोनों खेमों ने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए दक्षिण भारत को केंद्र में रखा है? और इसमें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू तथा तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन का कनेक्शन क्या है?

 साउथ से उम्मीदवार

 देखिये, भारत की राजनीति में लंबे समय से उत्तर भारत का दबदबा रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में दक्षिण भारत का महत्व तेजी से बढ़ा है।

 संसद में दक्षिण भारत से चुनकर आने वाले सांसदों की संख्या निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

• 2024 के लोकसभा चुनाव में भी देखा गया कि तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों की राजनीतिक स्थिति ने दिल्ली की सत्ता समीकरणों पर असर डाला।

ऐसे में उपराष्ट्रपति पद के चुनाव को लेकर दोनों गठबंधनों ने साफ रणनीति बनाई कि दक्षिण भारत को साधना जरूरी है।

 NDA का दांव: राधाकृष्णन

 आपको बता दें, एनडीए ने तमिलनाडु के वरिष्ठ नेता और लंबे समय से बीजेपी से जुड़े सी.पी. राधाकृष्णन को मैदान में उतारा है। राधाकृष्णन केवल संगठन में मजबूत पकड़ रखते हैं बल्कि उनका चेहरा दक्षिण भारत में बीजेपी की स्वीकार्यता बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा भी है।

 राधाकृष्णन का राजनीति और समाज सेवा में लंबा अनुभव है।

वे संघ और बीजेपी संगठन से जुड़े रहे हैं, जिससे पार्टी को एक वफादार और जमीनी कार्यकर्ता की छवि वाला उम्मीदवार मिला।

तमिलनाडु की राजनीति में डीएमके और एआईएडीएमके का प्रभाव रहा है। ऐसे में राधाकृष्णन की उम्मीदवारी बीजेपी के लिएसाउथ कार्डसाबित हो सकती है।

 INDI का दांव: सुदर्शन रेड्डी

 

वहीं, इंडिया गठबंधन ने आंध्र प्रदेश से आने वाले पूर्व नौकरशाह सुदर्शन रेड्डी को प्रत्याशी बनाया है।

सुदर्शन रेड्डी प्रशासनिक पृष्ठभूमि से आते हैं और उनकी छवि ईमानदार तथा निष्पक्ष अधिकारी की रही है।

आंध्र प्रदेश की राजनीति में उनका सीधा राजनीतिक प्रभाव भले रहा हो, लेकिन चंद्रबाबू नायडू और वाईएसआर कांग्रेस दोनों खेमों से उनके संबंध रहे हैं।

उनकी उम्मीदवारी का मकसद आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के वोटों को प्रभावित करना है, जहाँ एनडीए का प्रभाव अपेक्षाकृत कमजोर माना जाता है।

 नायडू और स्टालिन का कनेक्शन

 चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश की राजनीति में अहम चेहरा हैं। हाल ही में उन्होंने केंद्र की राजनीति में एनडीए का साथ देकर बड़ा राजनीतिक संतुलन बनाया है। उपराष्ट्रपति चुनाव में उनके सांसदों के वोट बेहद अहम होंगे। दोनों गठबंधन उनके समर्थन को लेकर सक्रिय हैं।

एम.के. स्टालिन, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख, इंडिया गठबंधन के बड़े नेता हैं। राधाकृष्णन की उम्मीदवारी सीधे तौर पर स्टालिन की डीएमके को चुनौती देने वाली रणनीति है। भाजपा चाहती है कि तमिलनाडु में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए इस चुनाव को प्रतीकात्मक हथियार बनाया जाए।

 साउथ पॉलिटिक्स का बड़ा संदेश

 इस चुनाव से यह साफ हो गया है कि दक्षिण भारत अब राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बिंदु बन गया है। उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर दक्षिण से उम्मीदवार उतारना सिर्फ चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि आने वाले लोकसभा चुनावों की जमीन तैयार करना भी है। यह दोनों गठबंधनों का संदेश है कि दक्षिण भारत के बिना दिल्ली की सत्ता अधूरी है। नायडू और स्टालिन जैसे क्षेत्रीय नेता भविष्य की सियासत में निर्णायक भूमिका निभाएंगे।

 बहरहाल, राधाकृष्णन बनाम सुदर्शन की लड़ाई सिर्फ दो व्यक्तियों की नहीं है, बल्कि दक्षिण भारत के बढ़ते राजनीतिक महत्व का प्रतीक है। एनडीए और इंडिया गठबंधन, दोनों ही जानते हैं कि आने वाले वक्त में दिल्ली की सत्ता का समीकरणसाउथके बिना संभव नहीं होगा। यही वजह है कि उपराष्ट्रपति चुनाव को दोनों खेमों ने सिर्फ एक संवैधानिक पद की लड़ाई नहीं, बल्कि 2029 तक की राजनीतिक जमीन तैयार करने का जरिया बना दिया है।

 


 

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