ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
अमेरिका से आई ये खबर एक तरह से भारत की फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री के लिए बिजली गिरने जैसी है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो कहा, उससे न सिर्फ भारतीय कंपनियों की कमाई पर असर पड़ने वाला है, बल्कि शेयर बाजार में भी इसका सीधा असर देखने को मिलेगा।
उन्होंने एलान किया कि अब अमेरिका में किसी भी दवा को मनमर्जी के दामों पर नहीं बेचा जा सकेगा। यानी सीधे तौर पर भारत जैसी कंपनियों के लिए यूएस मार्केट अब वैसा 'कमाऊ' नहीं रहेगा जैसा पहले था।
दरअसल, ट्रंप ने साफ कर दिया कि वो एक नया एग्जिक्यूटिव ऑर्डर लाने जा रहे हैं, जिसमें अमेरिका खुद को "मोस्ट फेवर्ड नेशन" घोषित करेगा।
इसका मतलब ये है कि अगर कोई दवा किसी अन्य देश में 10, 20 या 30 डॉलर में बेची जा रही है, तो अमेरिका भी वही न्यूनतम कीमत देगा - भले ही पहले वह उसके लिए 50 डॉलर तक चुका रहा हो।
ट्रंप ने आगे ये भी कहा कि इससे दवाओं की कीमतें 60 से 90 प्रतिशत तक घटेंगी और बिचौलियों की भूमिका भी खत्म की जाएगी।
फार्मा कंपनियों की नींद क्यों उड़ी है?
अब बात करें भारत की। भारत की फार्मा कंपनियां दुनिया में जेनरिक और वैक्सीन उत्पादकों के रूप में जानी जाती हैं। अमेरिका, इनके लिए सबसे बड़ा बाजार रहा है।
मगर अब ट्रंप के इस कदम से इन कंपनियों की आमदनी पर गहरा असर पड़ने वाला है।
जिन कंपनियों का यूएस से सबसे ज्यादा रेवेन्यू आता है, उनकी सूची में ऑरबिंदो फार्मा, सन फार्मा, डॉ. रेड्डीज, जायडस कैडिला, ल्यूपिन और ग्लैंड फार्मा जैसे नाम शामिल हैं।
गौर करने वाली बात ये है कि ऑरबिंदो फार्मा का करीब 48% रेवेन्यू सिर्फ यूएस से आता है।
सन फार्मा का 32%, डॉ. रेड्डीज का लगभग 45% और जायडस कैडिला का भी 38-45% तक का हिस्सा अमेरिकी मार्केट से ही आता है। यानि अब इन कंपनियों की बैलेंस शीट सीधी प्रभावित होगी।
शेयर बाजार में दिखने लगे हैं संकेत
बाजार ने इस झटके को भांप लिया है। आज जहां बाकी इंडेक्स में तेजी दिखी, वहीं फार्मा इंडेक्स सपाट बंद हुआ। निफ्टी 50 में से सिर्फ दो स्टॉक्स लाल निशान में बंद हुए, जिसमें से एक था - सन फार्मा।
ये अपने आप में संकेत है कि निवेशक पहले ही इस बदलाव को लेकर सतर्क हो गए हैं। अब नजरें टिकी हैं कल के बाजार पर, जहां ये उम्मीद की जा रही है कि फार्मा स्टॉक्स में गिरावट देखने को मिल सकती है।
कंपनियों की रणनीति अब क्या होगी?
अब सवाल ये उठता है कि क्या भारतीय फार्मा कंपनियां इस फैसले के खिलाफ कोई रणनीति बनाएंगी या फिर कीमतें घटाकर अमेरिकी बाजार में बने रहने की कोशिश करेंगी?
जाहिर है, अमेरिकी बाजार से हटना इन कंपनियों के लिए घाटे का सौदा हो सकता है, लेकिन ट्रंप की शर्तों पर टिके रहना भी अब उतना मुनाफेदार नहीं रह गया।
अगला कदम क्या हो सकता है?
बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में भारत सरकार या इंडस्ट्री निकाय इस मसले पर अमेरिका से बातचीत की कोशिश करें।
वहीं, निवेशकों को चाहिए कि वे फार्मा सेक्टर की कंपनियों की कमाई के नए आकलन का इंतजार करें और तभी कोई बड़ा फैसला लें।
बहरहाल, ट्रंप का ये फैसला भारतीय कंपनियों के लिए एक बड़ा सबक है कि सिर्फ एक बाजार पर निर्भर रहना किस हद तक जोखिम भरा हो सकता है।
आखिर में
फिलहाल, निवेशकों और फार्मा इंडस्ट्री दोनों के लिए ये वक्त सतर्कता बरतने का है। ट्रंप की नीतियों का असर भारत के फार्मा फ्यूचर पर किस हद तक पड़ता है, ये आने वाले महीनों में साफ होगा।
मगर इतना तय है कि अमेरिका अब वो बाजार नहीं रहा जहां कीमतें तय करने का हक पूरी तरह से कंपनियों के पास था।
आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ।
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