ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
गाजियाबाद में हवा लगातार जहरीली होती जा रही है और वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के अनुसार यह शहर इस समय पूरे देश में सबसे प्रदूषित शहर बन चुका है। गाजियाबाद के बाद दूसरे स्थान पर नोएडा और तीसरे स्थान पर दिल्ली है। सुबह के समय शहर के कई इलाकों में हल्की धुंध दिखाई देती है, जो प्रदूषण के साथ मिलकर वातावरण को और भी खराब बना रही है। लोगों को सांस लेने में परेशानी, आंखों में जलन और गले में खराश जैसी समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं।
AQI खतरनाक स्तर पर, लोग परेशान
गाजियाबाद समेत उत्तर प्रदेश के कई शहर रेड जोन में पहुंच गए हैं, जिसका अर्थ है कि हवा बेहद अस्वस्थ स्तर पर पहुंच चुकी है। गाजियाबाद का एयर क्वालिटी इंडेक्स 429 दर्ज किया गया है, जो ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है और आम लोगों के लिए भी बेहद नुकसानदायक माना जाता है।
नोएडा का AQI 409, दिल्ली का 399, बागपत का 387, हापुड़ का 365, मुजफ्फरनगर का 315 और मेरठ का 309 दर्ज किया गया है। यह सभी आंकड़े बताते हैं कि पूरा क्षेत्र गंभीर वायु संकट से जूझ रहा है।
मौसम भी बढ़ा रहा है परेशानी
मौसम भी इस प्रदूषण को और बढ़ाने का काम कर रहा है। गाजियाबाद में आज सुबह तापमान 10.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि दिन में तापमान 26 डिग्री तक पहुंचने का अनुमान है। ठंडे मौसम और धूल के मिश्रण से हवा भारी हो जाती है और प्रदूषक कण जमीन के पास ही जमा हो जाते हैं, जिससे सांस लेना और मुश्किल हो जाता है।
डॉक्टर्स ने जारी की सलाह
गाजियाबाद के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. शरद जोशी ने लोगों को सलाह दी है कि वे बाहर निकलते समय N95 मास्क या डबल सर्जिकल मास्क जरूर पहनें। उन्होंने कहा कि बच्चों, बुजुर्गों और दमा या सांस की बीमारी से पीड़ित लोगों को इस समय विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। डॉक्टरों के अनुसार सुबह और देर शाम के समय बाहर निकलना सबसे ज्यादा नुकसानदायक हो सकता है, इसलिए इन घंटों में बाहर जाने से बचना चाहिए।
प्रदूषण के सबसे बड़े कारण
विशेषज्ञों का मानना है कि गाजियाबाद और आसपास के जिलों में प्रदूषण के बढ़ने के कई प्रमुख कारण हैं। सबसे अधिक प्रदूषण सड़कों की धूल से फैल रहा है, जो PM10 कणों का लगभग 86 प्रतिशत हिस्सा बनाता है। वाहनों से निकलने वाला धुआं करीब 6 प्रतिशत, निर्माण कार्य 5 प्रतिशत और उद्योग 3 प्रतिशत प्रदूषण बढ़ा रहे हैं।
PM2.5 जैसे सूक्ष्म प्रदूषण कणों में भी सड़कों की धूल का ही सबसे बड़ा योगदान है, जो लगभग 72 प्रतिशत है, जबकि वाहन 20 प्रतिशत, उद्योग 6 प्रतिशत और निर्माण कार्य 3 प्रतिशत प्रदूषण बढ़ाते हैं।
पराली जलाना भी बड़ी वजह
दिवाली के बाद हर साल उत्तर भारत में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ जाती हैं और इस बार भी ऐसा ही हुआ है। पंजाब और हरियाणा में सबसे अधिक पराली जलाने के मामले सामने आए हैं, जिनका सीधा प्रभाव दिल्ली-एनसीआर पर पड़ रहा है।
2015 में NGT ने पराली जलाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया था, लेकिन इसके बावजूद पराली जलाने के मामले पूरी तरह से खत्म नहीं हुए हैं। केंद्र सरकार के वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने पराली जलाने पर जुर्माने का प्रावधान किया है, जिसमें 2 एकड़ से कम जमीन पर पराली जलाने पर 5,000 रुपये, 2 से 5 एकड़ पर 10,000 रुपये और 5 एकड़ से अधिक पराली जलाने पर 30,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाता है।
प्रशासन ने चलाए अभियान
प्रशासन ने प्रदूषण कम करने के लिए कुछ कदम उठाए हैं, जिनमें सड़कों की मशीनों से सफाई, पानी का छिड़काव, निर्माण स्थलों पर नियमों की जांच और पुराने वाहनों पर कार्रवाई शामिल है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक धूल, वाहन उत्सर्जन और पराली जलाने पर कड़े और प्रभावी कदम नहीं उठाए जाते, तब तक हालात में कोई बड़ा सुधार देखने की संभावना नहीं है।
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