सोशल मीडिया पर झूठ से नहीं बचेंगे अब आप, AI देगा रियल टाइम अलर्ट

डिजिटल युग में कहानी अगर अच्छी तरह सुनाई गई हो, तो वो सच्चाई से भी ज्यादा असर डाल सकती है।

सोशल मीडिया पर भावनात्मक किस्से, मीम्स या निजी अनुभव अक्सर तथ्यों से ज्यादा प्रभावी होते हैं।

यही ताकत जब गलत मकसद से इस्तेमाल होती है, तो मिसइंफॉर्मेशन और डिसइंफॉर्मेशन के ज़रिए बड़े पैमाने पर झूठ फैलता है।

अब इस चुनौती से निपटने के लिए रिसर्चर्स ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया है।

नई तकनीकें अब ऐसी कहानियों में भी झूठ की पहचान करने में सक्षम हो गई हैं, जो भावनाओं के सहारे भरोसा जीतने की कोशिश करती हैं।


मिसइंफॉर्मेशन और डिसइंफॉर्मेशन में फर्क

मिसइंफॉर्मेशन वो होती है जिसमें बिना किसी गलत इरादे के गलत जानकारी दे दी जाती है।

जैसे कोई व्यक्ति किसी तथ्य को अनजाने में गलत कह दे। दूसरी ओर, डिसइंफॉर्मेशन का मकसद होता है जानबूझकर झूठ फैलाना ताकि लोग गुमराह हों।

झूठ फैलाने वाले अक्सर ऐसे किस्से गढ़ते हैं जो सच से भी ज्यादा विश्वसनीय लगें। जैसे एक कछुए को प्लास्टिक से बचाने की कहानी कई बार किसी पर्यावरणीय रिपोर्ट से ज्यादा लोगों का ध्यान खींचती है।

अब AI इन कहानियों को गहराई से पढ़ने और उनका विश्लेषण करने में सक्षम हो गया है।


AI कैसे करता है पहचान?

नई तकनीकों से लैस AI अब कहानी सुनाने के अंदाज़, शब्दों के चयन, घटनाओं के क्रम और भावनाओं की गहराई तक को समझने लगा है।

ये सिर्फ टेक्स्ट नहीं पढ़ता, वो कहानी के पीछे की मंशा और संदर्भ को भी पकड़ता है।

AI सबसे पहले ये देखता है कि जानकारी किस अकाउंट से आई है। उदाहरण के लिए, @JamesBurnsNYT जैसे नाम पर लोग तुरंत विश्वास कर लेते हैं जबकि @JimB_NYC जैसे नामों पर संदेह होता है।

AI इन दोनों तरह के अकाउंट्स का पैटर्न समझता है और तय करता है कि पोस्ट की विश्वसनीयता कितनी है।


टाइमलाइन और घटनाओं की जाँच

फेक खबरें कई बार बहुत उलझी हुई होती हैं। उनमें कभी फ्लैशबैक होता है, कभी आगे की घटना पहले दिखाई जाती है और कई अहम जानकारी छूट जाती है।

AI अब इन कहानियों की सही टाइमलाइन समझने की क्षमता हासिल कर रहा है। इससे वो ये तय कर पाता है कि कहानी असली है या गढ़ी गई।


सांस्कृतिक संदर्भ भी पकड़ता है AI

एक ही प्रतीक या रंग हर संस्कृति में अलग-अलग मतलब रखता है। जैसे वेस्टर्न देशों में सफेद कपड़े में महिला को खुशहाल शादी का प्रतीक माना जाता है जबकि भारत या एशिया के कई हिस्सों में ये शोक का प्रतीक हो सकता है।

AI को अब सांस्कृतिक संकेतों को समझने की ट्रेनिंग दी जा रही है ताकि वो इस फर्क को समझ सके और गलत मतलब न निकाले।


किसे होगा इसका फायदा?

सबसे पहले तो इंटेलिजेंस एजेंसियां इसका फायदा उठा सकती हैं। वो फेक न्यूज़ या ऑपरेटेड कैम्पेन्स को समय रहते पकड़ सकती हैं। आपदा प्रबंधन एजेंसियां किसी त्रासदी के समय गलत सूचना को रोक सकती हैं।

सोशल मीडिया कंपनियां AI के ज़रिए खतरनाक या भ्रामक कंटेंट को ह्यूमन रिव्यू के लिए भेज सकती हैं, जिससे ओवर-सेंसरशिप से बचा जा सके।

साथ ही शोधकर्ता ये जान सकेंगे कि अलग-अलग समुदायों में किस तरह की कहानियां फैलती हैं और उनका असर क्या है।

सबसे ज़रूरी बात, आम यूज़र को इससे सीधा फायदा होगा। जैसे ही वो किसी संदिग्ध जानकारी को पढ़ेंगे, AI रियल टाइम में उन्हें अलर्ट देगा कि इस कंटेंट में झूठ की संभावना है।

आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ।

Comments (0)