देशद्रोह से नमक आंदोलन तक: जानिए नेहरू की जेल यात्रा की पूरी टाइमलाइन

पंडित जवाहर लाल नेहरू, जिन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है, ने आज़ादी की लड़ाई में न सिर्फ नेतृत्व किया, बल्कि इसकी कीमत 3259 दिन जेल में बिताकर चुकाई। नौ बार अंग्रेजों ने उन्हें विभिन्न आरोपों में गिरफ्तार किया।

27 मई 1964 को दुनिया से विदा लेने वाले नेहरू की पुण्यतिथि पर जानते हैं, उन पर क्या-क्या आरोप लगे और कब-कब जेल गए?


शुरुआती शिक्षा और आज़ादी के प्रति झुकाव

14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद में जन्मे नेहरू ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा निजी शिक्षकों से ली। 15 वर्ष की उम्र में इंग्लैंड गए, हैरो स्कूल और फिर कैम्ब्रिज से प्राकृतिक विज्ञान में स्नातक किया।

वहां उन्होंने आयरलैंड के सिनफेन आंदोलन से प्रेरणा ली और स्वदेश लौटने के बाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।


पहली बार 1921 में जेल गए

साल 1921 में कांग्रेस नेताओं पर गैरकानूनी गतिविधियों का आरोप लगाकर अंग्रेजों ने गिरफ्तारी की मुहिम शुरू की।

इसी दौरान नेहरू को पहली बार जेल भेजा गया। इसके बाद 24 वर्षों में वे कुल नौ बार जेल गए। अंतिम बार जून 1945 में रिहा हुए थे।


असहयोग आंदोलन और दो बार जेल

1920-22 के असहयोग आंदोलन में भाग लेने पर नेहरू को दो बार जेल भेजा गया। यह उनका स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी का शुरुआती चरण था।


नमक सत्याग्रह और गिरफ्तारी (1930)

1930 में गांधी जी के नेतृत्व में चला ‘नमक सत्याग्रह’ नेहरू की गिरफ्तारी की एक और वजह बना। अंग्रेजों ने अप्रैल में उन्हें जेल भेजा लेकिन अक्टूबर 1930 में रिहा कर दिया।


नो-टैक्स कैम्पेन और पहली बार देशद्रोह का आरोप (1930)

नमक कानून तोड़ने के बाद जब नेहरू ने इलाहाबाद में नो-टैक्स कैम्पेन शुरू किया, तो उन्हें देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

उन्होंने अपना बचाव करने से इनकार करते हुए धारा 124A के तहत दोष कबूल किया और उन्हें दो साल की सजा सुनाई गई। हालांकि 97 दिनों बाद रिहा कर दिए गए।


तीन साल बाद फिर देशद्रोह का आरोप (1934)

जनवरी 1934 में कोलकाता में दिए गए भाषणों को आधार बनाकर एक बार फिर उन पर देशद्रोह का मुकदमा चला। उन्हें इलाहाबाद से गिरफ्तार कर 13 फरवरी को पेश किया गया।

जुर्म कबूलने के बाद उन्हें फिर दो साल की सजा मिली लेकिन कमला नेहरू की बीमारी के चलते 565 दिन बाद रिहा कर दिया गया।


व्यक्तिगत सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ्तारी (1940-42)

द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को जबरन झोंके जाने का विरोध करते हुए नेहरू ने व्यक्तिगत सत्याग्रह किया, जिससे 31 अक्टूबर 1940 को गिरफ्तार हुए।

दिसंबर 1941 में रिहाई हुई, लेकिन फिर 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ्तारी हुई।

उन्हें अहमदनगर किले में बंद किया गया और यह उनकी सबसे लंबी जेल यात्रा थी, जनवरी 1945 में रिहाई मिली।


नेहरू की जेल यात्राएं: आज़ादी के लिए सर्वोच्च बलिदान

नेहरू का जीवन सिर्फ राजनीतिक नेतृत्व तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने आज़ादी के लिए निजी स्वतंत्रता, स्वास्थ्य और पारिवारिक सुख सब कुछ दांव पर लगाया।

उनकी जेल यात्राएं न सिर्फ ब्रिटिश दमन का प्रमाण हैं, बल्कि ये इस बात का भी प्रतीक हैं कि कैसे उन्होंने राष्ट्र को आज़ादी दिलाने के लिए हर कीमत चुकाई।


एक नेता, जिसने संघर्ष को जीवन बना लिया

पंडित जवाहर लाल नेहरू पर बार-बार देशद्रोह, कानून तोड़ने और आंदोलन भड़काने के आरोप लगाए गए। लेकिन हर बार वे और मजबूत होकर बाहर निकले।

3259 दिन जेल में बिताने वाले इस नेता ने आज़ादी के बाद देश को आधुनिकता की दिशा में मोड़ा।

उनकी पुण्यतिथि पर यह याद करना ज़रूरी है कि आज़ादी यूं ही नहीं मिली, इसके लिए किसी ने जिंदगी के नौ साल सलाखों के पीछे बिता दिए।

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