ईरान-इजरायल युद्ध के बीच अमेरिका ने उड़ाए 24 टैंकर एयरक्राफ्ट, क्या युद्ध में कूदेगा US?

पश्चिम एशिया में ईरान और इजरायल के बीच युद्ध की लपटें तेज होती जा रही हैं। मिसाइलों और ड्रोन हमलों के बीच अब अमेरिका की बड़ी सैन्य हलचल ने दुनिया की चिंता बढ़ा दी है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, रविवार देर रात तक अमेरिका ने 24 एयर रिफ्यूलिंग टैंकर विमान, KC-135 Stratotanker और KC-46 Pegasus, को पूर्व दिशा यानी अटलांटिक पार यूरोप और संभवतः मध्य पूर्व की ओर रवाना किया। ये अब तक की सबसे बड़ी सामूहिक टैंकर तैनाती मानी जा रही है।

हालांकि पेंटागन ने अभी तक इस कदम के पीछे का कोई आधिकारिक मकसद नहीं बताया है, लेकिन विशेषज्ञ इसे मध्य पूर्व में किसी बड़े संभावित अभियान की पूर्व तैयारी मान रहे हैं।


टैंकर विमानों की अहमियत क्या है?

एयर रिफ्यूलिंग टैंकर विमान किसी भी आधुनिक वायुसेना के ऑपरेशनल कैपेबिलिटी को कई गुना बढ़ा देते हैं। इन विमानों का मुख्य काम लड़ाकू विमानों, बॉम्बर्स और निगरानी विमानों को हवा में ही ईंधन देना होता है।

इससे ये विमान लंबी दूरी तय कर पाते हैं, बार-बार बेस पर लौटने की जरूरत नहीं होती और वे लगातार दुश्मन के इलाकों में ऑपरेट कर सकते हैं।

इजरायल जैसे देशों के लिए, जो ईरान जैसे लक्ष्य से हजारों किलोमीटर दूर हैं, ऐसी एयर रिफ्यूलिंग सपोर्ट न केवल ऑपरेशन की रीढ़ होती है, बल्कि ये सीधे तौर पर मिशन की सफलता और जमीनी सैन्य कार्रवाई की आवश्यकता को प्रभावित कर सकती है।


अमेरिका की ये तैनाती क्यों महत्वपूर्ण है?

अमेरिका की ओर से टैंकर विमानों की ये तैनाती सिर्फ सैद्धांतिक समर्थन नहीं बल्कि लॉजिस्टिक तैयारी का संकेत है।

ये नाटो सहयोगियों को भी समर्थन देने का हिस्सा हो सकता है, खासकर यदि संकट बढ़ता है और क्षेत्रीय सहयोग की जरूरत पड़ती है।

यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते अमेरिका पहले ही यूरोपीय मोर्चे पर व्यस्त है। ऐसे में मध्य पूर्व में अतिरिक्त संसाधनों की तैनाती दोहरे संकट की तैयारी को दर्शाती है।


क्या ये युद्ध में कूदने की तैयारी है?

फिलहाल अमेरिका ने सीधे तौर पर इजरायल या ईरान के खिलाफ कोई हमला नहीं किया है, लेकिन वॉशिंगटन की ये रणनीति 'बैक एंड सपोर्ट' यानी अप्रत्यक्ष सहायता की ओर इशारा करती है।

अमेरिका के पास जॉर्डन, कुवैत, कतर और बहरीन जैसे देशों में पहले से ही सैन्य बेस हैं। अगर युद्ध लंबा खिंचता है, तो अमेरिका की ये टैंकर तैनाती डायरेक्ट एयर सपोर्ट, इवैक्यूएशन मिशन या नो-फ्लाई ज़ोन जैसी कार्रवाइयों का आधार बन सकती है।


क्यों चिंता में है दुनिया?

ईरान और इजरायल की मौजूदा लड़ाई सिर्फ दो देशों की टकराव नहीं, बल्कि ये शिया-सुन्नी तनाव, यूएस-ईरान द्वंद्व, और ग्लोबल सप्लाई चेन पर असर डालने वाला संकट है।

ईरान की तरफ से कई बार चेतावनी दी गई है कि अगर इजरायल ने हमला जारी रखा तो वो स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को बंद कर सकता है, जिससे दुनिया की 30% से ज्यादा तेल सप्लाई प्रभावित हो सकती है।

इजरायल के हमलों के जवाब में ईरान ने अब तक तीन रॉकेट लॉन्च पैड और कई ड्रोन अड्डों पर जवाबी हमले किए हैं।

अगर अमेरिका किसी भी रूप में सीधा शामिल होता है, तो ये युद्ध क्षेत्रीय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैल सकता है।


आगे क्या हो सकता है?

  • आक्रामक सैन्य प्रतिक्रिया - अगर अमेरिका टैंकर विमानों के बाद लड़ाकू विमानों या बॉम्बर विमानों की तैनाती करता है, तो ये स्पष्ट संकेत होगा कि युद्ध क्षेत्र में अमेरिका प्रवेश कर रहा है।


  • नो-फ्लाई ज़ोन की घोषणा - अमेरिकी और सहयोगी देश, जैसे ब्रिटेन और फ्रांस, मिलकर पश्चिम एशिया में किसी खास क्षेत्र को नो-फ्लाई ज़ोन घोषित कर सकते हैं।


  • कूटनीतिक हस्तक्षेप - अमेरिका संयुक्त राष्ट्र या अन्य मंचों पर युद्ध विराम या बातचीत की मेज़ सजाने का प्रयास कर सकता है, खासकर अगर वैश्विक तेल बाज़ार में असर दिखने लगे।


  • संयुक्त सैन्य अभ्यास - अमेरिका नाटो देशों के साथ मिलकर सैन्य अभ्यास शुरू कर सकता है, जो एक तरह से दबाव बनाने की रणनीति होगी।


युद्ध की ओर बढ़ता संतुलन?

अमेरिका द्वारा एक साथ 24 से अधिक टैंकर विमानों की तैनाती ये साफ संदेश देती है कि सिर्फ इजरायल और ईरान ही नहीं, बल्कि बड़ी वैश्विक ताकतें भी इस संघर्ष की आंच को महसूस कर रही हैं।

अब ये देखना होगा कि क्या ये कदम सिर्फ एक एहतियात है या किसी बड़े सैन्य ऑपरेशन की शुरुआत।

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