ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अपनी "अमेरिका फर्स्ट" नीति को आगे बढ़ाते हुए एक बड़ा व्यापारिक फैसला लिया है। उन्होंने घोषणा की है कि 1 नवंबर, 2025 से अमेरिका में आयात होने वाले सभी मध्यम और भारी ट्रकों पर 25% का टैरिफ (आयात शुल्क) लगाया जाएगा। यह कदम दुनिया भर के ऑटोमोबाइल उद्योग में हलचल मचा सकता है और एक नए ट्रेड वॉर की आशंका को जन्म दे सकता है।
क्या है नया टैरिफ?
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'ट्रुथ सोशल' पर यह ऐलान किया। उन्होंने लिखा,
"1 नवंबर, 2025 से, दूसरे देशों से संयुक्त राज्य अमेरिका में आने वाले सभी मध्यम और भारी
शुल्क वाले ट्रकों पर 25 प्रतिशत की दर से टैरिफ लगाया
जाएगा।" पहले यह टैरिफ 1 अक्टूबर से लागू होना था,
लेकिन अमेरिकी ऑटोमोबाइल उद्योग के दबाव के कारण इसे एक महीने के
लिए टाल दिया गया था ।
राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला
इस भारी-भरकम टैरिफ के पीछे ट्रंप ने राष्ट्रीय
सुरक्षा का तर्क दिया है। उनका मानना है कि अमेरिकी ट्रक उद्योग और ट्रक ड्राइवरों
का आर्थिक रूप से मजबूत होना देश की सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा, "हमें अपने ट्रकर्स को आर्थिक रूप से स्वस्थ और मजबूत बनाने की जरूरत है,
इसके कई कारण हैं, लेकिन सबसे ऊपर, राष्ट्रीय सुरक्षा के उद्देश्य से!" इस फैसले का मकसद विदेशी
प्रतिस्पर्धा को कम करके अमेरिकी ट्रक निर्माताओं को बढ़ावा देना है।
अमेरिकी उद्योग पर क्या होगा असर?
हालांकि यह फैसला अमेरिकी उद्योग की रक्षा के लिए
लिया गया है, लेकिन इसका मिला-जुला असर देखने को मिल सकता
है। अमेरिका की बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों ने इस फैसले पर चिंता जताई है। उनका डर है
कि इससे सप्लाई चेन बाधित हो सकती है और ट्रकों की लागत बढ़ सकती है, जिसका बोझ अंततः ग्राहकों पर पड़ेगा। वहीं, जो
कंपनियां घरेलू स्तर पर ट्रकों का निर्माण करती हैं, उन्हें
इससे फायदा हो सकता है।
वैश्विक व्यापार पर प्रभाव
ट्रंप के इस कदम का सबसे ज्यादा असर चीन, मेक्सिको, कनाडा और जर्मनी जैसे देशों पर पड़ सकता
है, जो अमेरिका को बड़ी संख्या में ट्रकों का निर्यात करते
हैं। यह फैसला इन देशों के साथ अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों में और तनाव पैदा कर
सकता है। विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम वैश्विक मंदी की आहट के बीच संरक्षणवाद
को बढ़ावा देगा, जो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए
अच्छा संकेत नहीं है। अब देखना यह होगा कि प्रभावित देश इस पर क्या प्रतिक्रिया
देते हैं और क्या यह मामला विश्व व्यापार संगठन (WTO) तक
पहुंचता है।
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