ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ा फैसला लेते हुए सभी सरकारी एजेंसियों में ‘Woke AI’ के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगाने का आदेश दे दिया है।
दरअसल उनका कहना है कि AI मॉडल्स को किसी भी वैचारिक एजेंडे से नहीं चलना चाहिए, बल्कि उन्हें सिर्फ सच्चाई और तटस्थता के आधार पर जवाब देना चाहिए।
ट्रंप के इस फैसले से अमेरिका में जहां राजनीतिक बहस गरमा गई है, वहीं भारत जैसे देशों में भी इस कदम को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
खासकर तब जब भारत में भी AI टूल्स और डिजिटल कंटेंट को लेकर नैतिकता, पूर्वाग्रह और 'विचारधारा के असर' पर सवाल उठते रहे हैं।
आदेश की सबसे बड़ी बातें क्या हैं?
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि सरकारी संस्थानों को अब केवल ऐसे लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (LLMs) ही इस्तेमाल करने की अनुमति होगी जो दो सिद्धांतों का पालन करें, ‘सत्य’ और ‘वैचारिक तटस्थता’।
इसके तहत:
AI को केवल तथ्य आधारित जवाब देने होंगे।
किसी भी विचारधारा, जैसे Diversity, Equity, Inclusion (DEI) जैसे एजेंडों को महत्व नहीं दिया जाएगा।
जो कंपनियां AI मॉडल्स सरकार को बेचेंगी, उन्हें ये सुनिश्चित करना होगा कि उनके मॉडल 'Unbiased AI Principles' को मानते हैं।
अगर मॉडल में पक्षपात पाया गया, तो उसका कॉन्ट्रैक्ट कैंसिल किया जाएगा और डी-कमीशनिंग का खर्चा भी उसी कंपनी पर डाला जाएगा।
Woke AI क्या होता है?
‘Woke’ शब्द की शुरुआत एक सकारात्मक सोच के साथ हुई थी, जहां लोग नस्लवाद, लिंग भेदभाव और सामाजिक अन्याय के खिलाफ जागरूक रहते थे।
लेकिन बीते कुछ सालों में ये शब्द कई लोगों की नजर में एक 'अति-संवेदनशील' या 'राजनीतिक रूप से ज़रूरत से ज़्यादा सही दिखने की कोशिश' का प्रतीक बन गया है।
अब जब ट्रंप जैसे नेता Woke AI की आलोचना करते हैं, तो उनका मतलब होता है, ऐसे AI मॉडल जो किसी विशेष विचारधारा के हिसाब से काम करते हैं, बजाय इसके कि वो सिर्फ तटस्थ और सटीक जानकारी दें।
AI मॉडल्स में पक्षपात के उदाहरण
कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, AI मॉडल्स ने हाल ही में कई बार ऐसे जवाब दिए हैं जो ऐतिहासिक या तथ्यात्मक रूप से गलत तो नहीं थे, लेकिन जानबूझकर विविधता को बढ़ावा देने के मकसद से बदले गए थे।
जैसे कि जब AI से अमेरिका के फाउंडिंग फादर्स की तस्वीर मांगी गई, तो वो उन्हें अश्वेत या महिला रूप में दिखा रहा था।
एक AI ने जब श्वेत लोगों की उपलब्धियों पर इमेज बनाने का अनुरोध किया गया, तो उसने मना कर दिया, जबकि दूसरे नस्लों के लिए ये मंज़ूर कर लिया।
यहां तक कि एक आपातकालीन परिस्थिति में भी, AI ने 'जेंडर' को प्राथमिकता दी, जिससे ये सवाल उठा कि क्या विचारधारा ने एथिक्स से ज्यादा जगह ले ली है?
भारत के लिए क्या मायने रखता है ये आदेश?
भारत में AI तकनीक का तेजी से इस्तेमाल बढ़ रहा है, चाहे शिक्षा हो, स्वास्थ्य, कृषि या सरकारी सेवाएं।
ऐसे में ये सवाल जरूरी हो गया है कि हमारे यहां इस्तेमाल हो रहे AI मॉडल्स किस तरह की ट्रेनिंग पा रहे हैं?
क्या वो किसी विचारधारा के प्रभाव में हैं? क्या उनके जवाब निष्पक्ष हैं? या फिर क्या उनके जरिए इतिहास या तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है?
जो भी है, अमेरिका का ये फैसला भारत के लिए एक ‘वेक-अप कॉल’ की तरह है। इससे संकेत मिलता है कि AI सिर्फ तकनीकी टूल नहीं है, बल्कि ये विचार और नजरिए को भी प्रभावित कर सकता है।
भारत में वोक संस्कृति पर चर्चा
भारत में भी बीते कुछ सालों में 'वोक' शब्द चर्चा में रहा है। खासकर सोशल मीडिया, फिल्म इंडस्ट्री और शिक्षण संस्थानों में इस पर तीखी बहस हो चुकी है।
राष्ट्रवाद बनाम लिबरल सोच, सांस्कृतिक पहचान बनाम वैश्विक मूल्यों जैसे मुद्दों ने डिजिटल नीतियों को प्रभावित किया है। अब जब AI जैसे टूल्स में भी ये विचार घुसने लगें, तो ये चिंता बढ़ती है।
AI की दिशा तय कौन करेगा?
सबसे बड़ा सवाल ये है कि किसी AI मॉडल को ‘तटस्थ’ मानने का अधिकार किसके पास होगा?
अगर सरकार तय करती है तो उसमें भी एक विचारधारा होगी। अगर निजी कंपनियां तय करती हैं तो उनकी अपनी नीतियां होंगी।
ऐसे में ज़रूरत है एक खुली और पारदर्शी बहस की, जिसमें तकनीक, समाज और नीति एक साथ बैठें और ये तय करें कि AI का चेहरा कैसा होना चाहिए।
कुल मिलाकर कहा जाये तो डोनाल्ड ट्रंप का आदेश सिर्फ अमेरिका की नीति नहीं, बल्कि एक वैश्विक बहस की शुरुआत है।
भारत के लिए भी ये एक संकेत है कि AI की तकनीक को लेकर सिर्फ ‘स्मार्टनेस’ पर ध्यान देना काफी नहीं, ये भी देखना जरूरी है कि वो किस सोच के साथ जवाब दे रहा है।
आने वाले वक्त में भारत जैसे देशों के लिए भी ये जरूरी हो जाएगा कि वो AI नीति बनाते समय इन सवालों पर गंभीरता से विचार करें।
आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ।
Comments (0)
No comments yet. Be the first to comment!