भारत की ऑटो इंडस्ट्री पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं और इसकी वजह एक छोटा लेकिन बेहद जरूरी कंपोनेंट है, जिसे चीन ने अपनी पकड़ में ले लिया है।रेयर अर्थ मैग्नेट्स की सप्लाई में रुकावट ने पूरे मैन्युफैक्चरिंग चेन की रफ्तार को थाम दिया है।चीन ने हाल ही में रेयर अर्थ मैग्नेट्स के निर्यात पर नए और सख्त नियंत्रण लागू किए हैं। इस कारण भारत आने वाले शिपमेंट्स में देरी हो रही है।भारतीय ऑटो कंपनियों का कहना है कि अगर ये सप्लाई जल्दी बहाल नहीं हुई, तो प्रोडक्शन लाइनों को रोकना पड़ सकता है।रेयर अर्थ मैग्नेट्स से थमा ऑटो इंडस्ट्री का पहियाजिस कंपोनेंट ने इस परेशानी को जन्म दिया है, उसका नाम है नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन (NdFeB) चुंबक।ये बेहद दुर्लभ और जरूरी मैग्नेट्स हैं, जिनका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक और पेट्रोल-डीजल दोनों तरह के वाहनों में होता है।इनका इस्तेमाल मोटर, स्टेयरिंग, ब्रेक, वाइपर और ऑडियो सिस्टम तक में होता है। मतलब, गाड़ी में ये इतने हिस्सों में लगे होते हैं कि इनकी गैर-मौजूदगी से पूरी असेंबली लाइन ठप पड़ सकती है।भारतीय कंपनियों के पास इन मैग्नेट्स का स्टॉक बस जून की शुरुआत तक ही बचे होने की जानकारी सामने आई है। इसके बाद प्रोडक्शन में सीधा असर दिखने लगेगा।चीन के नए नियमों से फंसा पूरा सिस्टमअप्रैल से चीन ने निर्यात के लिए एक नई प्रक्रिया लागू की है, जिसके तहत शिपमेंट भेजने से पहले कंपनियों को सरकारी लाइसेंस लेना होगा और साथ ही खरीदारों से विस्तृत अंतिम-उपयोग प्रमाण पत्र भी पेश करना होगा।चीन दुनिया के 90% से ज्यादा रेयर अर्थ मैग्नेट्स को प्रोसेस करता है, इसलिए उसके नियमों का असर पूरी दुनिया की सप्लाई चेन पर पड़ रहा है। भारत इसका सबसे ताजा उदाहरण बन चुका है।इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि भारत के लिए भेजे जाने वाले कई कंसाइनमेंट चीन के बंदरगाहों पर अटके पड़े हैं।वहां कोई गतिविधि नहीं दिख रही। यूरोप की कुछ कंपनियों को जहां मंजूरी मिल गई है, वहीं भारतीय कंपनियां अब भी अप्रूवल का इंतजार कर रही हैं।जून के बाद रुक सकता है प्रोडक्शनउद्योग के जानकारों का कहना है कि अगर अगले कुछ हफ्तों में मंजूरी नहीं मिली, तो भारत की ऑटो इंडस्ट्री को मजबूरी में प्रोडक्शन रोकना पड़ सकता है। न केवल इलेक्ट्रिक वाहन, बल्कि पेट्रोल और डीजल गाड़ियों की लाइनें भी थम जाएंगी।सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) और ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ACMA) ने मिलकर एक प्रतिनिधिमंडल तैयार किया है, जो चीन जाकर अधिकारियों से बातचीत करेगा। उद्देश्य यही है कि मंजूरी जल्द से जल्द मिले और सप्लाई बहाल हो।सरकार कूटनीतिक स्तर पर एक्टिवभारत सरकार भी इस मामले में चुप नहीं बैठी है। वाणिज्य मंत्रालय और विदेश मंत्रालय, दोनों मिलकर कूटनीतिक स्तर पर चीन के संपर्क में हैं। राजनयिक चैनलों से इस संकट को सुलझाने की कोशिशें तेज की जा रही हैं।साल 2023-24 में भारत ने 460 टन रेयर अर्थ मैग्नेट्स का आयात किया, और लगभग पूरा आयात चीन से हुआ।इस साल का लक्ष्य 700 टन का था, लेकिन अब वो संकट में है। देश में इस स्तर पर फिलहाल कोई वैकल्पिक सप्लायर मौजूद नहीं है, जिससे पूरी निर्भरता चीन पर बनी हुई है।लंबे समय में भारत इस स्थिति से निकलने के लिए घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की योजनाएं बना रहा है। लेकिन जब तक वो हकीकत नहीं बनता, तब तक भारत की इंडस्ट्री को हर बार चीन की नीति और मर्जी पर ही निर्भर रहना होगा।आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ। Comments (0) Post Comment