ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
पाकिस्तान इस समय एक गहरे आर्थिक संकट के साथ-साथ एक बड़े खाद्य संकट से भी जूझ रहा है। देश में महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ रखी है, और इस आग में घी डालने का काम किया है पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ते तनाव ने। दोनों देशों के बीच सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग, तोरखम बॉर्डर के बंद होने से पाकिस्तान के बाजारों में हाहाकार मच गया है। हालात इतने खराब हो गए हैं कि पाकिस्तान के कई शहरों में टमाटर की कीमत 600 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई है। यह घटना सिर्फ दो पड़ोसियों के बीच एक व्यापारिक विवाद नहीं है, बल्कि इसके पीछे दशकों पुराना सीमा विवाद, आतंकवाद और तालिबान के साथ पाकिस्तान के बदलते रिश्तों की एक जटिल कहानी है, जो पूरे क्षेत्र की स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा बनती जा रही है।
क्यों बंद
हुआ तोरखम
बॉर्डर?
तोरखम बॉर्डर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच व्यापार और लोगों की आवाजाही का सबसे बड़ा और सबसे व्यस्त रास्ता है। हाल ही में, अफगान तालिबान ने इस बॉर्डर पर पाकिस्तानी सुरक्षा बलों द्वारा बनाए जा रहे एक नए बंकर के निर्माण पर आपत्ति जताई। तालिबान का कहना था कि यह निर्माण दोनों देशों के बीच हुए समझौते का उल्लंघन है। बात बढ़ने पर दोनों तरफ से गोलीबारी भी हुई, जिसके बाद तालिबान ने एकतरफा फैसला लेते हुए बॉर्डर को पूरी तरह से बंद कर दिया।
यह पहली बार नहीं है जब तोरखम बॉर्डर को बंद किया गया है। जब से अफगानिस्तान में तालिबान ने सत्ता संभाली है, तब से दोनों देशों के बीच रिश्ते लगातार तनावपूर्ण बने हुए हैं। पाकिस्तान, जो कभी तालिबान का सबसे बड़ा समर्थक माना जाता था, आज उसी तालिबान के साथ सीमा विवाद और आतंकवाद के मुद्दों पर उलझा हुआ है।
टमाटर
₹600 किलो: कैसे
बिगड़े हालात?
पाकिस्तान अपनी घरेलू जरूरतें पूरी करने के लिए सब्जियों और फलों, खासकर टमाटर और प्याज के लिए काफी हद तक अफगानिस्तान पर निर्भर है। तोरखम बॉर्डर के जरिए हर दिन सैकड़ों ट्रक अफगानिस्तान से ताजी सब्जियां लेकर पाकिस्तान आते हैं। जैसे ही यह बॉर्डर बंद हुआ, पाकिस्तान के बाजारों में सप्लाई चेन पूरी तरह से टूट गई।
इसका नतीजा यह हुआ कि कुछ ही घंटों में टमाटर और प्याज की कीमतें आसमान छूने लगीं। पेशावर, इस्लामाबाद, लाहौर और कराची जैसे बड़े शहरों में टमाटर की कीमतें 200 रुपये से बढ़कर 500-600 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गईं। इससे आम पाकिस्तानी नागरिक, जो पहले से ही आटा, दाल और पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से परेशान था, उसकी मुश्किलें और बढ़ गईं। यह खाद्य संकट पाकिस्तान की ভঙ্গুর अर्थव्यवस्था पर एक और बड़ा प्रहार है।
तनाव के पीछे की असली वजह: डूरंड रेखा और TTP
यह विवाद सिर्फ एक बंकर के निर्माण का नहीं है। इसके पीछे की असली वजह है 'डूरंड रेखा' और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP)।
डूरंड रेखा (Durand Line) : यह 2,670 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा 1893 में ब्रिटिश भारत और अफगानिस्तान के बीच खींची गई थी। पाकिस्तान इसे एक अंतरराष्ट्रीय सीमा मानता है, लेकिन अफगानिस्तान की कोई भी सरकार, चाहे वह लोकतांत्रिक हो या तालिबान, इसे कभी भी आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं देती है। अफगान लोग इसे एक कृत्रिम रेखा मानते हैं जिसने पश्तून आबादी को दो देशों में बांट दिया। तालिबान भी इस रेखा को नहीं मानता, और इसी वजह से सीमा पर अक्सर झड़पें होती रहती हैं।
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) : यह एक आतंकवादी संगठन है जो पाकिस्तान में शरिया कानून लागू करना चाहता है। TTP के लड़ाके पाकिस्तान में हमले करने के बाद अफगानिस्तान की सीमा में जाकर छिप जाते हैं। पाकिस्तान का आरोप है कि अफगान तालिबान TTP को पनाह दे रहा है और उन्हें नियंत्रित करने के लिए कुछ नहीं कर रहा है। वहीं, अफगान तालिबान इन आरोपों से इनकार करता है।
पाकिस्तान ने TTP पर दबाव बनाने के लिए ही सीमा पर बाड़ लगाना और चौकियां बनाना तेज कर दिया है, जिसका अफगान तालिबान विरोध कर रहा है। तोरखम बॉर्डर का बंद होना इसी बड़ी लड़ाई का एक छोटा सा हिस्सा है।
पाकिस्तान
के लिए
दोहरी मुसीबत
पाकिस्तान आज एक अजीबोगरीब स्थिति में फंसा हुआ है। एक तरफ, वह दुनिया को यह दिखाना चाहता है कि वह आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहा है। दूसरी तरफ, उसका अपना बनाया हुआ 'एसेट' (तालिबान) अब उसी के लिए एक बड़ी मुसीबत बन गया है। सीमा बंद होने से न सिर्फ उसे आर्थिक नुकसान हो रहा है, बल्कि उसकी पश्चिमी सीमा पर एक स्थायी अस्थिरता का खतरा भी पैदा हो गया है।
अगर यह बॉर्डर लंबे समय तक बंद रहता है, तो पाकिस्तान में खाद्य संकट और गहरा सकता है, जिससे सामाजिक अशांति भी फैल सकती है। यह घटना दिखाती है कि कैसे पड़ोसियों के साथ खराब रिश्ते और दशकों पुरानी भू-राजनीतिक गलतियां किसी भी देश को घुटनों पर ला सकती हैं। पाकिस्तान को अब यह तय करना होगा कि वह सीमा विवाद और आतंकवाद के इस चक्रव्यूह से कैसे बाहर निकलेगा, क्योंकि अब यह सिर्फ कूटनीति का सवाल नहीं, बल्कि उसके करोड़ों नागरिकों के पेट का सवाल बन गया है।
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