प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब आधिकारिक रूप से मालदीव की राजकीय यात्रा पर पहुंच चुके हैं, और वो राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के कार्यकाल में आमंत्रित किए गए पहले विदेशी राष्ट्राध्यक्ष हैं।इस यात्रा के दौरान पीएम मोदी मालदीव के 60वें स्वतंत्रता दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे।दिलचस्प ये है कि मुइज्जू वही नेता हैं, जिन्होंने अपने चुनावी अभियान के दौरान 'इंडिया आउट' का नारा दिया था।दरअसल, एक वक्त ऐसा भी था जब भारत और मालदीव के रिश्ते में दूरी साफ झलकने लगी थी। 2022 से 2024 के बीच मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने चीन की तरफ झुकाव दिखाया और भारत से दूरी बनानी शुरू कर दी थी।लेकिन भारत ने इस खटास को टालने के लिए बिना हो-हल्ला किए रणनीतिक तरीके से अपना काम किया।आज परिणाम सबके सामने है, पीएम मोदी खुद मालदीव के स्वतंत्रता दिवस के मंच पर खड़े हैं और उन्हें बुलाने वाला कोई और नहीं, बल्कि वही मुइज्जू हैं।मोदी की यात्रा क्यों है इतनी अहम?फिलहाल, ये यात्रा केवल एक समारोह में शिरकत भर नहीं है। ये एक मजबूत संदेश है, दक्षिण एशिया में भारत की मौजूदगी अब भी उतनी ही निर्णायक है जितनी पहले थी।ये पीएम मोदी की तीसरी मालदीव यात्रा है। पहली बार वो 2018 में राष्ट्रपति सोलिह के शपथ ग्रहण में गए थे, और दूसरी बार 2019 में द्विपक्षीय दौरे पर।इस बार वो एक नई राजनीतिक सत्ता के आमंत्रण पर मालदीव पहुंचे हैं, जिस सत्ता ने कभी भारत को बाहर करने की बात की थी।कैसे बदला भारत ने समीकरण?खैर, बदलाव कोई रातों-रात नहीं आया। भारत ने धीरे-धीरे और सोच-समझ कर मालदीव की जरूरतों को पहचाना और वहीं से कूटनीति शुरू की।आर्थिक सहायता के मोर्चे पर, भारत ने 2024 में मालदीव को 400 मिलियन डॉलर की मदद दी, साथ ही करेंसी स्वैप के लिए 3,000 करोड़ रुपये की सुविधा भी दी गई।डिफेन्स कोऑपरेशन के तहत भारत ने नौसैनिक उपकरण, विमानों की सेवाएं और सैन्य प्रशिक्षण जारी रखा।विकास में भागीदारी के लिए भारत ने 2025 में MVR 100 मिलियन की सहायता से फेरी सेवाओं का विस्तार किया।राजनीतिक संवाद के रूप में जनवरी और मई 2025 में हाई लेवल कोर ग्रुप की बैठकें नई दिल्ली और माले में आयोजित हुईं।क्या बदल गई है मालदीव की सोच?कहना गलत नहीं होगा कि अब मुइज्जू सरकार को भी समझ आ चुका है कि भारत का साथ सिर्फ मजबूरी नहीं, बल्कि समझदारी है। चीन भले कर्ज दे सकता है, लेकिन भरोसा नहीं। यही बात भारत ने साबित कर दी।चीन के बड़े वादों के उलट भारत ने समय पर मदद दी, बुनियादी सुविधाओं पर काम किया और मालदीव को कभी दबाव में नहीं रखा।भारत-मालदीव रिश्तों की नई परिभाषाअक्टूबर 2024 में मुइज्जू की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने ‘Comprehensive Economic and Maritime Security Partnership’ की घोषणा की थी।उसके बाद इसी साल 13 नए एमओयू पर दस्तखत हुए। इनमें से कई समझौते समुद्री सुरक्षा और फेरी सेवाओं के विस्तार से जुड़े हुए हैं।इसके साथ ही पिछले साल दोनों देशों के बीच 548 मिलियन डॉलर का व्यापार हुआ, जो दिखाता है कि आर्थिक मोर्चे पर भी साझेदारी मजबूत हो चुकी है।मालदीव में भारत की ये जीत किसे क्या संदेश देती है?भारत और मालदीव के संबंधों में स्थायित्व और विश्वास की वापसी हुई है। राष्ट्रपति मुइज्जू द्वारा पीएम मोदी को बुलाना बताता है कि भारत की अहमियत अब भी उतनी ही प्रासंगिक है। चीन को एक सीधा संदेश मिला है कि भारत इस क्षेत्र से हटने वाला नहीं है।शांति से लिखी गई एक कूटनीतिक पटकथाइसे एक रणनीतिक चुप्पी भी कहा जा सकता है, जिसमें भारत ने बगैर किसी बयानबाजी के मालदीव को दोबारा अपने घेरे में ले लिया।न हथियार की जरूरत पड़ी, न नारे की। सिर्फ भरोसे और समय पर निभाए गए वादों ने ये कूटनीतिक जीत भारत की झोली में डाल दी।अब प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी मालदीव के सबसे बड़े राष्ट्रीय मंच पर ये साफ संदेश देती है कि भारत इस क्षेत्र की कूटनीतिक धुरी है, और जब बात रणनीति की हो, तो भारत बिना शोर किए अपना काम कर जाता है।आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ। Comments (0) Post Comment
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