सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच रक्षा समझौता

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सऊदी अरब और पाकिस्तान ने बुधवार को एक अहम रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इस समझौते के तहत किसी एक देश पर हमला दूसरे देश पर हमला माना जाएगा। यानी अब पाकिस्तान और सऊदी अरब ने आपसी सुरक्षा और रक्षा को लेकर एक तरह की साझेदारी मजबूत कर ली है।

 सऊदी प्रेस एजेंसी ने बताया कि यह समझौता दोनों देशों की सुरक्षा बढ़ाने और विश्व में शांति स्थापित करने की उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। समझौते के दौरान सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के अलावा पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसीम मुनीर भी मौजूद थे। पाकिस्तान का हाई-लेवल डेलिगेशन, जिसमें उप प्रधानमंत्री इशाक डार, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ और वित्त मंत्री मोहम्मद औरंगजेब शामिल थे, भी इस बैठक का हिस्सा रहा।

 परमाणु हथियारों का जिक्र और रणनीतिक सहयोग

 रॉयटर्स से बातचीत में एक वरिष्ठ सऊदी अधिकारी ने बताया कि इस समझौते में हर तरह का सैन्य सहयोग शामिल होगा। जब उनसे पूछा गया कि क्या इसमें पाकिस्तान के परमाणु हथियार भी शामिल हो सकते हैं, तो उन्होंने 'हां' में जवाब दिया। यह बयान काफी गंभीर माना जा रहा है क्योंकि पाकिस्तान के पास ऐसे परमाणु हथियार और मिसाइल सिस्टम हैं जो पूरे मध्य-पूर्व, यहां तक कि इजराइल तक मार कर सकते हैं।

 इस समझौते का समय भी अहम है। कुछ ही दिन पहले इजराइल ने कतर की राजधानी दोहा में हमास नेता खलील अल-हय्या पर हमला किया था। इसके बाद मुस्लिम देशों की एक बैठक में पाकिस्तान ने NATO जैसी जॉइंट डिफेंस फोर्स बनाने का सुझाव दिया था। पाकिस्तानी उप प्रधानमंत्री इशाक डार ने कहा था कि पाकिस्तान एक परमाणु शक्ति है और इस्लामिक उम्माह की सुरक्षा में अपनी जिम्मेदारी निभाएगा।

 क्या यह अमेरिका पर निर्भरता से दूरी का संकेत है?

 अफगानिस्तान और इराक में अमेरिका के राजदूत रह चुके जलमय खलीलजाद ने इस समझौते पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भले ही यह औपचारिक 'संधि' नहीं है, लेकिन यह एक बड़ी रणनीतिक साझेदारी है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सऊदी अब अमेरिका की सुरक्षा गारंटी पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहता? यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या सऊदी लंबे समय से पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का अघोषित समर्थक रहा है।

 भारत की प्रतिक्रिया

 भारत सरकार ने इस समझौते पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि सरकार को इस समझौते की जानकारी थी और भारत इसके असर का गहराई से अध्ययन करेगा। उन्होंने कहा कि भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

 पाकिस्तान का अमेरिका के साथ पुराना समझौता

 यह कोई पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने किसी देश के साथ ऐसा समझौता किया हो। 1954 में पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ म्यूचुअल डिफेंस असिस्टेंस एग्रीमेंट (MDAA) साइन किया था, जिसके तहत दोनों देशों ने सैन्य सहयोग का वादा किया था। इसके अलावा पाकिस्तान SEATO और CENTO जैसे संगठनों में भी शामिल हुआ था। लेकिन 1979 में ईरान क्रांति और पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम पर अमेरिकी नाराजगी के चलते ये समझौते टूट गए।

 इतिहास गवाह है कि 1947, 1965 और 1971 की भारत-पाक जंग के दौरान भी अमेरिका ने पाकिस्तान की सीधे मदद नहीं की। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सऊदी अरब इस बार पाकिस्तान के साथ अलग तरह का रिश्ता बनाने जा रहा है, जिसमें रक्षा सहयोग महज औपचारिकता रहकर वास्तविक रणनीतिक साझेदारी साबित हो सकता है।

 कुल मिलाकर, सऊदी अरब और पाकिस्तान का यह नया रक्षा समझौता केवल कागजी औपचारिकता नहीं बल्कि मध्य-पूर्व और दक्षिण एशिया की राजनीति को बदलने वाला कदम साबित हो सकता है। खासकर परमाणु हथियारों के जिक्र ने इसे और संवेदनशील बना दिया है। भारत के लिए यह चुनौती भी है और चेतावनी भी कि क्षेत्रीय सुरक्षा संतुलन अब नए मोड़ पर पहुंच रहा है।

 

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