हाल ही में इज़रायल और ईरान के बीच जो तगड़ी तनातनी देखने को मिली, उसमें सिर्फ हथियार नहीं बोले, बल्कि इतिहास की सबसे काली आग भी दोबारा धधक उठी।इजरायल ने ईरान के सबसे बड़े गैस फील्ड और एक ऑयल डिपो को निशाना बनाकर हमला किया, जिससे लगी भीषण आग ने 1991 की उस तबाही की याद ताजा कर दी जब इराक़ के तानाशाह सद्दाम हुसैन ने कुवैत से पीछे हटते हुए 700 से भी ज़्यादा तेल कुओं को आग के हवाले कर दिया था।हुआ यूं था कि खाड़ी युद्ध यानी Gulf War के दौरान, जब अमेरिका के नेतृत्व में गठबंधन सेनाएं कुवैत को इराक़ी कब्ज़े से आज़ाद कराने में जुटीं, तो इराकी सेना ने पीछे हटते हुए ‘पेट्रोलियम बदला’ ले लिया। उन्होंने कुवैत के तेल कुओं में आग लगाकर पूरी दुनिया को चौंका दिया।ये आग इतनी खतरनाक थी कि दिन में भी आसमान काले धुएं से ढक जाता था और सूरज तक दिखाई नहीं देता था।सद्दाम का 'तेल प्रहार': एक सुनियोजित तबाहीगौर करने वाली बात ये है कि ये आग किसी दुर्घटना की वजह से नहीं लगी थी, बल्कि इराकी फौज ने खुद प्लानिंग करके इन कुओं को जलाया था। जनवरी से फरवरी 1991 के बीच में 605 से लेकर 732 कुएं जलाए गए।ऐसा करने के पीछे सद्दाम का मकसद सीधा था, अमेरिका और उसके सहयोगियों को पीछे हटने के बाद भी आर्थिक नुक़सान देना। और उन्होंने इसमें कोई कसर नहीं छोड़ी।कितनी बड़ी थी तबाही? आंकड़े सुनकर दिमाग घूम जाएगाआग बुझाने में सिर्फ दमकल ही नहीं, इंटरनेशनल लेवल की ऑयल फायर फाइटिंग कंपनियों को बुलाया गया। अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, रूस, सब ने मिलकर इस काम को अंजाम दिया।लेकिन पहली आग बुझी अप्रैल 1991 में और आखिरी कुआं बुझाया गया 6 नवंबर 1991 को। यानी पूरे 8 महीने तक आग धधकती रही।अब ज़रा आंकड़ों पर गौर कीजिए, इन जलते कुओं से हर दिन 4 से 6 मिलियन बैरल कच्चा तेल और 70 से 100 मिलियन क्यूबिक मीटर गैस जलकर उड़ रही थी।सोचिए, ये वही तेल है जो कई देशों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होता है। इस तबाही ने सिर्फ कुवैत ही नहीं, बल्कि पूरे वेस्ट एशिया को हिला कर रख दिया था।धरती पर अंधेरा, पानी में ज़हरइतना ही नहीं, इन कुओं से उठता ज़हरीला धुआं 800 मील तक फैल गया था। हवा में कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसी ज़हरीली गैसें फैल गईं।फारस की खाड़ी में कच्चे तेल की इतनी मात्रा बह गई कि समुद्री जीवों की जान पर बन आई। समुद्र में जो ऑयल स्पिल हुआ, उसने पारिस्थितिकी तंत्र को स्थायी नुकसान पहुंचाया। कुवैत की अर्थव्यवस्था को तो जैसे सद्दाम ने तबाह करने की कसम खा ली थी।अब इज़रायल के हमले से वही मंजर दोहराने का डरऔर अब 2025 में, जब इज़रायल ने ईरान पर हमला कर दुनिया के सबसे बड़े गैस फील्ड और ऑयल डिपो को तबाह किया, तो हालात कुछ-कुछ वैसे ही लगने लगे हैं। चौंकाने वाली बात ये है कि अभी तो सिर्फ एक फील्ड और एक डिपो पर हमला हुआ है, लेकिन इज़रायली सरकार लगातार चेतावनी दे रही है कि अगर ईरान पीछे नहीं हटा, तो बड़े एटॉमिक रिएक्टरों को भी उड़ाया जा सकता है।अगर इतिहास दोहराया गया, तो भारत भी नहीं बचेगामौजूदा हालात में अगर तेल सुविधाएं और ज़्यादा तबाह होती हैं, तो इसका सीधा असर भारत जैसे देशों पर भी पड़ेगा।भारत अपनी कुल जरूरत का 85% क्रूड ऑयल आयात करता है, जिसमें ईरान, इराक, यूएई और सऊदी अरब से बड़ी सप्लाई आती है।इन देशों से तेल की सप्लाई रुकने का मतलब है, तेल की कीमतों का आसमान छूना, महंगाई में आग लगना, और आम आदमी की कमर टूट जाना।क्या सबक मिला? युद्ध में कोई नहीं जीततासद्दाम की तबाही हो या इज़रायली अटैक, एक बात साफ है, जब युद्ध होता है, तो सिर्फ सैनिक नहीं मरते, पूरा भविष्य जलता है।जलते कुएं, बहते ज़हर, और दम तोड़ती ज़िंदगियां इस बात की गवाही हैं कि गोलियों से शांति कभी नहीं आती।आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ। Comments (0) Post Comment