ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
तुर्किये
के
राष्ट्रपति
रेसेप
तईप
एर्दोगन
ने
मंगलवार
को
न्यूयॉर्क
में
संयुक्त
राष्ट्र
महासभा (UNGA) के 80वें
सत्र
में
जम्मू-कश्मीर
का
मुद्दा
उठाया।
उन्होंने
भारत
और
पाकिस्तान
के
बीच
बातचीत
के
जरिए
इस
विवाद
को
हल
करने
की
वकालत
की।
एर्दोगन
ने
कहा
कि
अप्रैल 2025 में
दोनों
देशों
के
बीच
तनाव
के
बाद
जो
सीजफायर
हुआ, वह सकारात्मक कदम है। उन्होंने जोर देकर कहा कि कश्मीर के लोगों के लिए यह मुद्दा UN सुरक्षा
परिषद
की
मदद
से
सुलझाया
जाना
चाहिए।
भारत
ने
पहले
ही
ऐसी
टिप्पणियों
को
खारिज
कर
दिया
है
और
बार-बार कहा है कि जम्मू-कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है। एर्दोगन 2019 से
हर
साल UN में
कश्मीर
का
जिक्र
कर
रहे
हैं, जिसमें वे पाकिस्तान के समर्थन में बयान देते हैं।
पाकिस्तान के समर्थन में एर्दोगन की भूमिका
एर्दोगन
ने 17 मई 2025 को
भारत-पाक विवाद के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से कश्मीर मुद्दे पर बातचीत की थी। उन्होंने पाकिस्तान को ड्रोन्स और हथियारों सहित तकनीकी समर्थन देने का भी संकेत दिया। उन्होंने कहा कि यदि दोनों देश तैयार हों, तो वे कश्मीर मामले में मध्यस्थता कर सकते हैं। उनका मकसद शांति बनाए रखना और दोनों पड़ोसियों के बीच तनाव कम करना बताया गया।
24 मई 2025 को
इस्तांबुल
में
हुई
मुलाकात
में
एर्दोगन
ने
पाकिस्तान
को
खुफिया
जानकारी, टेक्नोलॉजिकल
सपोर्ट, एनर्जी, ट्रांसपोर्ट
और
डिफेंस
क्षेत्रों
में
सहयोग
देने
का
वादा
किया।
OIC
की बैठक और कश्मीरी कैदियों पर चिंता
23 सितंबर 2025 को UN महासभा
के
दौरान OIC (इस्लामिक
सहयोग
संगठन) की
जम्मू-कश्मीर
संपर्क
समूह
की
बैठक
हुई।
इसमें
अजरबैजान, पाकिस्तान, तुर्किये, सऊदी
अरब
और
नाइजर
के
विदेश
मंत्रियों
और
वरिष्ठ
अधिकारियों
ने
हिस्सा
लिया।
समूह
ने
भारत-पाक सीजफायर को सराहा और जोर दिया कि कश्मीर मुद्दे का समाधान ही स्थायी शांति ला सकता है।
बैठक
में
कश्मीरी
नेता
शब्बीर
अहमद
शाह
को
लगातार
हिरासत
में
रखने
और
जमानत
न देने
पर
चिंता
जताई
गई। OIC ने
भारत
से
अनुरोध
किया
कि
जम्मू-कश्मीर
में
राजनीतिक
कैदियों
को
रिहा
किया
जाए, कठोर कानून हटाए जाएं और राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध कम किया जाए।
इजराइल-गाजा और फिलिस्तीन को मान्यता
एर्दोगन
ने
अपने
भाषण
में
गाजा
में
इजराइल
के
हमलों
की
भी
कड़ी
निंदा
की।
उन्होंने
इसे
बच्चों
और
आम
लोगों
के
लिए
नरसंहार
बताया।
उन्होंने
दुनिया
से
फिलिस्तीन
के
समर्थन
में
खड़े
होने
और
उसे
मान्यता
देने
की
मांग
की।
हाल
ही
में
फ्रांस, मोनाको, माल्टा, लक्जमबर्ग
और
बेल्जियम
ने
फिलिस्तीन
को
स्वतंत्र
राष्ट्र
के
रूप
में
मान्यता
दी।
इससे
फिलिस्तीन
को
संयुक्त
राष्ट्र
के
कार्यक्रमों
में
शामिल
होने
की
अनुमति
मिल
गई, लेकिन वोटिंग का अधिकार नहीं। चीन और रूस ने 1988 में
फिलिस्तीन
को
मान्यता
दी
थी।
एर्दोगन
ने
कहा
कि
फिलिस्तीन
की
स्वतंत्रता
के
लिए
यह
आवश्यक
है
कि
सभी
देश
इंसानियत
के
नाम
पर
खड़े
हों।
उन्होंने
इजराइल
के
हमलों
को
नाकाम
बताते
हुए
कहा
कि
मानव
जीवन
की
रक्षा
प्राथमिकता
होनी
चाहिए।
आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप
एर्दोगन
ने UN महासभा
में
जम्मू-कश्मीर, गाजा
और
फिलिस्तीन
जैसे
महत्वपूर्ण
वैश्विक
मुद्दों
पर
अपनी
स्पष्ट
राय
दी।
उनका
कहना
है
कि
बातचीत
और
शांति
बनाए
रखने
के
उपाय
ही
स्थायी
समाधान
ला
सकते
हैं।
भारत
ने
उनके
बयान
को
खारिज
करते
हुए
कहा
कि
यह
देश
के
आंतरिक
मामलों
में
हस्तक्षेप
है।
यह
घटनाक्रम
वैश्विक
राजनीति
में
एर्दोगन
और
तुर्किये
की
भूमिका
को
उजागर
करता
है
और
क्षेत्रीय
स्थिरता
के
लिए
अंतरराष्ट्रीय
बातचीत
की
अहमियत
को
रेखांकित
करता
है।
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