ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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कैसे मजबूत हुई अफगानी?
इसके पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं। तालिबान सरकार ने देश के अंदर अमेरिकी डॉलर के इस्तेमाल पर सख्ती से रोक लगा दी है और सभी लेनदेन केवल अफगानी में करने का आदेश दिया है। इसके अलावा, विदेशों से आने वाली मानवीय सहायता (Humanitarian Aid) और विदेशी मुद्रा के देश से बाहर जाने पर कड़े नियंत्रण ने भी अफगानी को मजबूती दी है।
आंकड़े क्या कहते हैं?
तालिबान के सत्ता में आने से पहले, एक अमेरिकी डॉलर लगभग 100 अफगानी के बराबर था। लेकिन अब, एक डॉलर की कीमत लगभग 70 अफगानी के आसपास आ गई है। वहीं, एक अफगानी की कीमत 1.18 भारतीय रुपये के बराबर हो गई है। इस तरह, अफगानी करेंसी इस तिमाही में दुनिया की सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में से एक बन गई है।
क्या यह असली मजबूती है?
हालांकि आंकड़े प्रभावशाली हैं, लेकिन कई अर्थशास्त्री इसे स्थायी आर्थिक सुधार नहीं मानते। उनका कहना है कि यह मजबूती बाहरी मदद और सख्त नियंत्रणों के कारण है। अफगानिस्तान में अभी भी गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी एक बड़ी समस्या है। देश की अर्थव्यवस्था काफी हद तक विदेशी सहायता पर निर्भर है। इसलिए, करेंसी की यह मजबूती जमीनी हकीकत से कितनी मेल खाती है, यह एक बड़ा सवाल है।
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