ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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जनता के राष्ट्रपति का यादगार किस्सा
भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल
कलाम को सिर्फ 'मिसाइल मैन' ही नहीं,
बल्कि
'जनता का राष्ट्रपति' भी कहा जाता है। उनकी सादगी, विनम्रता
और देश के प्रति समर्पण के किस्से आज भी लोगों को प्रेरणा देते हैं। उनकी जयंती के
अवसर पर हम आपको एक ऐसा ही किस्सा बताने जा रहे हैं, जो दिखाता है कि
वह देश के नायकों का कितना सम्मान करते थे और उनके लिए किसी भी हद तक जा सकते थे।
यह किस्सा भारत के पहले फील्ड मार्शल, सैम मानेकशॉ से जुड़ा है।
जब कलाम मिलने पहुंचे फील्ड मार्शल से
यह बात तब की है जब डॉ. कलाम देश के राष्ट्रपति
थे। उन्हें पता चला कि 1971 युद्ध के नायक फील्ड मार्शल सैम
मानेकशॉ की तबीयत ठीक नहीं है और वह वेलिंगटन (तमिलनाडु) के सैन्य अस्पताल में भर्ती
हैं। डॉ. कलाम बिना किसी तामझाम के उनसे मिलने अस्पताल पहुंच गए। दोनों के बीच
काफी देर तक देश और सेना को लेकर बातें होती रहीं। इसी बातचीत के दौरान फील्ड
मार्शल मानेकशॉ ने मजाकिया अंदाज में डॉ. कलाम से एक शिकायत की।
"मुझे मेरी पेंशन नहीं मिलती"
मानेकशॉ ने राष्ट्रपति कलाम से कहा,
"राष्ट्रपति जी, मुझे फील्ड मार्शल के पद की सैलरी तो
कभी मिली ही नहीं और अब कई सालों से मेरी पेंशन भी नहीं मिल रही है।" यह
सुनकर डॉ. कलाम हैरान रह गए। उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि देश के इतने बड़े नायक को
नौकरशाही की वजह से अपना हक नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने मानेकशॉ को भरोसा दिलाया
कि वह इस मामले को देखेंगे।
राष्ट्रपति का तुरंत एक्शन और यादगार वापसी
दिल्ली लौटते ही राष्ट्रपति कलाम ने अपने सचिव
को बुलाया और तुरंत रक्षा मंत्रालय से संपर्क करने को कहा। उन्होंने आदेश दिया कि
फील्ड मार्शल मानेकशॉ की पेंशन से जुड़ी फाइल तुरंत उनके सामने पेश की जाए। Bureaucratic
लालफीताशाही
को दरकिनार करते हुए, उन्होंने कुछ ही घंटों में मानेकशॉ की रुकी हुई
पेंशन के सारे बकाये को मंजूरी दे दी। यह रकम करीब 1.3 करोड़ रुपये
थी।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। डॉ. कलाम
सिर्फ आदेश देकर नहीं रुके। वह खुद उस पेंशन के बकाये का चेक लेकर वापस वेलिंगटन
के लिए उड़ान भर गए और व्यक्तिगत रूप से वह चेक फील्ड मार्शल मानेकशॉ को सौंपा। यह
घटना दिखाती है कि डॉ. कलाम सिर्फ एक राष्ट्रपति नहीं थे, बल्कि एक ऐसे
इंसान थे जिनके दिल में देश के जवानों और नायकों के लिए असीम सम्मान था।
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