ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
अमेरिकी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयान ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में
हलचल मचा दी है। ट्रंप ने दावा किया था कि चीन गुप्त रूप से परमाणु परीक्षण कर रहा
है। इस पर चीन ने सख्त प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह आरोप पूरी तरह निराधार हैं और
उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह पारदर्शी और जिम्मेदार है।
हालांकि
चीन ने ट्रंप के आरोपों को खारिज किया है, लेकिन यह भी सच है कि आज चीन दुनिया के उन
देशों में शामिल है जिनके पास सबसे बड़ा परमाणु हथियारों का भंडार मौजूद है और वह तेजी
से अपनी परमाणु क्षमता को विस्तार दे रहा है।
चीन के पास कितने परमाणु हथियार हैं?
स्टॉकहोम
इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) और फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स
(FAS) की रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन के पास करीब 600 परमाणु वारहेड्स मौजूद हैं। चीन
के शस्त्रागार में भूमि, समुद्र और वायु—तीनों माध्यमों से परमाणु हमला करने की क्षमता
शामिल है।
चीन
के पास DF-5, DF-31/31A और DF-41 जैसी लंबी दूरी की मिसाइलें हैं जो हजारों किलोमीटर
दूर तक मार कर सकती हैं। वहीं, Type 094 पनडुब्बियों में लगी JL-2 और JL-3 मिसाइलें
समुद्र से परमाणु हमला करने में सक्षम हैं। इसके अलावा, H-6K/H-6N बॉम्बर्स हवा से
परमाणु हमले की क्षमता बढ़ाते हैं।
‘नो फर्स्ट यूज़’ की नीति लेकिन बढ़ती शक्ति
चीन
की आधिकारिक नीति हमेशा से “No First Use” (NFU) यानी पहले परमाणु हमला न करने की रही
है। इसका अर्थ यह है कि चीन परमाणु हथियारों का प्रयोग केवल तब करेगा जब उस पर पहले
हमला किया जाए।
लेकिन
पिछले एक दशक में चीन ने जिस गति से अपने मिसाइल साइलो नेटवर्क, मोबाइल लॉन्च प्लेटफॉर्म
और परमाणु पनडुब्बियों की संख्या बढ़ाई है, उससे यह संकेत जरूर मिलता है कि वह अब
“न्यूनतम प्रतिरोध” से आगे बढ़कर “विश्वसनीय और टिकाऊ परमाणु शक्ति” बनने की दिशा में
काम कर रहा है।
कैसे शुरू हुई चीन की परमाणु यात्रा
1949
में जनवादी गणराज्य चीन की स्थापना के बाद से ही राष्ट्रीय सुरक्षा उसकी शीर्ष प्राथमिकता
रही। कोरियाई युद्ध (1950–53) और अमेरिका-सोवियत संघ के बीच बढ़ती तनातनी ने चीन को
यह समझा दिया था कि परमाणु शक्ति के बिना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसका प्रभाव सीमित
रहेगा।
1950
के दशक के अंत में सोवियत संघ ने चीन को परमाणु तकनीक और अनुसंधान में मदद दी, लेकिन
1959-60 में दोनों देशों के मतभेद बढ़े और यह सहयोग खत्म हो गया। इसके बाद चीन ने
“स्वदेशी मार्ग (Self-Reliance)” अपनाया और अपनी वैज्ञानिक संस्थाओं के सहयोग से खुद
ही इस दिशा में काम शुरू किया।
16
अक्टूबर 1964 को चीन ने लोप नूर परीक्षण स्थल पर अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, जिसका
कोडनेम “596” था। इसके सिर्फ 32 महीने बाद, 17 जून 1967 को चीन ने सफलतापूर्वक हाइड्रोजन
बम (H-बम) का परीक्षण किया, जिससे वह दुनिया की पांचवीं परमाणु शक्ति बन गया।
परमाणु कार्यक्रम के जनक: दंग जियासिएन और
यू मिन
चीन
के परमाणु कार्यक्रम की सफलता के पीछे कई वैज्ञानिकों का योगदान रहा।
◘ दंग जियासिएन (Deng Jiaxian) को चीन के परमाणु बम का जनक माना जाता है।
◘ यू मिन (Yu Min) हाइड्रोजन बम के आर्किटेक्ट के रूप में प्रसिद्ध
हैं।
◘ कियान सानकियांग (Qian Sanqiang) को “चीन का रदरफोर्ड” कहा जाता है जिन्होंने
परमाणु विज्ञान की नींव रखी।
◘ वहीं
छियान श्वेसन (Qian Xuesen) ने चीन के रॉकेट और मिसाइल कार्यक्रम को दिशा दी।
इन
वैज्ञानिकों की मेहनत से चीन आज दुनिया की अग्रणी परमाणु शक्तियों में शामिल है।
क्या चीन आज भी परमाणु परीक्षण करता है?
1996
में चीन ने Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty (CTBT) पर हस्ताक्षर किए और तब से
उसने कोई आधिकारिक परमाणु परीक्षण नहीं किया है। हालांकि, अमेरिका और अन्य पश्चिमी
देशों की खुफिया एजेंसियां यह दावा करती रही हैं कि चीन कंप्यूटर सिमुलेशन और सब-क्रिटिकल
टेस्टिंग के जरिए अपने हथियारों को बेहतर बना रहा है।
लेकिन
अब तक किसी भी सक्रिय या विस्फोटक परमाणु परीक्षण की पुष्टि नहीं हुई है।
ट्रंप के दावे की सच्चाई क्या है?
अमेरिकी
राजनीति में रक्षा और सुरक्षा हमेशा एक चुनावी मुद्दा रहे हैं। ट्रंप के बयान को भी
इसी संदर्भ में देखा जा सकता है। हालांकि चीन अपने परमाणु शस्त्रागार का विस्तार जरूर
कर रहा है, परंतु किसी भी नए गुप्त परीक्षण के ठोस सबूत अभी तक सामने नहीं आए हैं।
कुल
मिलाकर कहा जा सकता है कि ट्रंप का दावा राजनीतिक बयानबाज़ी ज्यादा लगता है, लेकिन
यह सच भी है कि चीन की बढ़ती परमाणु क्षमता ने अमेरिका समेत पूरी दुनिया को सतर्क कर
दिया है।
Comments (0)
No comments yet. Be the first to comment!