भारत में मुगल शासन की चर्चा जब भी होती है, तो उनके ऐशो-आराम और भव्य जीवनशैली का जिक्र ज़रूर होता है।दरअसल, 1526 में बाबर द्वारा मुगल सल्तनत की नींव रखे जाने के बाद से ही विलासिता की नींव पड़ने लगी थी, लेकिन इस साम्राज्य को असली आर्थिक मजबूती और फैलाव अकबर के दौर में मिला।कहना गलत नहीं होगा कि अकबर के शासनकाल से लेकर औरंगज़ेब के समय तक मुगलों का युग ‘स्वर्णकाल’ के नाम से जाना गया, और यहीं से विदेशी वस्तुओं का आयात एक सामान्य शाही परंपरा बन गया।शराब से लेकर तंबाकू तक... कहां से आता था सामान?अगर मुगल बादशाहों की नशे की लत की बात करें तो बाबर से लेकर जहांगीर तक कई शासकों को शराब और अफीम का बेहद शौक था।इतिहासकारों के अनुसार, जहांगीर को तो सबसे अधिक शराब पीने वाला मुगल शासक माना जाता है।वहीं बाबर के बारे में भी यही कहा जाता है कि वो फारस से विशेष शराब मंगवाता था। अफीम, तंबाकू और अन्य नशीले पदार्थों के लिए मुगलों की निर्भरता मुख्यतः मध्य एशिया और ईरान पर थी।विदेशी व्यापार को मिली रफ्तार, कपड़ों और बर्तनों की बड़ी मांगअकबर के समय से ही भारत का व्यापार चीन, अरब, मिस्र और यूरोप के देशों तक फैल चुका था।फिलहाल उपलब्ध ऐतिहासिक तथ्यों से ये सामने आता है कि मुगल चीन से बारीक रेशमी कपड़े मंगवाते थे, वहीं यूरोपीय देशों से खास किस्म के ऊनी और रंगीन कपड़ों का आयात किया जाता था।वहीं चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया से चीनी मिट्टी के बर्तन, चाय, कपूर और चंदन की लकड़ियाँ भी भारी मात्रा में मंगाई जाती थीं। कहने में गलत नहीं होगा कि ये व्यापार केवल जरूरत नहीं, बल्कि विलासिता का प्रतीक था।ईरान-अफगानिस्तान से मेवे, बहरीन से घोड़ेयहाँ गौर करने वाली बात ये है कि मुगल काल में फलों और मेवों की भी भारी मांग थी। खास तौर पर ईरान और अफगानिस्तान से सूखे मेवे और विशेष फलों को आयात किया जाता था।वहीं घोड़ों के लिए काबुल, बहरीन, मस्कट और अदन जैसे स्थान मुगलों की पहली पसंद रहे।साथ ही सेना में उपयोग होने वाले हथियारों को यूरोप के देशों से मंगवाया जाता था, जो तकनीक और गुणवत्ता में उस दौर के स्थानीय सामानों से बेहतर माने जाते थे।सिर्फ आयात नहीं, हिन्दुस्तान से भी होता था निर्यातदरअसल, मुगल साम्राज्य केवल विदेशी चीज़ें मंगवाने में ही आगे नहीं था, बल्कि भारत से भी बड़ी मात्रा में सामान का निर्यात होता था।वहीं इतिहास में ये भी दर्ज है कि हिन्दुस्तानी मसालों, इत्र, कपड़ों और बहुमूल्य पत्थरों की दुनिया भर में भारी मांग थी।इसके अलावा भारत से नील, सूती कपड़ा, रेशम, हाथी दांत, जरी और अन्य विलासितापूर्ण वस्तुएं भी विदेशी बाज़ारों में भेजी जाती थीं। कह सकते हैं कि हिन्दुस्तान उस समय ग्लोबल ट्रेड का बड़ा केंद्र बन चुका था।बहरहाल, आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ। Comments (0) Post Comment
गाज़ियाबाद में ₹60 लाख की मर्सिडीज जलभराव में फंसी, मालिक ने मांगा ₹5 लाख मुआवज़ा Aug 01, 2025 Read More
दिल्ली में आपदा प्रबंधन को लेकर बड़ा अभ्यास, स्कूलों और मेट्रो स्टेशनों पर चली मॉक ड्रिल Aug 01, 2025 Read More
दिल्ली: बीमार का इलाज क्या होगा जब अस्पताल ही बीमार! सफदरजंग के गलियारे में भर गया बरसाती पानी Jul 31, 2025 Read More