ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश (CJI) पर जूता फेंकने की कोशिश की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह घटना न केवल शर्मनाक है, बल्कि यह "अदालत की अवमानना" का एक गंभीर मामला भी है। इस घटना के बाद यह सवाल उठना लाजिमी है कि अगर कोई व्यक्ति, खासकर एक वकील, अदालत के अंदर इस तरह का हंगामा करता है, तो उसके खिलाफ कानून में क्या कार्रवाई हो सकती है? आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
क्या है अदालत की अवमानना?
अदालत की अवमानना (Contempt of Court) का मतलब है अदालत के अधिकार, गरिमा और न्याय
प्रक्रिया में जानबूझकर बाधा डालना या उसका अनादर करना। भारत में, यह 'अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971' के तहत एक दंडनीय अपराध है। अवमानना दो प्रकार की होती है:
कितनी हो सकती है सजा?
अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 12 के अनुसार, अवमानना
के दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को छह महीने तक की साधारण कैद या दो हजार रुपये तक
का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। हालांकि, यदि दोषी माफी मांग लेता है और अदालत उसकी माफी से संतुष्ट हो जाती है,
तो वह उसे माफ भी कर सकती है।
वकीलों के लिए क्या हैं खास नियम?
जब कोई वकील ऐसा करता है, तो मामला और भी गंभीर हो जाता है क्योंकि उनसे अदालत की गरिमा बनाए रखने
की उम्मीद की जाती है। ऐसे मामलों में, अदालत की अवमानना की
कार्रवाई के अलावा, 'अधिवक्ता अधिनियम, 1961' के तहत भी कार्रवाई होती है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) या राज्य बार काउंसिल ऐसे वकील के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकती
है। इसमें वकील को फटकार लगाना, कुछ समय के लिए प्रैक्टिस से
निलंबित करना या गंभीर मामलों में उनका नाम वकीलों के रजिस्टर से स्थायी रूप से
हटाना (लाइसेंस रद्द करना) शामिल हो सकता है।
राकेश किशोर के मामले में क्या हुआ?
CJI पर जूता फेंकने की कोशिश करने वाले वकील राकेश किशोर के मामले में, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने तुरंत कार्रवाई करते हुए उन्हें प्रैक्टिस से निलंबित कर दिया है। यह एक अनुशासनात्मक कार्रवाई है। आपराधिक अवमानना के लिए सुप्रीम कोर्ट खुद संज्ञान ले सकता है, लेकिन फिलहाल कोर्ट ने ऐसा नहीं किया है। यह कानून की ताकत को दर्शाता है कि न्यायपालिका की गरिमा को चुनौती देने वाले किसी भी कृत्य को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, चाहे वह किसी आम नागरिक द्वारा किया गया हो या कानून के अपने अधिकारी द्वारा।
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