यूपी चुनाव 2027: समाजवादी पार्टी का मास्टरस्ट्रोक? हर घर को सरकारी नौकरी का वादा, जानिए क्या यह संभव है

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में वादों का एक लंबा इतिहास रहा है, लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी ने एक ऐसा चुनावी दांव खेला है जिसने पूरे सियासी गलियारे में हलचल मचा दी है। साल 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सपा ने अभी से ही अपनी बिसात बिछानी शुरू कर दी है। सपा के सांसद वीरेंद्र सिंह ने एक चौंकाने वाला ऐलान करते हुए कहा है कि अगर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनती है, तो हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी। यह वादा सुनने में जितना आकर्षक लगता है, उतना ही यह सवालों के घेरे में भी हैक्या यह सिर्फ एक चुनावी जुमला है या इसके पीछे कोई ठोस रणनीति है? क्या उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में 'हर घर, एक सरकारी नौकरी' का सपना साकार हो सकता है? यह घोषणा सपा के लिए मास्टरस्ट्रोक साबित होगी या गले की फांस, यह बहस अब तेज हो गई है।

 क्या है सपा का 'हर घर नौकरी' का फॉर्मूला?

समाजवादी पार्टी के सांसद वीरेंद्र सिंह ने यह घोषणा करके विपक्ष को सोचने पर मजबूर कर दिया है। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी आज उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी समस्या है और युवाओं को सम्मानजनक जीवन देने के लिए सरकारी नौकरी से बेहतर कोई विकल्प नहीं है। उनके अनुसार, सपा की सरकार बनने पर एक व्यापक योजना तैयार की जाएगी, जिसके तहत राज्य के हर परिवार का सर्वे होगा और जिस परिवार में कोई भी सदस्य सरकारी नौकरी में नहीं है, वहां के एक योग्य युवा को सरकारी नौकरी दी जाएगी। यह वादा सीधे तौर पर प्रदेश के करोड़ों बेरोजगार युवाओं और उनके परिवारों को लक्षित करता है, जो अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। सपा इस वादे के जरिए यह संदेश देना चाहती है कि वह सिर्फ लैपटॉप और बेरोजगारी भत्ते तक सीमित नहीं है, बल्कि वह स्थायी रोजगार देने का एक ठोस इरादा रखती है।

 

 इस वादे के राजनीतिक मायने

यह घोषणा ऐसे समय में की गई है जब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार लगातार निवेश और निजी क्षेत्र में रोजगार पैदा करने का दावा कर रही है। ऐसे में, सपा ने सरकारी नौकरी का कार्ड खेलकर बीजेपी के विकास मॉडल को सीधी चुनौती दी है। उत्तर प्रदेश में आज भी सरकारी नौकरी को सामाजिक प्रतिष्ठा और आर्थिक सुरक्षा का सबसे बड़ा पैमाना माना जाता है। सपा इस भावना को भुनाना चाहती है।

 

1.  युवाओं को सीधा संदेश: यह वादा सीधे तौर पर युवा मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए है। सपा यह जानती है कि अगर वह युवाओं का एक बड़ा हिस्सा अपने साथ जोड़ने में कामयाब हो जाती है, तो 2027 की राह आसान हो सकती है।

2. बीजेपी पर दबाव: इस घोषणा ने बीजेपी को रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया है। अब बीजेपी को यह साबित करना होगा कि उनका रोजगार मॉडल सपा के वादे से बेहतर है। उन्हें यह बताना होगा कि क्या निजी क्षेत्र की नौकरियां सरकारी नौकरी का विकल्प बन सकती हैं।

3.  जातिगत समीकरणों से ऊपर उठने की कोशिश : सपा अक्सर यादव-मुस्लिम समीकरण वाली पार्टी के रूप में देखी जाती है। 'हर घर नौकरी' का वादा एक ऐसा वादा है जो हर जाति, हर धर्म और हर वर्ग के परिवार को छूता है। इसके जरिए अखिलेश यादव अपनी पार्टी की छवि को और व्यापक बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

 

क्या यह वादा व्यावहारिक है? सवालों के घेरे में सपा

समाजवादी पार्टी का यह वादा जितना बड़ा है, उतने ही बड़े इस पर सवाल भी उठ रहे हैं। आलोचक और अर्थशास्त्री इसे एक 'असंभव वादा' बता रहे हैं।

 

आर्थिक बोझ : उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 24 करोड़ से भी ज्यादा है। अगर हम परिवारों की संख्या का अनुमान लगाएं तो यह आंकड़ा भी करोड़ों में होगा। हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देने का मतलब है लाखों-करोड़ों नई सरकारी नौकरियां पैदा करना। इन नौकरियों के लिए वेतन, पेंशन और अन्य भत्तों का खर्च राज्य के खजाने पर इतना भारी पड़ेगा कि विकास की अन्य योजनाएं चलाना लगभग नामुमकिन हो जाएगा।

पदों की उपलब्धता : सवाल यह भी है कि इतनी बड़ी संख्या में सरकारी पद आएंगे कहां से? क्या सरकार इतने नए विभाग बना सकती है? और अगर नौकरियां दी भी गईं, तो उनकी योग्यता का पैमाना क्या होगा? क्या यह सिर्फ खाली पदों को भरने की कवायद होगी या इससे राज्य की प्रशासनिक क्षमता में कोई सुधार भी होगा?

योग्यता बनाम आरक्षण: इस योजना को लागू करने में योग्यता (merit) और आरक्षण के बीच संतुलन बनाना एक बड़ी चुनौती होगी। यह वादा कहीं कहीं मौजूदा भर्ती प्रक्रियाओं और संवैधानिक व्यवस्थाओं के साथ भी टकरा सकता है।

 क्या यह सपा के लिए बनेगा संजीवनी?

इन तमाम सवालों के बावजूद, सपा का यह दांव राजनीतिक रूप से काफी चतुर माना जा रहा है। चुनाव वादों पर लड़े जाते हैं, उनकी व्यावहारिकता पर बहस अक्सर चुनाव के बाद होती है। सपा ने बेरोजगारी के मुद्दे को उठाकर बीजेपी की दुखती रग पर हाथ रख दिया है। अब यह बहस शुरू हो गई है कि रोजगार का सही मॉडल क्या है - सरकारी नौकरी या निजी क्षेत्र का विकास?

 यह वादा सपा के कार्यकर्ताओं में एक नया जोश भर सकता है और उन्हें जनता के बीच जाने के लिए एक बड़ा और आकर्षक मुद्दा दे सकता है। अखिलेश यादव यह संदेश देने में कामयाब हो सकते हैं कि उनके पास प्रदेश के भविष्य के लिए एक 'बड़ा विजन' है। हालांकि, उन्हें यह भी समझाना होगा कि वह इस असंभव से दिखने वाले वादे को पूरा कैसे करेंगे। अगर वह एक विश्वसनीय रोडमैप पेश करने में विफल रहते हैं, तो यही वादा उनकी विश्वसनीयता पर एक बड़ा सवालिया निशान भी लगा सकता है। फिलहाल, इस एक वादे ने 2027 के लिए उत्तर प्रदेश की राजनीतिक पिच तैयार कर दी है, और अब देखना यह है कि जनता इस 'सुनहरे सपने' पर कितना भरोसा करती है।

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