ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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कानपुर में कथित “लुटेरी दुल्हन” मामले में बड़ा मोड़ सामने आया है। पुलिस की ओर से गंभीर आरोप लगाए जाने और उसे संगठित गिरोह का सदस्य बताने के बावजूद अदालत ने दिव्यांशी चौधरी को जमानत देने का फैसला किया। कोर्ट ने कहा कि पुलिस ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत करने में असफल रही है और केवल आरोपों तथा आशंकाओं के आधार पर किसी आरोपी को रिमांड पर नहीं भेजा जा सकता।
कोर्ट ने पुलिस की रिमांड याचिका खारिज की और दिव्यांशी को रिहा करने का आदेश दिया
एसीजेएम कोर्ट ने पुलिस द्वारा मांगी गई आठ दिन की रिमांड को पूरी तरह खारिज कर दिया। अदालत ने यह पाया कि पुलिस किसी भी प्रकार की तकनीकी या दस्तावेजी सामग्री के साथ अदालत के सामने उपस्थित नहीं हो सकी। कोर्ट ने स्पष्ट टिप्पणी की कि महज़ आरोपों और अटकलों के आधार पर पुलिस हिरासत की मांग स्वीकार नहीं की जा सकती।
इसी आधार पर अदालत ने दिव्यांशी को व्यक्तिगत बॉन्ड पर तुरंत रिहा करने का आदेश दिया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि रिहाई के बाद आरोपी जांच में पूरा सहयोग करेगी और किसी भी गवाह को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेगी।
बचाव पक्ष की दलीलें अदालत में निर्णायक साबित हुईं
दिव्यांशी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता योगेश भसीन, वरुण भसीन, विप्लव अवस्थी और शुभम पांडे ने अदालत में विस्तृत दलीलें पेश कीं। उन्होंने यह बताया कि पुलिस न तो कोई वीडियो सबूत ला सकी, न दस्तावेज, न कॉल रिकॉर्ड और न ही किसी प्रकार का प्रत्यक्ष प्रमाण।
बचाव पक्ष का तर्क था कि रिमांड की मांग केवल संदेह और कथित बयानों पर आधारित है, जबकि किसी भी जांच एजेंसी को रिमांड पाने के लिए ठोस, प्रारंभिक और विश्वसनीय सामग्री प्रस्तुत करनी होती है। अदालत ने इन तर्कों को स्वीकार किया और पुलिस की रिमांड याचिका को पूरी तरह से निराधार बताया।
दिव्यांशी का आरोप—“मेरे पति ने जानबूझकर फंसाया”
जमानत मिलने के बाद दिव्यांशी मीडिया के सामने आईं और उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों को पूरी तरह गलत बताया। उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर उसी थाने में कराई गई, जहाँ उनके पति गौरव की पोस्टिंग है। दिव्यांशी ने यह भी कहा कि उनकी “चार शादियों” वाली खबरें पूरी तरह मनगढ़ंत हैं और उन्हें बदनाम करने के लिए फैलाई गईं।
उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनकी बात सुने बिना और किसी भी प्रकार की जांच किए बिना उन्हें “लुटेरी दुल्हन” घोषित कर दिया। उन्होंने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि वे कानून पर पूरा भरोसा रखती हैं।
कोर्ट ने पुलिस की देरी और कार्यप्रणाली पर भी नाराज़गी जताई
बचाव पक्ष ने अदालत को यह जानकारी भी दी कि दिव्यांशी को दोपहर लगभग 12 बजे गिरफ्तार किया गया था, लेकिन पुलिस ने रिमांड के लिए जो आवेदन किया, वह शाम 5:30 बजे के बाद दाखिल किया गया। नियमों के अनुसार यह समय सीमा समाप्त होने के बाद का समय था। इसके बावजूद पुलिस देर शाम रिमांड लेने के लिए अदालत पहुँची, मानो यह उम्मीद कर रही हो कि बिना फाइल ठीक से पढ़े रिमांड मिल जाएगी।
अदालत ने इस कार्यप्रणाली को गैर-पेशेवर बताते हुए पुलिस की तीखी आलोचना की। इसी वजह से पुलिस का पूरा प्रयास उलटा पड़ गया और रिमांड की जगह आरोपी को जमानत मिल गई।
पुलिस के गंभीर आरोप—फेक रेप-एक्सटॉर्शन रैकेट का हिस्सा
पुलिस का दावा है कि दिव्यांशी ऐसे संगठित गिरोह का हिस्सा है जो अमीर पुरुषों को शादी का झांसा देकर फँसाता था, फिर फर्जी रेप केस दर्ज कराता था, अश्लील वीडियो बनाकर ब्लैकमेल करता था और उसके बाद लाखों रुपये वसूले जाते थे। पुलिस ने इसे “फेक रेप–एक्सटॉर्शन रैकेट” बताया है।
हालांकि, अदालत ने कहा कि पुलिस ने इन आरोपों को साबित करने के लिए कोई प्राथमिक, तकनीकी या प्रत्यक्ष साक्ष्य पेश नहीं किया, इसलिए केवल आरोपों के आधार पर रिमांड नहीं दी जा सकती।
अब पुलिस के सामने सबूत जुटाने की चुनौती
अदालत के इस फैसले के बाद अब कानपुर पुलिस पर दबाव बढ़ गया है। पुलिस को अब या तो नए और मजबूत सबूतों के साथ दोबारा रिमांड याचिका दाखिल करनी होगी, या फिर समय पर पूरी चार्जशीट दाखिल करनी होगी। फिलहाल यह मामला कानपुर पुलिस के लिए प्रतिष्ठा का विषय बनता जा रहा है, क्योंकि अदालत की टिप्पणी ने उनकी जांच प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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