ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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दिवाली,
यानी रोशनी का त्योहार। एक ऐसा पर्व जिसका इंतजार हर किसी को पूरे साल रहता है। जगमगाते
दीये, खूबसूरत लाइटें, मिठाइयां और परिवार का साथ। लेकिन हर साल की तरह इस साल भी दिल्ली
के लिए यह दिवाली रोशनी के साथ-साथ चिंता का धुआं और आग के शोले लेकर आई। सोमवार,
20 अक्टूबर की रात जब पूरी दिल्ली अपने घरों में दिवाली मना रही थी, तब दिल्ली की सड़कों
पर दमकल की गाड़ियों के सायरन गूंज रहे थे। एक-दो नहीं, बल्कि सैकड़ों जगहों पर आग
लगने की घटनाएं हुईं, जिसने त्योहार के रंग में भंग डाल दिया। दिल्ली फायर सर्विस के
लिए यह रात शायद साल की सबसे व्यस्त और चुनौतीपूर्ण रातों में से एक थी।
रात 12 बजे तक फायर डिपार्टमेंट का कंट्रोल रूम लगातार बजता रहा। आग लगने की सूचना देने वाली कॉल्स का आंकड़ा 269 तक पहुंच चुका था, लेकिन यह तो बस शुरुआत थी। जैसे-जैसे रात गहरी होती गई, आग की घटनाएं और बढ़ती गईं। मंगलवार सुबह 6 बजे तक यह आंकड़ा 400 को भी पार कर गया। इसका मतलब है कि हर कुछ मिनटों में दिल्ली के किसी न किसी कोने में आग लग रही थी और मदद के लिए पुकार आ रही थी। यह आंकड़े किसी को भी डराने के लिए काफी हैं। यह दिखाता है कि त्योहार की खुशी में हम अपनी सुरक्षा को लेकर कितने लापरवाह हो जाते हैं।
रात भर अलर्ट पर रहे दमकलकर्मी
दिल्ली फायर सर्विस के कर्मचारी इस चुनौती के लिए पहले से तैयार थे। दिल्ली के सभी फायर स्टेशनों पर दमकलकर्मियों को रात भर हाई अलर्ट पर तैनात किया गया था। जैसे ही कोई कॉल आती, कुछ ही मिनटों में दमकल की गाड़ी मौके के लिए रवाना हो जाती। फायर डिपार्टमेंट के अधिकारियों ने बताया कि हर एक कॉल पर तुरंत कार्रवाई की गई। उनकी मुस्तैदी और बहादुरी का ही नतीजा था कि इन 400 से ज्यादा घटनाओं में किसी भी तरह की जनहानि की खबर नहीं आई, जो इस पूरी भयावह स्थिति में एकमात्र राहत की बात थी। ज्यादातर आग लगने की घटनाएं रिहायशी इलाकों से रिपोर्ट की गईं, जहां पटाखों की वजह से आग लगी थी। किसी के घर की बालकनी में रखे सामान में आग लग गई, तो कहीं गाड़ियों पर जलता हुआ पटाखा गिर गया। इन छोटी-छोटी लापरवाहियों ने कई जगहों पर बड़ा नुकसान पहुंचाया।
नरेला की फैक्ट्रियों में आग का तांडव
छोटी-मोटी घटनाओं के बीच, दिल्ली के नरेला इंडस्ट्रियल इलाके से दो बड़ी आग की घटनाओं ने फायर डिपार्टमेंट की चिंता बढ़ा दी। भोरगढ़ इंडस्ट्रियल एरिया के फेज 2 में स्थित एक कार्डबोर्ड फैक्ट्री में भीषण आग लग गई। कार्डबोर्ड यानी गत्ता, जो बहुत तेजी से आग पकड़ता है। देखते ही देखते आग ने पूरी फैक्ट्री को अपनी चपेट में ले लिया। आग की लपटें दूर-दूर तक दिखाई दे रही थीं। मौके पर तुरंत दमकल की 26 गाड़ियां भेजी गईं। घंटों की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका, लेकिन तब तक फैक्ट्री में रखा लाखों का माल जलकर खाक हो चुका था।
अभी दमकलकर्मी यहां आग बुझा ही रहे थे कि पास में ही एक जूते की फैक्ट्री में भी आग लगने की खबर आ गई। वहां भी स्थिति गंभीर थी। उस आग को बुझाने के लिए दमकल की 16 गाड़ियां भेजी गईं। दोनों ही जगहों पर दमकल के 300 से ज्यादा कर्मचारी आग बुझाने के काम में जुटे रहे। शुरुआती जांच में इन फैक्ट्रियों में आग लगने का कारण शॉर्ट सर्किट बताया जा रहा है, लेकिन दिवाली की रात होने की वजह से पटाखा गिरने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। गनीमत यह रही कि इन दोनों बड़ी घटनाओं में भी कोई कर्मचारी या व्यक्ति हताहत नहीं हुआ।
जागरूकता के बावजूद बढ़े हादसे
ऐसा नहीं है कि सरकार और प्रशासन ने लोगों को जागरूक करने की कोशिश नहीं की थी। दिवाली से पहले लगातार अभियान चलाकर लोगों से सावधानी बरतने, सुरक्षित तरीके से आतिशबाजी करने और सिर्फ ग्रीन पटाखों का इस्तेमाल करने की अपील की गई थी। लेकिन 400 से ज्यादा आग की घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि इन अपीलों का कुछ खास असर नहीं हुआ। त्योहार के जोश में लोग सुरक्षा के मानकों को भूल गए, जिसका नतीजा आग की इन घटनाओं के रूप में सामने आया।
इसके अलावा, इन पटाखों ने दिल्ली की हवा में जहर घोलने का काम भी किया। दिवाली की अगली सुबह दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) बेहद खराब श्रेणी में पहुंच गया। आसमान में धुएं और धुंध की एक मोटी चादर छा गई, जिससे लोगों को सांस लेने में तकलीफ और आंखों में जलन का सामना करना पड़ा। मौसम विभाग ने पहले ही इसे लेकर अलर्ट जारी किया था। यह दिखाता है कि दिवाली का त्योहार अब सिर्फ रोशनी नहीं, बल्कि अपने साथ प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याएं भी लेकर आता है। यह एक गंभीर सवाल है कि आखिर हम कब तक त्योहार के नाम पर अपने ही शहर और अपनी सेहत से खिलवाड़ करते रहेंगे?
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