ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
बिहार की राजनीति में चुनाव का बिगुल बजते ही बयानों के तीर चलने लगते हैं। इस बार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले ही सियासी पारा चढ़ गया है। इस जुबानी जंग के केंद्र में हैं भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार और छपरा से राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के उम्मीदवार खेसारी लाल यादव और बिहार के उपमुख्यमंत्री व बीजेपी के कद्दावर नेता सम्राट चौधरी। दोनों के बीच शुरू हुई ये तकरार अब सिर्फ एक बयानबाजी नहीं रह गई है, बल्कि यह बिहार की राजनीति में प्रतिष्ठा, संस्कार और विकास की बहस को एक नया मोड़ दे रही है। यह लड़ाई सिर्फ दो नेताओं की नहीं, बल्कि दो अलग-अलग पृष्ठभूमियों और विचारधाराओं की टक्कर के रूप में देखी जा रही है, जिसने आने वाले चुनाव का पूरा माहौल ही बदल दिया है।
क्या है 'नचनिया' वाला पूरा विवाद?
इस पूरे विवाद की शुरुआत तब हुई जब उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने एक चुनावी सभा के दौरान खेसारी लाल यादव पर तंज कसते हुए उन्हें 'नाचने-गाने वाला' या 'नचनिया' कह दिया। राजनीति में इस तरह के व्यक्तिगत हमले कोई नई बात नहीं हैं, लेकिन सम्राट चौधरी का यह बयान आग की तरह फैल गया। इसका मकसद साफ था - खेसारी की एक कलाकार के तौर पर पहचान को उनकी राजनीतिक गंभीरता के खिलाफ इस्तेमाल करना और जनता के बीच उनकी छवि को हल्का करना। सम्राट चौधरी यह संदेश देना चाहते थे कि राजनीति एक गंभीर काम है और यह किसी 'नाचने-गाने वाले' के बस की बात नहीं।
लेकिन, उनका यह दांव उल्टा पड़ता दिख रहा है। खेसारी लाल यादव ने इस बयान पर जो प्रतिक्रिया दी, उसने सबको चौंका दिया। उन्होंने आक्रामक होने के बजाय संयम और संस्कारों का हवाला देते हुए सम्राट चौधरी को ऐसा जवाब दिया, जिसने बीजेपी नेता को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। खेसारी ने कहा, "सम्राट भैया मेरे बड़े भाई जैसे हैं, मुझे उनका आशीर्वाद चाहिए। वो जैसे घर और माहौल से आते हैं, वैसे ही बोलते हैं, लेकिन मेरी परवरिश और संस्कार ऐसे नहीं हैं कि मैं उनके बारे में कुछ गलत कहूं।" इस एक लाइन में खेसारी ने न सिर्फ चौधरी को सम्मान दिया, बल्कि उनके बयान को उनकी परवरिश से जोड़कर एक गहरा कटाक्ष भी कर दिया।
खेसारी का करारा पलटवार
खेसारी यहीं नहीं रुके। उन्होंने सम्राट चौधरी के तंज का जवाब उन्हीं की भाषा में दिया। उन्होंने सवाल उठाया, "पहले सम्राट चौधरी अपने घर में झांककर देखें और बताएं कि उन्होंने अपनी पार्टी में चार 'नचनिया' को टिकट क्यों दिया है?" यह एक सीधा और तीखा हमला था। खेसारी का इशारा बीजेपी में शामिल अन्य कलाकार-नेताओं की तरफ था। इस बयान से उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की कि अगर कलाकार राजनीति में नहीं आ सकते, तो यह नियम हर पार्टी के लिए एक जैसा होना चाहिए। उन्होंने इस विवाद को व्यक्तिगत हमले से हटाकर एक सैद्धांतिक बहस का रूप दे दिया। खेसारी ने साफ कर दिया कि वह इस लड़ाई में दबने वाले नहीं हैं और उनके पास हर राजनीतिक हमले का जवाब है। उनका यह आत्मविश्वास RJD के कार्यकर्ताओं में नया जोश भर रहा है और छपरा समेत पूरे बिहार में यह बहस का एक बड़ा मुद्दा बन गया है।
कलाकार से
नेता: क्या
बदल रहा
है बिहार
का मिजाज?
खेसारी लाल यादव की राजनीति में एंट्री बिहार में एक बड़े बदलाव का संकेत है। पहले भी भोजपुरी कलाकार जैसे मनोज तिवारी और रवि किशन राजनीति में सफल पारियां खेल चुके हैं, लेकिन खेसारी का मामला थोड़ा अलग है। वह सीधे तौर पर बिहार की जमीनी राजनीति से जुड़कर चुनाव लड़ रहे हैं। उनके सामने एक स्थापित और शक्तिशाली नेता हैं, लेकिन खेसारी अपनी लोकप्रियता और जनता से सीधे जुड़ाव के दम पर उन्हें टक्कर दे रहे हैं।
'नचनिया' वाला विवाद यह भी दिखाता है कि बिहार का पारंपरिक राजनीतिक वर्ग अभी भी कलाकारों को गंभीरता से लेने के लिए तैयार नहीं है। उन्हें लगता है कि जनता मनोरंजन और राजनीति को अलग-अलग रखती है। लेकिन, खेसारी इस सोच को चुनौती दे रहे हैं। उनका कहना है कि मनोरंजन उनका पेशा है, लेकिन बिहार का विकास उनका मिशन है। उन्होंने साफ कहा, "मेरे गानों का छपरा के विकास से कोई लेना-देना नहीं है। लोगों को मनोरंजन चाहिए और मैं वही करता हूं।" इस बयान से वह अपनी दोनों भूमिकाओं को अलग-अलग रखने की कोशिश कर रहे हैं। वह जनता को यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि एक सफल कलाकार एक सफल नेता भी हो सकता है।
विकास का वादा और छपरा की लड़ाई
इस पूरी बहस के बीच खेसारी लाल यादव ने विकास के मुद्दे को अपनी राजनीति का केंद्र बनाया है। उन्होंने कहा है कि वह मरते दम तक बिहार के विकास के लिए काम करेंगे और अपने क्षेत्र छपरा का चेहरा बदल देंगे। उनका कहना है कि बिहार में अब तक वास्तविक विकास हुआ ही नहीं है, इसलिए सब कुछ "शुरुआत से शुरू करना है।" यह बयान सीधे तौर पर मौजूदा और पिछली सरकारों पर एक बड़ा हमला है।
छपरा की लड़ाई अब सिर्फ एक विधानसभा सीट का चुनाव नहीं रह गई है। यह खेसारी की प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है। अगर वह यहां से जीतते हैं, तो यह सिर्फ उनकी जीत नहीं होगी, बल्कि यह इस बात का सबूत होगा कि बिहार की जनता अब काम और विकास के नाम पर वोट देना चाहती है, न कि व्यक्तिगत हमलों और पुरानी राजनीति के नाम पर। वहीं, अगर सम्राट चौधरी का खेमा यहां हावी होता है, तो यह स्थापित राजनीतिक दलों की पकड़ को और मजबूत करेगा। इसलिए, पूरे बिहार की नजरें छपरा पर टिकी हैं, क्योंकि यहां का नतीजा आने वाले दिनों में राज्य की राजनीति की दिशा तय करेगा। खेसारी ने इस लड़ाई को अपनी कला और राजनीति, दोनों के लिए एक अग्निपरीक्षा बना दिया है, और इसका परिणाम जो भी हो, बिहार की राजनीति पहले जैसी नहीं रहेगी।
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