ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बजने से पहले ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में आंतरिक कलह की खबरें सामने आने लगी हैं। गठबंधन के प्रमुख सहयोगियों के बीच सीटों का बंटवारा एक बड़ा सिरदर्द बनता जा रहा है। सूत्रों की मानें तो राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के अध्यक्ष और कद्दावर नेता उपेंद्र कुशवाहा एनडीए द्वारा प्रस्तावित सीटों की संख्या से खुश नहीं हैं। उनकी नाराजगी ने बिहार के राजनीतिक गलियारों में यह अटकलें तेज कर दी हैं कि क्या चुनाव से ठीक पहले कुशवाहा कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं?
क्यों नाराज हैं उपेंद्र कुशवाहा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उपेंद्र
कुशवाहा अपनी पार्टी के लिए सम्मानजनक सीटों की मांग कर रहे हैं। कुशवाहा बिहार
में कोइरी-कुर्मी वोट बैंक पर अच्छी पकड़ रखने वाले नेता माने जाते हैं। उन्हें
लगता है कि एनडीए में उनकी पार्टी को वह महत्व नहीं दिया जा रहा है, जिसकी
वह हकदार है। पिछले कुछ समय से वह लगातार ज्यादा सीटों के लिए दबाव बना रहे हैं,
लेकिन
बीजेपी और जदयू के बड़े नेता शायद उनकी मांगों को मानने के लिए तैयार नहीं हैं।
इसी वजह से गठबंधन में "सब कुछ ठीक नहीं" होने की बातें सामने आ रही
हैं।
क्या हो सकते हैं राजनीतिक समीकरण?
अगर उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी बढ़ती है और वह
एनडीए छोड़ने का फैसला करते हैं, तो यह गठबंधन के लिए एक बड़ा झटका हो
सकता है। बिहार जैसे राज्य में, जहां जातीय समीकरण चुनावों में अहम
भूमिका निभाते हैं, कुशवाहा का अलग होना एनडीए के वोट बैंक को
नुकसान पहुंचा सकता है। इसका सीधा फायदा विपक्षी 'महागठबंधन'
को
मिल सकता है, जो पहले से ही एनडीए में फूट का इंतजार कर रहा
है। कुशवाहा के पास अन्य विकल्पों पर विचार करने का मौका होगा, जिसमें
अकेले चुनाव लड़ना या फिर महागठबंधन के साथ जाना भी शामिल हो सकता है।
आगे क्या होगा?
फिलहाल, एनडीए के बड़े
नेता इस मामले को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। किसी भी गठबंधन के लिए चुनाव से
ठीक पहले किसी सहयोगी का नाराज होकर जाना अच्छा संकेत नहीं होता। यह देखना दिलचस्प
होगा कि क्या बीजेपी नेतृत्व उपेंद्र कुशवाहा को मनाने में कामयाब होता है या फिर
बिहार चुनाव से पहले राज्य की राजनीति एक नई करवट लेगी। आने वाले कुछ दिन बिहार की
राजनीति के भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण होने वाले हैं।
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