ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
गाजियाबाद में 1996 में बस में हुए भीषण बम विस्फोट मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने आरोपी मोहम्मद इलियास को बरी कर दिया और कहा कि “हम भारी मन से यह निर्णय दर्ज कर रहे हैं, क्योंकि मामला बेहद गंभीर था और समाज की अंतरात्मा को झकझोर देने वाला था।” हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि अभियोजन पक्ष इलियास के खिलाफ आरोप साबित करने में बुरी तरह असफल रहा।
27 अप्रैल 1996: बस में धमाका, 18 लोगों की मौत
27 अप्रैल 1996 को रुड़की डिपो की बस दिल्ली से 53 यात्रियों को लेकर निकली थी। मोहन नगर से 14 और यात्री चढ़े। शाम 5 बजे जैसे ही बस मोदीनगर पुलिस स्टेशन के पास पहुंची, तभी बस के आगे वाले हिस्से में जोरदार बम धमाका हुआ।
धमाके में 10 लोगों की मौके पर मौत हो गई और 48 यात्री गंभीर रूप से घायल हुए। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मृतकों के शरीर में धातु के टुकड़े पाए गए, जिससे स्पष्ट हुआ कि यह विस्फोट RDX और कोर्बन मिश्रित बम से हुआ था। जांच में पता चला कि विस्फोटक ड्राइवर सीट के नीचे रखा गया था और उसे रिमोट की मदद से उड़ाया गया था।
अभियोजन का दावा: आतंकी साजिश का हिस्सा थे इलियास
पुलिस और अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि यह हमला पाकिस्तानी आतंकी संगठन हरकत-उल-अंसार के जिला कमांडर अब्दुल मतीन उर्फ इकबाल ने कराया था। उनके साथ भारतीय नागरिक मोहम्मद इलियास और तस्लीम पर भी इस साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया गया था।
अभियोजन के अनुसार इलियास, जो मूलरूप से मुजफ्फरनगर का रहने वाला था लेकिन लुधियाना में रह रहा था, जम्मू–कश्मीर के कुछ लोगों के बहकावे में आ गया था और उसने ही बस में बम रखने की योजना बनाई थी।
ट्रायल कोर्ट का फैसला और अपील
2013 में ट्रायल कोर्ट ने तस्लीम को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया, लेकिन इलियास और अब्दुल मतीन को उम्रकैद की सजा सुनाई। राज्य सरकार ने तस्लीम की बरी होने के खिलाफ कोई अपील नहीं की, और अब्दुल मतीन की अपील के बारे में भी कोई सूचना नहीं मिली। इसलिए हाईकोर्ट केवल इलियास की अपील पर सुनवाई कर रहा था।
इकबालिया बयान पर सवाल, गवाहों ने नहीं किया पहचान
इलियास की गिरफ्तारी 1997 में लुधियाना से हुई थी, जहां पुलिस ने दावा किया था कि उसने अपने पिता और भाई के सामने बम लगाने की बात कबूल की थी। यह बयान सीबी-सीआईडी अधिकारी द्वारा एक ऑडियो कैसेट में रिकॉर्ड किया गया था।
लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि:
◘ पुलिस के सामने दिया गया बयान कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं है
◘ टाडा कानून, जिसकी धारा 15 का हवाला दिया गया, इस मामले में लागू नहीं होता क्योंकि टाडा तब तक समाप्त हो चुका था
◘ 34
गवाहों
में
से
किसी
ने
भी
इलियास
को
बम
रखते
हुए
नहीं
देखा
◘ कई गवाह अपने बयान से मुकर गए या विरोधाभासी बातें कही गईं
कोर्ट ने साफ कहा कि बम बस में दिल्ली के ISBT से निकलने से पहले रखा गया था और किसी गवाह ने यह नहीं बताया कि उसे किसने रखा।
अभियोजन पूरी तरह नाकाम, हाईकोर्ट ने दी राहत
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष इलियास की भूमिका साबित करने में बुरी तरह विफल रहा। ऐसे में ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई उम्रकैद की सजा को सही नहीं ठहराया जा सकता।
अंत में कोर्ट ने 2013 के फैसले को रद्द करते हुए आदेश दिया: “इलियास को तत्काल रिहा किया जाए।” यह फैसला न केवल एक पुराने और बेहद संवेदनशील मामले पर नई रोशनी डालता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अदालतें केवल पुख्ता सबूतों के आधार पर ही किसी आरोपी को दोषी ठहराती हैं।
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