ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
देश की राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद में एक बार फिर अपराध की दुनिया के सबसे कुख्यात नामों - लॉरेंस बिश्नोई और गोल्डी बराड़ - की गूंज सुनाई दी है। इस बार इस गैंग के निशाने पर एक स्थानीय नेता का परिवार आया है, जिससे पूरे इलाके में सनसनी और खौफ का माहौल है। गाजियाबाद की एक नगर पंचायत की चेयरमैन के पति को फोन करके 50 लाख रुपये की रंगदारी मांगी गई है और पैसे न देने पर जान से मारने की धमकी दी गई है। यह घटना सिर्फ एक रंगदारी की कॉल नहीं है, बल्कि यह इस बात का खतरनाक सबूत है कि कैसे ये अपराधी जेल की सलाखों के पीछे से भी दिल्ली-एनसीआर में अपने खौफ का साम्राज्य बेधड़क चला रहे हैं। इस घटना ने पुलिस और प्रशासन की नींद उड़ा दी है और एक बार फिर यह सवाल खड़ा हो गया है कि इन संगठित अपराध नेटवर्कों पर लगाम कब और कैसे लगेगी।
क्या है पूरा मामला?
मामला गाजियाबाद के एक कस्बे का है, जहां नगर पंचायत की चेयरमैन के पति, जो खुद भी एक कारोबारी और राजनीतिक रूप से सक्रिय व्यक्ति हैं, को एक अनजान नंबर से व्हाट्सएप कॉल आया। कॉल करने वाले ने खुद को लॉरेंस बिश्नोई गैंग का सदस्य बताया और कहा कि उसे 'ऊपर' से आदेश मिला है। उसने धमकी भरे लहजे में कहा, "अगर अपनी और अपने परिवार की सलामती चाहते हो तो 50 लाख रुपये का इंतजाम कर लो। गोल्डी बराड़ भाई का मैसेज है।" फोन करने वाले ने यह भी धमकी दी कि अगर पुलिस को इस बारे में बताया गया तो इसका अंजाम बहुत बुरा होगा। इस कॉल के बाद से पीड़ित परिवार गहरे सदमे और डर में है। उन्होंने तुरंत पुलिस के उच्च अधिकारियों से संपर्क किया और अपनी सुरक्षा की गुहार लगाई। पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तुरंत एफआईआर दर्ज कर ली है और जांच के लिए स्पेशल टीमों का गठन किया है।
जेल
से चलता
है खौफ
का नेटवर्क
यह घटना सबसे ज्यादा चिंताजनक इसलिए है क्योंकि लॉरेंस बिश्नोई और गोल्डी बराड़ जैसे बड़े अपराधी इस समय देश की अलग-अलग जेलों में बंद हैं। इसके बावजूद, उनका गैंग न सिर्फ सक्रिय है, बल्कि पहले से कहीं ज्यादा खतरनाक तरीके से काम कर रहा है। यह गैंग आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करके अपना नेटवर्क चलाता है।
वर्चुअल नंबर्स और व्हाट्सएप कॉल्स : ये अपराधी सामान्य फोन कॉल्स की जगह वर्चुअल नंबर्स और व्हाट्सएप या टेलीग्राम जैसे एन्क्रिप्टेड ऐप्स का इस्तेमाल करते हैं, ताकि पुलिस उन्हें आसानी से ट्रैक न कर सके।
अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क : गोल्डी बराड़, जो कथित तौर पर कनाडा या अमेरिका में छिपा है, वहां से इस पूरे नेटवर्क को ऑपरेट करता है। वह सोशल मीडिया पर हत्याओं की जिम्मेदारी लेता है और रंगदारी के लिए टारगेट तय करता है।
स्थानीय शूटर और मुखबिर: गैंग के सदस्य हर बड़े शहर में अपने स्थानीय शूटर और मुखबिरों का एक नेटवर्क बनाकर रखते हैं। ये लोग टारगेट की रेकी करते हैं, उसे धमकाते हैं और पैसा न मिलने पर हमला करने से भी नहीं हिचकते।
यह पूरा मॉडल किसी कॉर्पोरेट कंपनी की तरह काम करता है, जहां 'बॉस' विदेश में बैठकर ऑर्डर देता है और नीचे के गुर्गे उसे अंजाम देते हैं। सिद्धू मूसेवाला की हत्या इस गैंग की कार्यप्रणाली का सबसे बड़ा उदाहरण थी, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था।
क्यों चुने जाते हैं कारोबारी और नेता?
लॉरेंस बिश्नोई गैंग का मुख्य काम ही बड़े कारोबारियों, बिल्डरों, ज्वैलर्स और अब स्थानीय नेताओं को निशाना बनाकर मोटी रंगदारी वसूलना है। इसके पीछे एक सोची-समझी रणनीति होती है।
1. पैसे की क्षमता : ये ऐसे लोगों को टारगेट करते हैं जिनके पास मोटी रकम देने की क्षमता होती है।
2. सामाजिक प्रतिष्ठा : जब किसी बड़े और प्रतिष्ठित व्यक्ति को धमकी मिलती है, तो समाज में गैंग का खौफ और तेजी से फैलता है। इससे दूसरे लोग आसानी से डरकर पैसा दे देते हैं।
3.
कम
जोखिम
: कई
बार
लोग
बदनामी
और
जान
के
डर
से
पुलिस
के
पास
जाने
से
बचते
हैं
और
चुपचाप
पैसा
दे
देते
हैं,
जिससे
इन
गैंगस्टर्स
का
काम
और
आसान
हो
जाता
है।
गाजियाबाद की यह घटना दिखाती है कि अब यह गैंग छोटे शहरों और कस्बों में भी अपनी पैठ बना रहा है, जो कि एक बेहद खतरनाक संकेत है।
पुलिस और प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती
यह मामला यूपी पुलिस और दिल्ली-एनसीआर की सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक बड़ी चुनौती है। सिर्फ कॉल करने वाले को पकड़ना ही काफी नहीं है, बल्कि इस पूरे सिंडिकेट की कमर तोड़ना जरूरी है। इसके लिए विभिन्न राज्यों की पुलिस के बीच बेहतर समन्वय, जेलों के अंदर चल रहे नेटवर्क को ध्वस्त करना और आधुनिक तकनीक का मुकाबला करने के लिए पुलिस को और ज्यादा हाई-टेक बनाने की जरूरत है।
लोगों के मन से इस गैंग का खौफ निकालना पुलिस की सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। जब तक इन अपराधियों को यह संदेश नहीं मिलता कि कानून के हाथ उन तक जेल के अंदर या देश के बाहर भी पहुंच सकते हैं, तब तक वे इसी तरह कारोबारियों और आम लोगों को अपना निशाना बनाते रहेंगे। गाजियाबाद की यह एक अकेली घटना नहीं है, यह एक अलार्म है जो बता रहा है कि संगठित अपराध का यह कैंसर तेजी से फैल रहा है और इसे रोकने के लिए एक बड़े और निर्णायक ऑपरेशन की जरूरत है।
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