वेस्ट यूपी में वायु प्रदूषण ने हालात बेहद चिंताजनक बना दिए हैं। गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, मेरठ, हापुड़, बुलंदशहर और बागपत की हवा अब ‘रेड जोन’ में पहुंच गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, गाजियाबाद देश का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर रहा, जबकि पहले स्थान पर तमिलनाडु का तुतुकुड़ी है। चारों ओर छाई धुंध, सांस लेना हुआ मुश्किल गाजियाबाद और आसपास के जिलों में धुंध की मोटी चादर छाई हुई है। आसमान में स्मॉग की परत इतनी घनी है कि सुबह-शाम दृश्यता बेहद कम हो गई है।विशेषज्ञों का कहना है कि अब हवा “सांस लेने लायक” नहीं रह गई है। मेरठ, मुजफ्फरनगर और बुलंदशहर की वायु गुणवत्ता भी “बेहद खराब” श्रेणी में पहुंच चुकी है। CPCB का अनुमान है कि अगले दो दिनों में स्थिति और भी बिगड़ सकती है, जिससे दमा, ब्रोंकाइटिस और फेफड़ों की बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए खतरा बढ़ जाएगा। डॉक्टरों की चेतावनी और सलाह गाजियाबाद के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. शरद जोशी ने लोगों से अपील की है कि वे बाहरी गतिविधियों के दौरान N95 या डबल सर्जिकल मास्क का इस्तेमाल करें। उन्होंने कहा, “बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों को विशेष सतर्कता रखनी चाहिए। ऐसे मौसम में सुबह की सैर और बाहरी खेलों से बचें।” लोगों में आंखों में जलन, गले में खराश, सिरदर्द और थकान जैसे लक्षण तेजी से बढ़ रहे हैं। प्रशासन हरकत में, लेकिन राहत नहीं जिला प्रशासन ने प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए कुछ कदम उठाने शुरू किए हैं— • निर्माण कार्यों पर निगरानी• पानी के छिड़काव से सड़कों की धूल कम करने की कोशिश• खुले में कूड़ा और पत्ते जलाने पर सख्त पाबंदी फिर भी, विशेषज्ञ मानते हैं कि स्थायी समाधान के बिना स्थिति सुधरना मुश्किल है, क्योंकि प्रदूषण के स्रोत अब व्यापक रूप से फैल चुके हैं। जानिए, कहां से बढ़ रहा है सबसे ज्यादा प्रदूषण एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार— • PM-10 (धूल कण) का 86% हिस्सा सड़कों की धूल से आता है।• वाहनों से 6%, निर्माण कार्यों से 5% और उद्योगों से 3% प्रदूषण हो रहा है।• PM-2.5 (सूक्ष्म कण) में 72% सड़कों की धूल, 20% वाहन और 6% उद्योगों की भूमिका है।• सल्फर डाइऑक्साइड का 58% उत्सर्जन उद्योगों से होता है, जबकिनाइट्रोजन ऑक्साइड का मुख्य कारण वाहन हैं। पराली जलाना भी बड़ा कारण उत्तर भारत में दिवाली के बाद पराली जलाने की घटनाएं तेज़ी से बढ़ती हैं, जिससे वायु गुणवत्ता तेजी से गिरती है। हरियाणा और पंजाब में सबसे अधिक पराली जलाई जाती है। हालांकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने 2015 में इस पर प्रतिबंध लगाया था, फिर भी किसान पराली निपटाने के व्यावहारिक विकल्प न होने से इसे जलाने को मजबूर हैं। केंद्र सरकार के वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने जुर्माने का प्रावधान किया है—• 2 एकड़ से कम जमीन पर पराली जलाने पर ₹5,000 जुर्माना• 2 से 5 एकड़ पर ₹10,000• 5 एकड़ से अधिक पर ₹30,000 तक का जुर्माना वेस्ट यूपी में वायु प्रदूषण अब जन स्वास्थ्य का गंभीर संकट बन चुका है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार और नागरिक दोनों को मिलकर कदम उठाने होंगे — जैसे वाहन कम इस्तेमाल करना, हरियाली बढ़ाना और निर्माण कार्यों में सावधानी बरतना। अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो दिल्ली-एनसीआर की तरह वेस्ट यूपी में भी सांस लेना मुश्किल हो जाएगा। Comments (0) Post Comment
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