इन 26 देशों की करेंसी के सामने भारतीय रुपया सबसे मजबूत, जानें हकीकत!

हाल में इजरायल-ईरान विवाद, साथ ही डॉलर की मजबूत वृद्धि, जैसे कारणों से भारतीय रुपए को काफी दबाव झेलना पड़ा है।

बुधवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 13 पैसे कमजोर हो गया जबकि दूसरे दिन 30 पैसे की गिरावट देखी गई।

वहीं, कुछ देशों में तो रुपया चला ही नहीं, और उसके कुछ विदेशी करेंसी के सामने अंकगणित से भी ताकतवर बन गया।

एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार 26 देशों की तुलना में भारतीय रुपया बाज़ी मार रहा है, चाहे वह यूरोप हो या एशिया।

हालात ये हैं कि कुछ करेंसीज़ के मुकाबले रुपया सबसे मजबूत मुद्रा के रूप में उभरा है।

रुपया खासा ताकतवर दिखा उन देशों में जहां करेंसी का विनिमय डॉलर के मुकाबले कमजोर है या वहां आर्थिक संकट गहराया हुआ है। आईए जानते हैं, वो 26 देश और करेंसी कौन सी हैं।


  • ईरान: ₹1 = 487.46 रियाल

  • लेबनान: ₹1 = 1,036.07 पाउंड

  • वियतनाम: ₹1 = 301.97 डोंग

  • इंडोनेशिया: ₹1 = 188.03 रुपिया

  • पारागुए: ₹1 = 92.30 गुआरानी

  • कोलंबिया: ₹1 = 47.42 पेसो


साथ ही, नाइजीरिया में ₹1 = 17.89 नायरा, दक्षिण कोरिया में ₹1 = 15.91 वोन, इराक में ₹1 = 15.15 दिनार, अर्जेंटीना में ₹1 = 13.46 पेसो और चिली में ₹1 = 10.90 पेसो के बराबर है।


पड़ोसी मुल्क और एशिया का हाल

भारत के पड़ोसी देशों में भी रुपया काबिज़ दिखाई दिया:


  • पाकिस्तान: ₹1 = 3.276 पाकिस्तानी रुपये

  • जापान: ₹1 = 1.6756 येन

  • नेपाल: ₹1 = 1.6008 नेपाली रुपए

  • बांग्लादेश: ₹1 = 1.41 टका


इन आंकड़ों से यह साफ पता चलता है कि बांग्लादेशी करेंसी की तुलना में पाकिस्तानी मुद्रा थोड़ी बेहतर स्थिति में है, जबकि नेपाली मुद्रा भी समान स्तर पर बनी हुई है।


ये क्यों होती है जरूरी बातें


  1. स्थिर विनिमय प्रणाली: भारत की कॉर्पोरेट क्षेत्र मजबूत होता जा रहा है। निर्यात-आयात और विदेशी निवेश से रुपये पर भरोसा बढ़ा है।


  1. विनिमय दर नियमन: RBI समय-समय पर विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर रुपए की स्थिरता बनाए रखता है।


  1. विदेशी मुद्रा भंडार: भारत के FX रिज़र्व भी कड़ी चुनौती में मदद करते हैं, जिससे करेंसी कभी कमज़ोर नहीं दिखती।


अन्य देशों की आर्थिक स्थिति: जहाँ राजनीतिक-आर्थिक संकट है या मुद्रा महंगाई की मार झेल रही है, वहां भारतीय रुपया स्वाभाविक रूप से मजबूत दिखता है।


विश्लेषकों की राय

मिराए एसेट शेयरखान के रिसर्च एनालिस्ट अनुज चौधरी का कहना है कि वैश्विक स्तर पर रिस्क-ऑन और रिस्क-ऑफ का माहौल मुद्रा के रुख को निर्धारित करता है।

“वेस्ट एशिया में उहां उहां की तनावपूर्ण स्थिति ने कुछ देशों की करंसी को और कमजोर किया है, जिससे रुपये की तुलना में बड़ी गिरावट नहीं हुई, पर अगर तेल की कीमतें बढ़ें या वैश्विक तनाव बढ़ें, तो भारतीय करेंसी पर असर भी रहेगा।”

परंतु आज से पहले जहाँ इन 26 देशों की मुद्राएँ सबसे पीछे हों, वहीं रुपया उन्हें पीछे छोड़ता दिख रहा है, इसका मतलब है कि यह समय निवेशकों और ट्रैवलर्स दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।


क्या मायने हैं इसके आम लोगों के लिए?


  • ट्रैवलर्स: जापान में ₹1 = 1.67 येन होने का मतलब है कि ₹10,000 के पैसे में जापान में खरीदारी में थोड़ा कॉम्पैरेटिव एन्हांसमेंट होगा।


  • विदेशी पढ़ाई या इलाज: नेपाल, बांग्लादेश जैसे देशों में शुल्क कम हो सकता है।


  • इमप्रोटर्स-एक्सपोर्टर्स: जो यूएस डॉलर पे आधारित ट्रेड करते हैं, उन्हें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा अस्थिरता से संयमित रूप से मुकाबला करना पड़ता है।


फाइनेंशियल स्ट्रेटेजी क्या रखें?


  • हेजिंग: बड़ी कंपनियां और निर्यातक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट या ऑप्शन का उपयोग कर विनिमय जोखिम को कम करते हैं।


  • RBI का कंट्रोल: RBI लगातार विदेशी करेंसी मार्केट में हस्तक्षेप करता है ताकि रुपये की अस्थिरता न बढ़े।


निजी निवेशकों को सतर्क रहना चाहिए क्योंकि तेल-विश्व व्यापार व वैश्विक तनाव कदमों का असर सीधे या अप्रत्यक्ष रूप में मुद्रा पर देखा जा सकता है।

बहरहाल, आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ।

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