ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
SIR प्रक्रिया और BLOs की भूमिका
भारत के कई राज्यों में चुनाव से पहले
विरोधाभासी और विवादास्पद SIR प्रक्रिया चल रही है, जिसमें
BLOs पर असाधारण वर्कलोड डाला गया है। BLOs को हजारों
मतदाताओं के घर-घर जाकर फॉर्म जमा करना, सत्यापन करना और अपडेट का काम दिया
जाता है, जो वे अपनी ड्यूटी के साथ संभालते हैं।
BLOs पर भारी दबाव, मौत और इस्तीफे
मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश,
राजस्थान,
गुजरात,
पश्चिम
बंगाल, केरल जैसे राज्यों से कई BLO मौतों की खबरें आई हैं, जिनमें
से कुछ आत्महत्या की भी हैं। कुछ अधिकारियों पर लगातार फोन कॉल से लक्ष्य पूरा
करने का दबाव बनाया जा रहा था, जिससे उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत
प्रभावित हुई।
नोएडा की महिला शिक्षक पिंकी सिंह का इस्तीफा
इसी दबाव के खिलाफ था, जिसने साफ कहा कि सरकार से मिले लक्ष्य को पूरा
करना उनके लिए असंभव हो रहा है।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
कांग्र्रेस, टीएमसी समेत
विपक्ष ने चुनाव आयोग और बीजेपी सरकार पर आरोप लगाया है कि वे BLOs को
अत्यधिक तनाव और अतिरिक ड्यूटी से जूझने पर मजबूर कर रहे हैं। राहुल गांधी ने इसे 'थोपे
गए अत्याचार' (Imposed tyranny) बताया है, जिसमें BLOs
की
मौतें थीं।
टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने भी इस मामले को
लेकर चुनाव आयोग के खिलाफ सख्त रुख अपनाया, ईसीआई से SIR
को
रोकने की मांग की।
चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया
चुनाव आयोग कहता है कि यह प्रक्रिया योजनाबद्ध
और आवश्यक है, और वह BLOs को हर संभव मदद
दे रहा है। आयोग के अधिकारी बताते हैं कि लक्ष्य निर्धारित करने का मकसद समयबद्ध
संख्या में काम पूरा करना है, न कि दबाव बनाना।
आम जनता और सिस्टम पर असर
SIR प्रक्रिया के दौरान कार्यभार बढ़ने से BLOs
के
स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ा है, जिससे परिवारों में आक्रोश और दुख
व्याप्त है। साथ ही, मतदाता सूची की इस समीक्षा को लेकर आम जनता में
भी भ्रम और असमंजस बढ़ा है।
सुधार की जरूरत
BLOs की मौतों ने चुनावी प्रक्रिया की गंभीर
कमजोरियों को उजागर किया है। चुनाव आयोग और सरकार को चाहिए कि वे कार्यभार कम करें,
बेहतर
प्रशिक्षण और तकनीकी मदद दें और BLOs के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें।
साथ में राजनीतिक आरोपों से ऊपर उठकर इस प्रक्रिया को पारदर्शी, न्यायसंगत और मानवतावादी बनाना होगा, ताकि लोकतंत्र की नींव मजबूत बनी रहे।
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