बंगाल में ‘बाबरी मस्जिद’ फंड का हंगामा: नोटों के ट्रंक, QR से लाखों की एंट्री और हुमायूं कबीर की नई पार्टी का दावा
बंगाल में ‘बाबरी मस्जिद’ फंड का हंगामा: नोटों के ट्रंक, QR से लाखों की एंट्री और हुमायूं कबीर की नई पार्टी का दावा
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मुर्शिदाबाद से उठी नई सियासी हलचल

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले से निकली एक वीडियो ने पूरे राज्य की राजनीति को हिला दिया है। सस्पेंडिड TMC विधायक हुमायूं कबीर ने यहां अयोध्या की बाबरी मस्जिद की तर्ज पर नई मस्जिद की नींव रखने का दावा किया और उसके लिए आए चंदे का वीडियो सोशल मीडिया पर डाल दिया। इस वीडियो में जमीन पर रखे नोटों के ढेर, ट्रंक और नोट गिनते लोग साफ देखे जा सकते हैं, जिसे लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है।

हुमायूं कबीर का कहना है कि यह पैसा सीधे लोगों के चंदे से आया है और इसमें किसी राजनीतिक पार्टी या खासतौर पर BJP के फंड का कोई रोल नहीं है। उनका दावा है कि मुसलमान खुद आगे बढ़कर मस्जिद के लिए दान दे रहे हैं और यही उनके लिए सबसे बड़ा जवाब है।

चंदे के ट्रंक, नोटों के ढेर और वीडियो की वायरल कहानी

हुमायूं कबीर ने जो वीडियो शेयर किया, उसमें कई लोग जमीन पर बैठकर नोट गिनते नजर आते हैं और उनके सामने नकदी से भरे ट्रंक रखे दिखते हैं। उनका कहना है कि कुल 11 ट्रंक चंदे से भर गए हैं, जिनमें लोगों द्वारा दिया गया पैसा रखा गया है। इस पैसे को गिनने के लिए करीब 30 लोगों की टीम लगाई गई है, जो लगातार नोट गिनने का काम कर रही है।

वीडियो में यह भी बताया गया कि सिर्फ नकद चंदा ही नहीं, बल्कि डिजिटल पेमेंट के जरिए भी बड़ा अमाउंट आया है। हुमायूं के मुताबिक, उनके बैंक अकाउंट में QR कोड के जरिए करीब 93 लाख रुपये जमा हुए हैं, जो इस मस्जिद के लिए लोगों की सीधी भागीदारी को दिखाते हैं।

CCTV और मशीनों की मदद से गिनती, पारदर्शिता का दावा

हुमायूं कबीर ने अपने बचाव में पारदर्शिता पर जोर दिया है। उनका कहना है कि पैसे गिनने की पूरी प्रक्रिया CCTV कैमरों की निगरानी में की जा रही है ताकि कोई गलतफहमी या गड़बड़ी की गुंजाइश न रहे। इसके साथ ही नोट गिनने वाली मशीनों की भी मदद ली जा रही है, जिससे काम तेज भी हो और साफ-सुथरा भी रहे।

 

विधायक का साफ कहना है कि उन पर आरोप लगाया जा रहा था कि वह BJP से मिले फंड से मस्जिद बना रहे हैं, इसलिए उन्होंने इस पूरे चंदा गिनने की प्रक्रिया को पब्लिक कर दिया। उनके अनुसार, यह लाइव और खुले तरीके से किया गया काम इस बात का सबूत है कि मस्जिद सिर्फ चंदे के पैसों से ही खड़ी होगी।

 

बाबरी मस्जिद’ नाम और सियासत की गर्मी

सबसे बड़ी बहस इस बात पर हो रही है कि हुमायूं कबीर ने मस्जिद के लिए ‘बाबरी मस्जिद’ नाम की तर्ज का इस्तेमाल किया। अयोध्या में ढहाई गई ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद हमेशा से भारतीय राजनीति का बेहद संवेदनशील मुद्दा रही है। ऐसे में मुर्शिदाबाद में नई मस्जिद को बाबरी से जोड़ने ने स्वाभाविक रूप से सियासी तापमान बढ़ा दिया है।

कई विरोधी इसे लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं, जबकि हुमायूं कबीर इसे ‘इंसाफ की याद’ और मुस्लिम भावनाओं के सम्मान के तौर पर प्रस्तुत कर रहे हैं। उनका कहना है कि जो मस्जिद अयोध्या में नहीं बच सकी, उसकी याद में यहां एक नई इमारत खड़ी की जा रही है, जो लोगों के सहयोग से बनेगी।

TMC से सस्पेंशन के बाद नया राजनीतिक रास्ता

हुमायूं कबीर पहले TMC के विधायक रहे, लेकिन अब उन्हें पार्टी से सस्पेंड कर दिया गया है। TMC से बाहर होने के बाद उन्होंने अपना राजनीतिक भविष्य खुद तय करने की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं। एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने साफ कहा कि वह अब अपनी खुद की पार्टी बनाने जा रहे हैं, जो खासतौर पर मुसलमानों के मुद्दों पर काम करेगी।

उन्होंने तारीख भी तय कर दी – 22 दिसंबर को वह अपनी नई पार्टी का ऐलान करने की बात कह रहे हैं। उनका दावा है कि बंगाल विधानसभा चुनाव में वह 135 सीटों पर उम्मीदवार मैदान में उतारेंगे और ‘गेम-चेंजर’ साबित होंगे। यह बयान अपने आप में बताता है कि वह सिर्फ स्थानीय नेता बनकर नहीं रहना चाहते, बल्कि राज्य की राजनीति में बड़ी भूमिका का सपना देख रहे हैं।

AIMIM के साथ बातचीत, ओवैसी का नाम भी आया

हुमायूं कबीर ने इंटरव्यू में यह भी कहा कि वह AIMIM के संपर्क में हैं और बंगाल चुनाव AIMIM के साथ मिलकर लड़ने की तैयारी है। उन्होंने दावा किया कि उनकी असदुद्दीन ओवैसी से बात हो चुकी है और वह मिलकर आगे की रणनीति बना रहे हैं। इस तरह का बयान सीधे तौर पर मुस्लिम वोट बैंक की नई धुरी बनने की कोशिश जैसा दिखता है।

हालांकि अभी तक AIMIM की तरफ से न तो इस पर कोई आधिकारिक बयान आया है और न ही ओवैसी ने सार्वजनिक रूप से कुछ कहा है। इसी वजह से सियासी गलियारों में यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या यह हुमायूं का अकेला राजनीतिक दांव है या वाकई कोई गठजोड़ बनने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

मुस्लिम वोट बैंक पर नजर, विरोधियों की चिंताएं

बंगाल की राजनीति में मुस्लिम वोट हमेशा से अहम रहे हैं और TMC, कांग्रेस, वाम दलों से लेकर अब AIMIM तक सबकी नजर इस वोट बैंक पर रहती है। ऐसे में हुमायूं कबीर का नया दावा कि उनकी पार्टी मुसलमानों के लिए काम करेगी और 135 सीटों पर उतरेगी, सीधे तौर पर मौजूदा पार्टियों की रणनीति को चुनौती देता है।

 

कुछ राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर हुमायूं अपनी मस्जिद और चंदे की राजनीति के जरिए भावनात्मक समर्थन जुटा लेते हैं, तो वह कई सीटों पर वोट कटवा की भूमिका भी निभा सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ, यह भी आशंका जताई जा रही है कि धार्मिक प्रतीकों और बाबरी मस्जिद जैसे नामों के अधिक इस्तेमाल से समाज में ध्रुवीकरण बढ़ सकता है।

 

समर्थकों का उत्साह, विरोधियों के सवाल

हुमायूं कबीर के समर्थकों के लिए यह पूरी मुहिम ‘कम्युनिटी यूनिटी’ और ‘अपनी पहचान’ का सवाल बन गई है। उनके समर्थक यह तर्क दे रहे हैं कि अगर लोग अपनी मर्जी से चंदा दे रहे हैं और पारदर्शिता से मस्जिद बन रही है, तो इसमें किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए। वीडियो में दिख रहा खुले तौर पर चंदा गिनने का सीन भी समर्थक पक्ष के लिए एक तरह से ‘प्रूफ’ जैसा इस्तेमाल किया जा रहा है।

दूसरी तरफ, विरोधी यह पूछ रहे हैं कि क्या धार्मिक इमारतों के नाम पर इस तरह खुलेआम राजनीतिक संदेश देना सही है। साथ ही, वे यह भी सवाल उठा रहे हैं कि जब राज्य में पहले से कई मस्जिदें और धार्मिक ढांचे मौजूद हैं, तब एक खास नाम और प्रतीक के जरिए नया मुद्दा क्यों खड़ा किया जा रहा है।

आगे क्या? मस्जिद, पैसा और चुनावी गणित

फिलहाल तस्वीर यह है कि मस्जिद की नींव पड़ चुकी है, चंदा आने का सिलसिला जारी है और उस पर सियासी बयानबाजी भी तेज है। हुमायूं कबीर लगातार खुद को मुसलमानों की नई सियासी आवाज के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं और यही वजह है कि मस्जिद फंड और नई पार्टी – दोनों को वह साथ में जोड़कर आगे बढ़ा रहे हैं।

1) आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि

2) क्या AIMIM सच में उनके साथ खड़ी होती है या नहीं

3 ) क्या चंदे और मस्जिद वाली इमेज उन्हें चुनाव में फायदा दिलाती है

4) या फिर यह मामला सिर्फ विवाद और सुर्खियों तक ही सीमित रह जाता है।

फिलहाल इतना साफ दिख रहा है कि मुर्शिदाबाद की इस ‘बाबरी मस्जिद’ की कहानी ने बंगाल की सियासत में एक नई बहस शुरू कर दी है, जहां धर्म, चंदा, पारदर्शिता और वोट बैंक – सब एक साथ जुड़ गए हैं।

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