ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
नेपाल में सोशल मीडिया बैन और लंबे समय से चले आ रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ गुस्से ने आंदोलन का रूप ले लिया है। यह आंदोलन अब हिंसा, आगजनी और जानमाल की तबाही में बदल चुका है। मंगलवार रात 10 बजे से सेना ने पूरे देश का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया, लेकिन हालात थमे नहीं। बुधवार को भी कई इलाकों में हिंसा जारी रही।
आपको बता दें, मंगलवार शाम प्रदर्शनकारियों ने नेपाल के सुप्रीम कोर्ट को निशाना बनाया। आगजनी में 25,000 से अधिक केस फाइलें जलकर राख हो गईं। मुख्य न्यायाधीश और रजिस्ट्रार के कक्षों से लेकर आईटी विभाग तक सब कुछ आग में नष्ट हो गया। कोर्ट परिसर के वाहनों को भी जला दिया गया। हालांकि वेबसाइट और डेटा का बैकअप लिया गया था, लेकिन कई महत्वपूर्ण फैसलों का रिकॉर्ड जलकर खत्म हो गया।
सेना की कार्रवाई, उपद्रवी गिरफ्तार
सेना ने बुधवार को 27 उपद्रवियों को गिरफ्तार किया। इनके पास से 33.7 लाख रुपये नकद और 31 तरह के हथियार, जिनमें 23 बंदूकें, गोलियां और मैगजीन शामिल हैं, बरामद किए गए। सेना का कहना है कि ये लोग स्थिति का गलत फायदा उठाकर तोड़फोड़, लूटपाट और आगजनी कर रहे थे। गिरफ्तारी गौशाला, चाबहिल और बौद्ध इलाकों से हुई।
नेताओं के घरों पर हमले
प्रदर्शनकारियों का गुस्सा सिर्फ सरकारी संस्थानों तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्रियों के घरों को भी आग के हवाले कर दिया।
• शेर बहादुर देउबा और उनकी पत्नी, विदेश मंत्री आरजू राणा को घर में घुसकर पीटा गया।
• पुष्प कमल दहल प्रचंड के घर पर भी हमला किया गया।
• झालानाथ खनाल के घर में आग लगाने से उनकी पत्नी राजलक्ष्मी चित्रकार गंभीर रूप से झुलस गईं और इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।
इसके अलावा वित्त मंत्री विष्णु पौडेल को काठमांडू में उनके घर के पास दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया। सोशल मीडिया पर इसका वीडियो वायरल हो रहा है।
प्रधानमंत्री ओली का इस्तीफा और भागना
लगातार बढ़ते दबाव और हिंसा के बीच प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने मंगलवार को इस्तीफा दे दिया। प्रदर्शनकारियों ने उनके घर को भी आग के हवाले कर दिया, जिसके बाद सेना ने उन्हें हेलिकॉप्टर से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। हालांकि उन्हें कहां ले जाया गया है, इसकी जानकारी नहीं है।
चितवन जिले में प्रदर्शनकारियों ने जेल में आगजनी की और कैदियों को रिहा करने की मांग की। अफरा-तफरी में 500 से ज्यादा कैदी भागने में कामयाब रहे। जेल में तैनात सेना और पुलिस उन्हें रोक नहीं पाई।
अब तक का नुकसान
• हिंसक प्रदर्शनों में 22 लोगों की मौत हो चुकी है।
• 400 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं।
• सरकारी दफ्तरों, नेताओं के घरों और सुप्रीम कोर्ट को भारी नुकसान हुआ है।
नेपाल की राजनीतिक पृष्ठभूमि
आपको बता दें, नेपाल 2008 तक राजशाही रहा। 10 साल के माओवादी गृहयुद्ध और 17,000 से ज्यादा मौतों के बाद देश को लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया। तब से लगातार सरकारें बदलीं और भ्रष्टाचार के आरोप बढ़ते रहे।
सेना का नियंत्रण और संभावनाएं
नेपाल में फिलहाल सेना ने पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया है। बुधवार शाम 5 बजे तक प्रतिबंध लागू रहेगा और रात 10 बजे से गुरुवार सुबह 6 बजे तक सख्त कर्फ्यू जारी रहेगा।
• पुराने नेताओं की वापसी अब मुश्किल है क्योंकि युवा पीढ़ी उनके खिलाफ खड़ी है।
• आंदोलन का नेतृत्व साफ नहीं होने से इसकी दिशा अस्थिर है।
• तत्काल चुनाव मुश्किल होंगे क्योंकि देश आर्थिक दबाव में है।
• राजशाही समर्थक फिर से ताकतवर हो सकते हैं और लोकतंत्र पर सवाल उठ सकते हैं।
कुल मिलाकर, नेपाल आज एक बार फिर इतिहास के मोड़ पर खड़ा है। सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुआ यह आंदोलन अब राजनैतिक व्यवस्था की जड़ों को हिलाने लगा है। जन-आक्रोश, नेताओं पर हमले, अदालत और जेलों में आगजनी ने यह साफ कर दिया है कि युवा पीढ़ी अब बदलाव चाहती है।
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