"जिन्हें बचाने का वादा था, अब वही बेसहारा हैं", ये शब्द UNAIDS की उस रिपोर्ट के हैं जिसमें चेताया गया है कि अगर अमेरिका ने HIV/AIDS के लिए फंडिंग दोबारा शुरू नहीं की, तो 2029 तक 40 लाख लोगों की मौत और 60 लाख नए संक्रमण सामने आ सकते हैं।20 साल पुरानी योजना, जिसने करोड़ों जानें बचाईं2003 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने HIV/AIDS के खिलाफ एक ऐतिहासिक पहल की शुरुआत की थी, PEPFAR (President’s Emergency Plan for AIDS Relief)।ये प्रोग्राम अब तक 8 करोड़ से ज़्यादा लोगों की HIV जांच कर चुका है और करीब 2 करोड़ मरीजों को मुफ्त इलाज दे चुका है।अकेले नाइजीरिया में 99.9% HIV की दवाइयों का खर्च PEPFAR के जरिए ही पूरा होता था। लेकिन जनवरी 2025 में अमेरिका ने अचानक विदेशी फंडिंग बंद कर दी।नतीजा, क्लीनिक बंद हो रहे हैं, सप्लाई चेन टूट गई है, और हजारों हेल्थ वर्कर बेरोजगार हो गए हैं।जांच रुकी, डेटा गायब, सिस्टम ठपUNAIDS की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका की फंडिंग बंद होने से दुनिया के कई देशों में HIV कार्यक्रम थम गए हैं।जागरूकता अभियान ठप हो गए हैंटेस्टिंग की रफ्तार घटी हैकई कम्युनिटी क्लीनिक बंद हो चुके हैंमरीजों की पहचान और ट्रैकिंग का पूरा सिस्टम अंधेरे में चला गया हैPEPFAR सिर्फ दवाइयां नहीं देता था, बल्कि वह HIV संबंधित डेटा एकत्र करने, संस्थान चलाने और डिजिटल ट्रैकिंग जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में भी सबसे आगे था।अब जब ये फंड नहीं मिल रहे, तो अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों के पास न आंकड़े हैं, न इलाज की व्यवस्था।नई दवा Yeztugo से उम्मीद, लेकिन सबके लिए नहींइस संकट के बीच एक नई दवा ने उम्मीद जगाई है, Yeztugo, जिसे अमेरिका की FDA ने हाल ही में मंजूरी दी है।इस दवा की खासियत है कि यह हर छह महीने में सिर्फ एक डोज से HIV संक्रमण को 100% तक रोकने में असरदार है।दक्षिण अफ्रीका और कुछ देशों ने इसे लागू करने की योजना बनाई है। लेकिन समस्या है कीमत और पहुंच की।दवा बनाने वाली कंपनी Gilead ने कहा है कि वह इसे गरीब देशों को सस्ते में देगी, लेकिन मिड-इनकम देशों जैसे ब्राज़ील, मैक्सिको, थाईलैंड को इसमें शामिल नहीं किया गया।यानि जिन देशों में HIV संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है, उन्हें इस दवा से फायदा नहीं मिल पाएगा।अब आगे क्या?WHO, UNAIDS और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन फिर से अमेरिका से अपील कर रहे हैं कि वह PEPFAR फंडिंग बहाल करे।कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ये फंड जारी नहीं किए गए, तो HIV की लड़ाई में मिली 20 साल की मेहनत और कामयाबी बेकार हो सकती है।यह मामला अब सिर्फ दवाओं का नहीं, बल्कि ग्लोबल हेल्थ इक्विटी का बन गया है, क्या अमीर देश, गरीब देशों को यूं ही मरने के लिए छोड़ देंगे?आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ। Comments (0) Post Comment
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