अमेरिका का ईरान हमला क्या बढ़ा देगा कोरिया का परमाणु दबदबा?

ईरान‑इजराइल के बीच हुई अमेरिकी हस्तक्षेप वाली हिंसक घटनाओं ने पूरी दुनिया की नज़रें पश्चिम एशिया में टिका दीं, लेकिन सच कहना हो तो असली खतरा कहीं और पनप रहा है, और वो है उत्तर कोरिया।


ज़मीनी हालात पर किम जोंग उन की नई हवा

दरअसल, परमाणु हथियारों की ताकत पहले ही उत्तर कोरिया की सबसे बड़ी ताकत रही है और अमेरिका के हालिया हमले ने इसे और मजबूत कर दिया है।

किम जोंग उन पहले से मानते हैं कि नाभिकीय हथियार ही उनकी सत्ता की गारंटी हैं और अब अमेरिका के उस हमले ने उन तक साफ संदेश पहुँचाया है, ‘बिना हथियारों के रहोगे तो निशाना बनोगे।’

क्योंकि अमेरिका ने ऊँची लागत वाले स्टील्थ बॉम्बर भेजी, तो उनका संदेश यह गया कि परमाणु न होने पर रक्षा कैसे होती है?

इतनी ही नहीं, अब रूस‑उत्तर कोरिया की दोस्ती भी एक नयी रणनीतिक दिशा ले रही है।

यूक्रेन के युद्ध के दौरान जब प्योंगयांग ने हथियार और सैनिक भेजे, तो बदले में रूस ने उसे आधुनिक तकनीक तथा तेल मुहैया कराया। यहीं से शुरू हुआ यह साझेदारी अब रक्षा गठजों की ओर बढ़ रही है।


रणनीतिक नीयत कहती है खिलाफत  मुश्किल पैदा का सकता है

इसके अलावा कोरिया के पास पहले से 40‑50 परमाणु बम माने जाते हैं और मध्यम तथा ICBM दूरी की मिसाइलें अमेरिका तक मार सकती हैं।

ऐसे तमाम हथियार और रूस जैसी ताकतवर दोस्ती होने से अमेरिका की अगली हर कार्रवाई कठिन होती जा रही है।

यही वजह है कि किम जोंग उन अब सिर्फ एक खतरा नहीं, बल्कि एक चुनौती बनकर उभर रहा है।


रूस‑कोरिया की मित्रता माना जा रहा नया चैप्टर

सियोल और वाशिंगटन की चिन्ता की खास बात यह रही कि ईरान पर अमेरिका के हमले ने उत्तर कोरिया और रूस की साझेदारी को और मजबूत बना दिया है।

तेल सप्लाई से लेकर संयुक्त सैन्य अभ्यास तक, यह दोस्ती अब सिर्फ सहयोग नहीं, बल्कि एक रणनीतिक गठबंधन में बदल रही है।

और अगर यह गठजोड़ गहराता है, तो यूक्रेन जंग की तरह दक्षिण कोरिया और अमेरिकी ताकतों के बीच एक और गर्म टकराव बन सकता है।


कोरिया की न्यूक्लियर फैक्टरी की तेज रफ्तार

असल सवाल यह है कि ईरान पर अमेरिकी कार्रवाई ने किम जोंग उन को डराया नहीं, बल्कि एक ठोस संदेश दिए, “परमाणु हथियार हो या नहीं, यही ज़िंदा रहने की गारंटी हैं।”

अब यही सोच उत्तरी कोरिया को परमाणु कार्यक्रम तेज करने के लिए प्रेरित कर सकती है, और अगली दुनिया की कहानी में वह सबसे बड़ा किस्सा बन सकता है।


आगे क्या रणनीति दिलचस्प

तथ्य यह है कि पूर्वी एशिया अब एक नए वैश्विक तनाव के कट्टरपंथी एपिसोड के केंद्र में आ गया है।

युद्ध‑प्रचार केवल ईरान‑इज़राइल तक सीमित नहीं, बल्कि कोरिया जैसी परमाणु ताकत हाथ खड़ा कर रही है।

और अंत में यही कहना पड़ेगा और बताना पड़ेगा कि यह खेल अब बेहद खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका है, क्योंकि न केवल पश्चिम एशिया बल्कि पूर्व एशिया में भी तनाव एक निर्णायक ज़मीन पर आने वाला है।

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