दिन हो रहे हैं छोटे, वजह धरती की रफ्तार: चौंकाने वाली रिपोर्ट!
दिन हो रहे हैं छोटे, वजह धरती की रफ्तार: चौंकाने वाली रिपोर्ट!
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धरती के घूमने की रफ्तार को लेकर हाल ही में जो रिपोर्ट सामने आई है, उसने विज्ञान जगत और आम लोगों के बीच चर्चा तेज कर दी है।


वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती अब सामान्य से तेज गति से घूम रही है, जिससे दिन की लंबाई घट रही है।


जहां आमतौर पर एक दिन 24 घंटे का माना जाता है, वहीं अब यह समय कुछ मिलीसेकंड तक छोटा हो रहा है।


लाइव साइंस और इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एंड रिफरेंस सिस्टम्स सर्विस की रिपोर्टों के अनुसार, यह बदलाव कुछ खास खगोलीय स्थितियों की वजह से हो रहा है और आने वाले कुछ हफ्तों में इसका असर और अधिक देखा जा सकता है।


धरती के रोटेशन में तेजी और वैज्ञानिक चेतावनी


वैज्ञानिकों ने बताया है कि जुलाई और अगस्त 2025 में धरती का रोटेशन सामान्य से तेज रहेगा। 9 जुलाई, 22 जुलाई और 5 अगस्त जैसे दिनों में चंद्रमा की स्थिति ऐसी होगी कि धरती की स्पिनिंग स्पीड कुछ और बढ़ जाएगी।


इसका सीधा असर दिन की लंबाई पर होगा। ये दिन सामान्य से करीब 1.3 से 1.51 मिलीसेकंड छोटे होंगे।


एक दिन में कुल 86,400 सेकंड होते हैं, लेकिन जब धरती इससे पहले ही एक रोटेशन पूरा कर लेती है, तो तकनीकी रूप से वह दिन छोटा हो जाता है।


US Naval Observatory द्वारा साझा किए गए डेटा के अनुसार, यह प्रक्रिया पूरी तरह स्थायी नहीं है लेकिन समय-समय पर बदलाव सामने आते रहते हैं।


पृथ्वी की गति को प्रभावित करने वाले कारक


धरती की रोटेशन स्पीड एकदम स्थिर नहीं रहती। इस पर कई प्राकृतिक और बाहरी ताकतों का असर होता है। चंद्रमा और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल, धरती के चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव, बर्फ का पिघलना, भूजल का प्रवाह, मौसमी परिवर्तन और भूकंप जैसे घटनाएं धरती की गति को प्रभावित कर सकती हैं।


जब इन तत्वों का संतुलन बदलता है, तो धरती का घूर्णन भी उसकी प्रतिक्रिया में थोड़ा तेज या धीमा हो सकता है। इसी वजह से कभी-कभी दिनों की लंबाई सामान्य से ज्यादा या कम हो जाती है।


वैज्ञानिकों का मानना है कि फिलहाल जो बदलाव देखने को मिल रहा है वह अस्थायी है लेकिन इसमें दिलचस्पी इसलिए है क्योंकि हाल के वर्षों में ऐसे कई छोटे दिन दर्ज किए गए हैं।


इतिहास में दिन कितने लंबे या छोटे रहे हैं?


अगर हम इतिहास की ओर देखें तो पता चलता है कि धरती का रोटेशन हमेशा से स्थिर नहीं रहा है। आज से लगभग 1 से 2 अरब साल पहले धरती एक दिन में सिर्फ 19 घंटे में अपना एक चक्कर पूरा कर लेती थी।


उस समय चंद्रमा धरती के बहुत करीब था और उसका गुरुत्वाकर्षण प्रभाव बहुत ज्यादा था। यह प्रभाव धरती को तेजी से घुमाता था।  समय के साथ चंद्रमा धरती से दूर होता गया और धरती का रोटेशन धीमा होता गया।


वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि लगभग 7 करोड़ साल पहले जब टायरानोसॉरस रेक्स पृथ्वी पर विचरण करता था, तब एक दिन लगभग 23.5 घंटे का हुआ करता था। 


इस ऐतिहासिक तुलना से यह स्पष्ट है कि धरती के दिन लंबे होते जा रहे थे, लेकिन फिलहाल जो बदलाव देखा जा रहा है वह इस दीर्घकालिक प्रवृत्ति से थोड़ी देर के लिए अलग है।


सबसे छोटा दिन और उसके पीछे की वजह


5 जुलाई 2024 को धरती ने 24 घंटे से भी कम समय में एक पूरा रोटेशन पूरा कर लिया। यह अब तक का सबसे छोटा दिन माना गया, जो 1.66 मिलीसेकंड छोटा था। 2020 के बाद से लगातार धरती की गति में ऐसे उतार-चढ़ाव देखे जा रहे हैं। 1970 के दशक के बाद से 2020 पहली बार था जब धरती इतनी तेजी से घूमी थी।


इस बदलाव को वैज्ञानिकों ने गंभीरता से लिया है और अब समय को मापने के लिए atomic clocks और अंतरराष्ट्रीय टाइमिंग सिस्टम में लगातार समायोजन किया जा रहा है।


वैज्ञानिकों की संस्थाएं, जैसे इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एंड रिफरेंस सिस्टम सर्विस, ऐसे बदलावों को मॉनिटर करती हैं और जरूरत पड़ने पर लीप सेकंड जोड़ने का फैसला लेती हैं ताकि समय में असमानता न आए।


क्या इसका असर हमारी तकनीकी दुनिया पर पड़ेगा?


यह सवाल काफी अहम है क्योंकि आधुनिक दुनिया में तकनीकी नेटवर्क और संचार के लिए समय की अत्यधिक सटीकता जरूरी होती है। सैटेलाइट नेविगेशन, GPS, मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट सर्वर जैसे सिस्टम नैनोसेकंड के अंतर पर काम करते हैं। 


अगर धरती का समय बदलता है तो ये सिस्टम प्रभावित हो सकते हैं। यही वजह है कि वैज्ञानिक इस बदलाव पर बारीकी से नजर रख रहे हैं।


हालांकि आम लोगों के जीवन पर इसका तात्कालिक असर नहीं होगा, लेकिन लंबी अवधि में यह समय प्रबंधन और तकनीकी ढांचे के लिए एक चुनौती बन सकता है।


भविष्य में क्या रुझान देखने को मिल सकते हैं?


ऑस्टिन स्थित टेक्सास यूनिवर्सिटी के अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र के प्रोफेसर क्लार्क आर. विल्सन के अनुसार, भले ही अभी दिन छोटे होते दिख रहे हों, लेकिन दीर्घकालिक तौर पर देखा जाए तो दिन लंबा ही होते जाएंगे।


यह प्रक्रिया बहुत धीमी है और मानव जीवन के समय पैमाने पर इसका असर महसूस करना मुश्किल है।


यह संभव है कि आने वाले समय में जब वैज्ञानिक इस दिशा में और गहराई से शोध करेंगे तो पृथ्वी की गति को प्रभावित करने वाले और भी सूक्ष्म कारण सामने आएं। 


फिलहाल यह स्पष्ट है कि धरती की रोटेशन में आई यह तेजी एक अस्थायी घटना है, लेकिन विज्ञान और समय गणना की दुनिया के लिए यह एक बड़ा अलर्ट है।


आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ।


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