फैशन की चुप्पी में छुपी तबाही की आहटकभी सोचा है कि जिस स्टाइलिश जूते को देखकर आप शॉपिंग मॉल में ठिठक जाते हैं, वही एक दिन धरती की तबाही की वजह बन सकते हैं? दरअसल, फैशन के नाम पर खरीदे गए ये रंग-बिरंगे, डिज़ाइनर और मैचिंग फुटवियर जब पुराने हो जाते हैं तो उनके साथ हमारी यादें नहीं, बल्कि प्रदूषण जुड़ता चला जाता है। पहनने के बाद जब इन फुटवियर्स की सांसें टूटती हैं, तो हम इन्हें या तो फेंक देते हैं या किसी को दान कर देते हैं। पर सोचिए, जो जूते कूड़े में जाते हैं, उनका आगे क्या होता है?धरती की गहराई में दबती जहरीली कहानियांगौर करने वाली बात ये है कि पुराने जूते-चप्पल सीधे लैंडफिल साइट्स में पहुंच जाते हैं। वहां ये मिट्टी में सड़ते नहीं, बल्कि वर्षों तक जस के तस पड़े रहते हैं। ये न तो गलते हैं और न ही सड़ते, बल्कि धीरे-धीरे ज़मीन के नीचे के पानी को जहरीला बनाना शुरू कर देते हैं। खासकर वे जूते जो चमड़े, सिंथेटिक रबर या प्लास्टिक से बने होते हैं वो पूरी तरह नॉन-बायोडिग्रेडेबल होते हैं। यानी, हजारों साल भी गुजर जाएं, तब भी वो ज्यों के त्यों बने रहेंगे।जूतों के पीछे की जहरीली फैक्ट्री की सच्चाईअब बात करें उन जूतों के बनने की, तो कहानी और डरावनी हो जाती है। चमड़ा, रबर, गोंद, रंग, प्लास्टिक और जाने कौन-कौन से रसायन मिलकर एक जोड़ी जूते तैयार करते हैं। ये सब केमिकल पानी में जाएं तो पानी की शुद्धता बिगाड़ते हैं, ज़मीन में मिलें तो उपजाऊपन कम कर देते हैं और हवा में उड़ें तो सांसों में ज़हर घोल देते हैं।खासकर चमड़ा, जिसे पाने के लिए जंगलों को काटा जाता है, जानवरों को मारा जाता है। फिर उसे टैनिंग प्रोसेस से गुजारा जाता है, जहां क्रोमियम जैसे ज़हरीले तत्वों का इस्तेमाल होता है। ये प्रक्रिया न सिर्फ जानवरों के लिए बल्कि इंसानों के लिए भी खतरा पैदा करती है।आपके एक फैसले से बच सकती है प्रकृति की सांसअब सवाल ये उठता है कि हम करें तो क्या करें? तो सबसे पहला काम जूते जब टूट जाएं तो उन्हें मरम्मत कराएं। हर जूते फेंकना जरूरी नहीं होता, कई बार एक मोची की सुई उसमें नई जान डाल देती है। दूसरा विकल्प है ऐसे फुटवियर खरीदें जो बायोडिग्रेडेबल सामग्री से बने हों। यानी पहनने के बाद जब वो फेंके जाएं तो खुद ब खुद गल जाएं और पर्यावरण पर कोई बोझ न बनें।दूसरी ओर, रिसाइकल और दान है बेहतर उपायजिन जूतों को आप कूड़े में डालने का सोचते हैं, उन्हें पहले एक बार फिर देखिए—क्या वो किसी गरीब के काम आ सकते हैं? या फिर किसी NGO या संस्था में दान किए जा सकते हैं? बहुत सी जगहें हैं जो पुराने फुटवियर इकट्ठा करके जरूरतमंदों तक पहुंचाती हैं या उन्हें रिसाइकल करके फिर से उपयोगी बना देती हैं।फैशन के साथ थोड़ा विवेक भी ज़रूरी हैदरअसल, आजकल की खरीदारी आदतें ‘यूज़ एंड थ्रो’ कल्चर में ढल चुकी हैं। हम हर नई ड्रेस के साथ नए फुटवियर का कॉम्बिनेशन ढूंढते हैं। लेकिन अगर हम हर ट्रेंड के पीछे आंख मूंदकर भागेंगे, तो पर्यावरण के लिए ये दौड़ बहुत महंगी साबित होगी।एक जोड़ी जूते, सौ सवालआपके जूते जब फटते हैं तो उनकी जगह लेने के लिए नई जोड़ी बनती है, और उसके पीछे जो संसाधन लगते हैं, वो बहुत ज्यादा हैं। पानी, जंगल, श्रम, बिजली और केमिकल सब कुछ खर्च होता है। ऐसे में जिम्मेदारी बनती है कि हम न सिर्फ समझदारी से खरीदें बल्कि ज़िम्मेदारी से उनका निपटान भी करें।निष्कर्ष – फैशन चलेगा, लेकिन धरती बचानी होगीअब वक्त आ गया है कि हम खुद से पूछें क्या एक जोड़ी जूते की स्टाइल, हमारी धरती की कीमत से ज्यादा जरूरी है? अगर जवाब ‘ना’ है, तो अगली बार जब जूते फटे दिखें, उन्हें कूड़े में फेंकने से पहले एक बार ज़रूर सोचिए। हो सकता है, वो किसी के पैरों में नई उम्मीद बनकर चल पड़े। Comments (0) Post Comment
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