ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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तीन देशों की मालूम नहीं परफेक्ट प्लानिंग परपोज
अचानक सोचना कि चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश मिलकर भारत पर हमला कर दें, ऐसा अमेरिका की फिल्मों में आता है, लेकिन अफसोस की बात ये है कि ये फैंटेसी नहीं, बल्कि एक खौफनाक शक्ल अख्तियार करती जा रही है। हाल ही में सामने आया है कि चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश मिलकर ‘साका’ (South Asia‑China Alliance) नाम का एक नया गठबंधन बना सकते हैं। शुरुआती खबरें कह रही हैं कि अगस्त में इस्लामाबाद में साझी बैठक होगी, जिसमें मलदीव, श्रीलंका और अफगानिस्तान भी शामिल हो सकते हैं।
तीन हाथों से जंग? ये कैसे होगा
अगर साका सच में अस्तित्व में आ गया तो भारत को तीन देशों से मुंहतोड़ जवाब देना पड़ेगा। पाकिस्तान तो हमेशा से दुश्मन रहा है और चीन हमेशा से भारत की सीमाओं पर खड़ा है। अब अगर बांग्लादेश भी शामिल हुआ तो नए मोर्चे बन जाएंगे।
कीड़ा वही है कि अगर भारत-पाकिस्तान की जंग शुरू होती है, तो चीन कूदेगा अपनी सीमा पर दबाव बढ़ाने के लिए। इधर-पड़ौसी देशों पर निर्भर भारत के लिए मुश्किलें और बढ़ जाएंगी कि भारत एक‑साथ तीन मोर्चों पर युद्ध कर सके या नहीं।
इतिहास गवाही देता है, लेकिन हालत बदल चुकी है
भारत आजादी के बाद पांच जंग लड़ चुका है – 1962 की चीन से, तीन जंग पाकिस्तान से और 1999 की कारगिल। हर बार पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया गया, जबकि चीन के साथ कारगर एकतरफा युद्ध विराम किया गया। लेकिन तब बदला हुआ चीन था और जम्मू-कश्मीर‑भारत सीमा विवाद साफ था।
आज चीन 4057 किमी बॉर्डर वाले हिमालयी मोर्चे पर तैनात है, और पाकिस्तान के साथ सीमाओं पर आतंकवाद, घुसपैठ जैसे पुरानी रणनीतियाँ काम में लाई जाती हैं।
सियासी दबाव और समुद्री घेरे की चुनौतियाँ
चीन ने म्यांमार, श्रीलंका, पाकिस्तान और जिबूती में पोर्ट बना रखे हैं, जो समुद्री रास्तों से भारत को घेरते हैं। ऐसी स्थिति में अगर साका बने, तो चीन युद्द में सीधे नहीं कूदेगा, लेकिन उत्तरी-पूर्वी मोर्चे पर दबाव बना कर भारत की ग्रेनेडा की तरह ध्यान बाँट सकता है। जब चीन और पाकिस्तान साथ-साथ युद्ध करेंगे, तो भारत को लंबी दूरी की घेराबंदी का सामना करना पड़ेगा।
तीसरा मोर्चा और CRPF की कसरत
और अगर बांग्लादेश ने हथियार उठाए, तो भारत के सामने थ्री‑फ्रंट वॉर की दर्दनाक हकीकत खड़ी हो जाएगी। इसका फ्रीफॉर्म ये होगा कि पंजाब-मुफ्ता की जगह CRPF को पश्चिम से उत्तर और उत्तर से पूर्व तक इधर‑उधर हिस्सों में बाँटकर काम करना पड़ेगा। गुरिल्ला-वॉरफेयर की चोटनाक सच्चाई सामने आएगी। इतन बड़ी जगहों पर सेना की तैनाती इतनी जल्द संभव नहीं हो पाएगी।
बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में नौसेना की मोर्चा तैयारियां
नौसेना के लिए भी अब चुनौतियाँ दोगुनी हो जाएंगी। एक हिस्सा कराची की ओर, दूसरा बंगाल की खाड़ी में चीन-बांग्लादेश की तरफ़ जगह बना सकता है। इसका मतलब होगा जहाजों, उपग्रह और हथियार संग्रहीत प्रणाली को दो मोर्चों पर सक्रिय रखना।
चार्जे न कम होंगे, खर्च बढ़ेगा
तीसरी मोर्चे की तैयारी का मतलब होगा कि हथियारों की खपत और बैक-अप तैयारियों में भारी इज़ाफा होगा। भारत को इसके लिए रणनीति तैयार करनी होगी स्लिपर कोच भरोसा नहीं, बल्कि हथियारों, स्पेयर पार्ट्स और सिस्टम ओरटालिक रहना होगा।
‘दोस्तों’ की तार्किक खोखली ताकत
रिपोर्ट्स कहती हैं कि चीन और पाकिस्तान सदियों के दोस्त हैं। अगर बांग्लादेश भी इसमें शामिल हुआ, तो ताकत और भी बढ़ सकती है, लेकिन ऐसी स्थिति का मतलब ये नहीं कि भारत हार जाएगा। मगर एक बात साफ है, थ्री-फ्रंट वार का मुकाबला किसी भी देश के लिए आसान नहीं होता।
भारत की तैयारी और रणनीतिक महत्व
भारत के पास एक ताकतवर सेना, नौसेना और एयरफोर्स है, लेकिन थ्री-फ्रंट मोर्चे पर इसे जीनियस प्लान चाहिए डेटा इंटेलिजेंस, ड्रोन, सैटलाइट्स, साइबर डिफेंस, एयर डोमिनेस और इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार रखना होगा। इसमें CRPF, ITBP, BSF जैसे फोर्सेज की ताकत शामिल होगी।
और हां, जनता को तैयार रखना होगा कि स्कूल-कॉलेज हर दिन नहीं ये लड़ाई जीती जाती है। इसकी शुरुआत पहले खास लोग करेंगे एस्ट्रैटिजिस्ट, जज, डी‑स्पेस टीम, मीडिया, और आम आदमी को तैयार करना होगा।
निष्कर्ष: हम कब तक पीछे नहीं हटेंगे
चीन-पाकिस्तान की जुबान तो हमेशा आग भڑकाया करती है, लेकिन इस बार बांग्लादेश की भी बात की जा रही है, ये बड़ी सवाल है। भारत ने इतिहास में कई मुश्किलों का सामना किया है, लेकिन थ्री‑फ्रंट वार उसकी सबसे बड़ी चुनौति होगी। कांग्रेस, डीएमके, NITI Aayog… सब इस मोर्चे के लिए मिलकर नीति बनाएं।
जरूरत नहीं डरने की, पर तैयारी ज़रूरी है। भारत दो मोर्चों पर लड़ सकता है, तीन पर भी लड़ सकता है, बशर्ते तैयारी वक्त रहते हो।
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