ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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भारत और चीन—एशिया की दो सबसे बड़ी शक्तियाँ हैं। सालों से दोनों देशों के बीच सीमा विवाद, कूटनीतिक खींचतान और रणनीतिक टकराव चलते रहे हैं। लेकिन ज़रा सोचिए, अगर ये दोनों पड़ोसी देश अपने मतभेद भुलाकर हाथ मिला लें तो तस्वीर कितनी बदल सकती है। यह सिर्फ एशिया ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था को हिला कर रख देगा। ऐसी स्थिति में अमेरिका जैसी महाशक्ति का भी दबदबा कमज़ोर पड़ सकता है और वैश्विक व्यवस्था की दिशा ही बदल सकती है।
अमेरिका पर संभावित असर
जी हाँ, अमेरिका की एशिया नीति मुख्य रूप से चीन को संतुलित करने पर टिकी है, और इसमें भारत उसकी अहम साझेदारी निभाता है। लेकिन अगर भारत और चीन साथ आ गए तो अमेरिका की रणनीति कमजोर हो जाएगी।
• इंडो-पैसिफिक रणनीति पर झटका: अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत को लेकर क्वाड तैयार किया है। भारत का चीन से हाथ मिलाना इस गठजोड़ की प्रभावशीलता घटा सकता है।
• आर्थिक दबदबा घटेगा: चीन और भारत मिलकर सप्लाई चेन, टेक्नोलॉजी और व्यापार में सहयोग करें तो अमेरिका और यूरोप पर निर्भरता कम हो जाएगी।
• डॉलर की पकड़ ढीली पड़ेगी: अगर दोनों देश स्थानीय मुद्राओं में व्यापार बढ़ाएँ, तो अमेरिकी डॉलर की वैश्विक वर्चस्व को चुनौती मिल सकती है।
अगर भारत और चीन साथ आते हैं, तो एशिया की आवाज़ और ताकत दुनिया में कहीं ज़्यादा मज़बूती से सुनी और महसूस की जाएगी।
• ग्लोबल साउथ को मजबूती: विकासशील देशों के मुद्दे जैसे कर्ज राहत, जलवायु फाइनेंस और खाद्य सुरक्षा पर इन दोनों देशों की साझा पहल पश्चिमी देशों के दबदबे को कमजोर कर सकती है।
• टेक्नोलॉजी
और इनोवेशन:
अगर
चीन
की
मैन्युफैक्चरिंग
क्षमता
भारत
की
आईटी
और
सर्विस
इंडस्ट्री
से
मिले,
तो
यह
दुनिया
का
सबसे
बड़ा
टेक-इकोसिस्टम बन सकता है।
• संस्थागत
नेतृत्व: ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंच और मजबूत हो सकते हैं, जिससे पश्चिमी संस्थाओं का प्रभुत्व घटेगा।
संभावित सहयोग के क्षेत्र
• व्यापार और निवेश: चीन को भारत का विशाल बाजार मिलेगा, जबकि भारत को चीनी पूंजी और टेक्नोलॉजी से फायदा होगा।
• ग्रीन
एनर्जी और
क्लाइमेट: सोलर, बैटरी और ग्रीन हाइड्रोजन में साझेदारी से लागत कम होगी और वैश्विक बदलाव तेज़।
• स्वास्थ्य
क्षेत्र: चीन की दवा निर्माण क्षमता और भारत की जेनेरिक दवा इंडस्ट्री साथ आए तो दुनिया को सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ मिल सकती हैं।
बाधाएँ जो रास्ता रोकती हैं
हालाँकि यह सहयोग आसान नहीं है। वजह है:
• रणनीतिक
असहमति: भारत बहुध्रुवीय विश्व चाहता है, जबकि चीन खुद को एशिया का प्रमुख नेता मानता है।
• जनमत
और राजनीति:
दोनों
देशों
में
एक-दूसरे के खिलाफ अविश्वास और राष्ट्रीयता की भावनाएँ गहरी हैं।
बहरहाल, अगर भारत और चीन वाकई साथ आ जाते हैं, तो इसका सबसे बड़ा असर अमेरिका पर दिखेगा। उसे अर्थव्यवस्था, रणनीति और कूटनीति—तीनों मोर्चों पर नुकसान झेलना पड़ सकता है। इसके बाद दुनिया की ताकत का संतुलन एशिया की तरफ झुकेगा और वैश्विक व्यवस्था एकतरफ़ा नहीं, बल्कि कई ध्रुवों वाली हो जाएगी। हालांकि, असली चुनौती यही है कि दोनों देशों के बीच गहरे सीमा विवाद और आपसी अविश्वास मौजूद हैं। ऐसे में ज़्यादा हकीकत यही लगती है कि भारत और चीन पूरी तरह दोस्ती की बजाय सीमित सहयोग का रास्ता अपनाएँगे—कुछ मुद्दों पर साथ काम करेंगे और बाक़ी मामलों में प्रतिस्पर्धा जारी रखेंगे।
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