उत्तर भारत में बाढ़ का कहर, लेकिन इन देशों का ड्रेनेज सिस्टम है कमाल

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उत्तर भारत इन दिनों मूसलाधार बारिश और बाढ़ की मार झेल रहा है। सबसे खराब हालात पंजाब में हैं, जहां भारी बारिश ने जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया है। राज्य सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक 30 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग 3.5 लाख लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं। करीब 23 जिलों के 1400 गांव पानी में डूबे हुए हैं। सिर्फ गुरदासपुर जिले में ही 324 गांव बुरी तरह डूब गए हैं। हजारों हेक्टेयर फसल नष्ट हो चुकी है और 5000 से ज्यादा राहत कैंपों में लोग शरण ले रहे हैं। इंसानों के साथ-साथ पशु-पक्षियों के लिए भी यह हालात बेहद कठिन हो गए हैं।

 हालांकि बाढ़ का संकट सिर्फ पंजाब तक सीमित नहीं है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे पहाड़ी राज्यों में भी बारिश ने तबाही मचाई है। वहीं, गुरुग्राम जैसी मेट्रो सिटी में थोड़ी सी बारिश होते ही सड़कें नदियों में बदल जाती हैं। यह तस्वीर साफ दिखाती है कि हमारे शहरों और गांवों का ड्रेनेज सिस्टम कितना कमजोर है।

 आखिर क्यों फेल होता है सिस्टम?

 भारत में हर साल बरसात के मौसम में जलभराव की समस्या सामने आती है। इसकी जड़ खराब ड्रेनेज सिस्टम है। बरसात का पानी सही से निकल नहीं पाता और सड़क पर जमा हो जाता है। नतीजतन, सड़कें टूटने लगती हैं, गड्ढे बन जाते हैं और कई जगह बाढ़ जैसी स्थिति खड़ी हो जाती है। पंजाब और गुरुग्राम की मौजूदा तस्वीरें इस सच्चाई को और उजागर कर रही हैं।

 जर्मनी की पानी पीने वाली सड़कें

 दुनिया के कई देशों ने इस समस्या का अनोखा हल निकाला है। जर्मनी में इंजीनियरों ने ऐसी सड़कें बनाई हैं, जो बारिश का पानी तुरंत सोख लेती हैं। इन सड़कों की सतह पर पानी टिकता ही नहीं, बल्कि सीधा जमीन के नीचे चला जाता है। इससे तो सड़कें खराब होती हैं और ही जलभराव होता है।

 हांगकांग का सीवॉटर फ्लशिंग सिस्टम

 हांगकांग ने 1950 के दशक से ही एक अलग तरीका अपनाया। वहां 80% से ज्यादा घरों में टॉयलेट फ्लशिंग के लिए समुद्र का पानी इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए अलग पाइपलाइन नेटवर्क बनाया गया है। इससे पीने योग्य पानी बचता है और ड्रेनेज पर भी बोझ कम पड़ता है।

 इजरायल और सिंगापुर की मिसाल

 इज़रायल गंदे पानी को दोबारा इस्तेमाल करने में दुनिया में सबसे आगे है। वहां 90% से ज्यादा गंदे पानी को साफ करके खेतों की सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। वहीं सिंगापुर नेन्यूवॉटरनाम की तकनीक बनाई है, जिससे नालों का पानी इतना साफ हो जाता है कि उसे दोबारा पीने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

 भारत को क्या सीखना चाहिए?

 भारत जैसे बड़े देश में बाढ़ और जलभराव हर साल की समस्या बन चुकी है। लेकिन अगर हम जर्मनी, हांगकांग, इज़रायल और सिंगापुर के उदाहरणों से सीख लें तो हालात को काफी हद तक सुधारा जा सकता है। ज़रूरत है कि हम आधुनिक ड्रेनेज सिस्टम, पानी के पुनर्चक्रण और उन्नत तकनीकों को तेजी से अपनाएं। तभी इस वार्षिक आपदा से स्थायी समाधान मिल पाएगा।

 

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