ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
दुनिया का इतिहास इस बात का गवाह है कि जब जनता का धैर्य टूटता है तो वह किसी भी सत्ताधारी सरकार को गिरा सकती है। हाल के वर्षों में कई देशों में ऐसा हुआ है, जहां जनता के गुस्से और आक्रोश ने सरकारों को उखाड़ फेंका। पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देशों ने तख्तापलट का दंश झेला है और अब इस सूची में नेपाल का नाम भी जुड़ गया है। आइए जानते हैं इन घटनाओं और उनके पीछे के कारणों के बारे में।
नेपाल में सोशल मीडिया बैन से उठा तूफान
4 सितंबर 2025 को नेपाल सरकार ने अचानक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगा दिया। इस फैसले ने युवाओं में जबरदस्त गुस्सा पैदा कर दिया। देखते ही देखते लाखों छात्र और युवा सड़कों पर उतर आए और सरकार के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। शुरुआत में यह विरोध सिर्फ सोशल मीडिया बैन को लेकर था, लेकिन जल्द ही यह आंदोलन प्रधानमंत्री ओली की सरकार के खिलाफ हो गया। दबाव बढ़ने पर सरकार को सोशल मीडिया बैन हटाना पड़ा, लेकिन तब तक हालात हाथ से निकल चुके थे। अंततः भारी विरोध और प्रदर्शन के बीच ओली को पद से इस्तीफा देना पड़ा और नेपाल में तख्तापलट की स्थिति बन गई।
पाकिस्तान में बार-बार दोहराई गई कहानी
पाकिस्तान तख्तापलट का सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है। 1947 के बाद से अब तक पाकिस्तान चार बड़े तख्तापलट झेल चुका है।
1953-54: पहला तख्तापलट हुआ।
1958: राष्ट्रपति इस्कंदर अली मिर्जा ने तत्कालीन सरकार को बर्खास्त किया।
1977: भ्रष्टाचार और धांधली के आरोपों के बीच जिया-उल-हक ने सत्ता संभाली।
1999: सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को हटाकर सत्ता पर कब्जा किया।
हर बार सेना ने जनता के असंतोष और राजनीतिक अस्थिरता का फायदा उठाकर सत्ता पर कब्जा जमाया।
बांग्लादेश: छात्र आंदोलन से गिरी सरकार
साल 2024 में बांग्लादेश की सड़कों पर लाखों छात्र और युवा उतरे। शुरुआत हुई सरकारी नौकरियों में 30% कोटा व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन से, लेकिन जल्द ही यह आंदोलन भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से परेशान जनता का व्यापक गुस्सा बन गया। प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ विरोध इतना बढ़ा कि उन्हें पद छोड़ना पड़ा। दिलचस्प बात यह रही कि इस तख्तापलट के पीछे अमेरिका की साजिश होने के आरोप लगे। शेख हसीना के बेटे ने खुले तौर पर कहा था कि अमेरिका ने इस राजनीतिक हलचल में भूमिका निभाई है।
साल 2022 में श्रीलंका की स्थिति बेहद खराब हो गई थी। देश में ईंधन, दवाओं और खाद्य सामग्री की भारी कमी हो गई। जनता का मानना था कि राजपक्षे परिवार की भ्रष्ट नीतियों ने देश को बर्बादी की कगार पर ला दिया है। जुलाई 2022 तक आंदोलन इतना बढ़ा कि जनता राष्ट्रपति भवन और संसद तक पहुंच गई। "गोटा गो गोटा" के नारों के बीच राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को सत्ता छोड़कर देश से भागना पड़ा।
कुल मिलाकर इन सभी घटनाओं से साफ है कि जब जनता अपने अधिकारों और आज़ादी के लिए खड़ी होती है, तो कोई भी सरकार कितनी भी मजबूत क्यों न हो, उसे झुकना पड़ता है। नेपाल से लेकर पाकिस्तान और श्रीलंका से बांग्लादेश तक—हर जगह तख्तापलट की कहानियां यही संदेश देती हैं कि लोकतंत्र जनता की ताकत से चलता है, और जब सत्ता उसका दुरुपयोग करती है, तो जनता बदलाव का बिगुल बजा देती है।
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