इमोजी भेजना बना जुर्म, कुछ देशों में दिल वाली इमोजी पर 5 साल की जेल!

कहते हैं, एक तस्वीर हजार शब्दों के बराबर होती है। यही बात आज के दौर में इमोजी पर भी पूरी तरह लागू होती है। इमोजी यानी डिजिटल दुनिया की वो भाषा जो बिना कुछ कहे भी बहुत कुछ कह देती है।


एक छोटा सा आइकन इंसान की भावनाएं, पसंद-नापसंद, गुस्सा या प्यार तक जाहिर कर सकता है। यही कारण है कि 17 जुलाई को पूरी दुनिया वर्ल्ड इमोजी डे मनाती है। 


लेकिन जिस इमोजी ने संवाद को आसान और रंगीन बनाया, वही कुछ देशों में विवाद और प्रतिबंध का कारण भी बन गई है।


इमोजी की शुरुआत और जन्मदाता की कहानी


इमोजी की शुरुआत जापान से हुई थी। शिगेताका कुरीता नामक एक जापानी युवक ने मात्र 25 साल की उम्र में इस क्रांतिकारी विचार को जन्म दिया।


साल 1999 में उन्होंने मोबाइल कम्युनिकेशन को अधिक भावनात्मक और प्रभावी बनाने के लिए 176 छोटे आइकन बनाए, जिन्हें हम आज इमोजी के रूप में जानते हैं। 


दिलचस्प बात यह है कि शिगेताका न तो डिजाइनर थे और न ही इंजीनियर। वे एक मोबाइल इंटरनेट कंपनी के लिए काम करते थे और शब्दों की सीमितता को देखकर उन्होंने इमोजी की कल्पना की।


उनका उद्देश्य था कि कम शब्दों में ज्यादा भाव जाहिर किए जा सकें और यूजर कम्युनिकेशन में जुड़ाव महसूस करें। यह प्रयोग इतना सफल रहा कि जल्द ही इन इमोजी का सेट न्यूयॉर्क के म्यूजियम ऑफ मॉडर्न आर्ट का हिस्सा बन गया।


शिगेताका के इन 176 इमोजी ने न केवल मोबाइल कम्युनिकेशन का चेहरा बदला, बल्कि इंटरनेट की भाषा को भी नई परिभाषा दी।


इमोजी को नियंत्रित करने वाला संगठन


जैसे-जैसे इमोजी की लोकप्रियता बढ़ी, वैसे-वैसे इनके स्वरूप और उपयोग को लेकर स्पष्टता की आवश्यकता महसूस हुई।


इसी उद्देश्य से ‘यूनिकोड कंसोर्टियम’ नामक एक संस्था का गठन हुआ, जो तय करती है कि कौन-सी नई इमोजी बनाई जाएंगी, उनका स्वरूप कैसा होगा और उन्हें कब जारी किया जाएगा।


यह एक गैर-लाभकारी संस्था है जिसमें गूगल, ऐपल, माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक और आईबीएम जैसी बड़ी कंपनियां शामिल हैं।


यूनिकोड कंसोर्टियम हर साल हजारों नए इमोजी के लिए आवेदन प्राप्त करता है, लेकिन उनमें से केवल कुछ को ही स्वीकृति मिलती है।


यह संस्था यह सुनिश्चित करती है कि इमोजी का वैश्विक स्तर पर सही और संतुलित उपयोग हो सके।


इमोजी की वैश्विक लोकप्रियता


इमोजी धीरे-धीरे युवाओं की संवाद भाषा बन गई। सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप्स, ईमेल और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लोग तेजी से शब्दों की जगह इमोजी का उपयोग करने लगे। एक रिपोर्ट के अनुसार, हर दिन दुनियाभर में 10 अरब से ज्यादा इमोजी भेजे जाते हैं।


सबसे पॉपुलर इमोजी की बात करें तो “Face with Tears of Joy” यानी 😂 इमोजी लगातार टॉप पर बनी हुई है।


यह खुशी और हंसी के भाव को इतने प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करती है कि यूजर्स इसे बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करते हैं।


इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि 2015 में ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने इसे ‘वर्ड ऑफ द ईयर’ घोषित कर दिया था।


कई देशों में इमोजी पर बैन और सजा


जहां एक ओर इमोजी को भावनाओं की अभिव्यक्ति का सुंदर माध्यम माना जाता है, वहीं कुछ देशों में इन्हें संस्कृति विरोधी या गैरकानूनी गतिविधियों से जोड़कर देखा जाता है।


सऊदी अरब जैसे देशों में LGBTQ+ से संबंधित इमोजी जैसे 🌈, 👬, 👭 और दिल वाली ❤️ इमोजी पर प्रतिबंध है। यहां इनका इस्तेमाल ‘अनैतिक’ या ‘संस्कृति विरोधी’ माना जाता है।


दिलचस्प बात यह है कि किसी को दिल वाली इमोजी भेजना भी यहां अपराध की श्रेणी में आता है और इसके लिए 3 से 5 साल तक की जेल की सजा हो सकती है।


ईरान में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। वहां लव, किस, LGBTQ+, डांस और वेस्टर्न कल्चर को दर्शाने वाली इमोजी प्रतिबंधित हैं। इन इमोजी को वहां के इस्लामिक सामाजिक मूल्यों के खिलाफ माना जाता है।


रूस ने भी LGBTQ+ से जुड़ी इमोजी और संबंधित डिजिटल कंटेंट पर बैन लगाया हुआ है।


इन देशों का तर्क है कि इमोजी के जरिए युवाओं के बीच गलत संदेश फैलाया जा सकता है और यह सांस्कृतिक व पारिवारिक मूल्यों को क्षति पहुंचा सकता है।


भविष्य में इमोजी का इस्तेमाल और विस्तार


हालांकि इमोजी पर पाबंदियों की खबरें चिंताजनक जरूर हैं, लेकिन वैश्विक स्तर पर इनका प्रयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। तकनीकी रूप से सक्षम समाजों में इमोजी संवाद का सशक्त माध्यम बन गए हैं।


कंपनियां अब इमोजी के जरिए मार्केटिंग करती हैं, पोलिटिकल पार्टियां चुनाव प्रचार में इनका सहारा लेती हैं और यहां तक कि शिक्षा में भी इनका उपयोग हो रहा है।


सवाल यह नहीं है कि इमोजी कितनी पॉपुलर हैं, बल्कि यह है कि क्या समाज इसके इस्तेमाल को उचित दिशा में ले जा पाएगा।


इमोजी न केवल संचार को सरल बनाते हैं, बल्कि वे एक साझा डिजिटल संस्कृति का निर्माण भी करते हैं।


हालांकि इनका प्रयोग जिम्मेदारी और संदर्भ के साथ होना जरूरी है, ताकि यह भाषा का सशक्त माध्यम बना रहे, न कि विवाद का कारण।


आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ।


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