ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
चंदा कोचर… एक ऐसा नाम जो देश के कॉर्पोरेट जगत में कभी ताकत की पहचान था, आज वही घूस और नैतिक पतन का प्रतीक बन गया है।
दरअसल, ICICI बैंक की पूर्व CEO चंदा कोचर को 64 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने के मामले में दोषी करार दिया गया है। ED यानी प्रवर्तन निदेशालय की जांच और आरोपों को अपीलेट ट्रिब्यूनल ने सही माना है।
ये मामला सीधे तौर पर ICICI बैंक की तरफ से वीडियोकॉन ग्रुप को दिए गए 300 करोड़ के लोन से जुड़ा है, जिसके बदले कोचर दंपत्ति को मोटा फायदा हुआ।
क्या, कहाँ, और कब हुआ?
गौर करने वाली बात ये है कि ये मामला 2009 से 2012 के बीच का है, जब चंदा कोचर ICICI बैंक की CEO थीं। जुलाई 2024 में अपीलेट ट्रिब्यूनल ने इस पूरे प्रकरण पर फैसला सुनाया, जिसमें उन्हें साफ तौर पर दोषी ठहराया गया।
ट्रिब्यूनल ने माना कि चंदा कोचर ने बैंक की आंतरिक नीतियों का उल्लंघन करते हुए वीडियोकॉन ग्रुप को लाभ पहुंचाया, और उसके बदले उनके पति की कंपनी को 64 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए गए।
कैसे हुआ ये पूरा 'quid pro quo'?
ED की रिपोर्ट के मुताबिक, ICICI बैंक ने वीडियोकॉन को जैसे ही 300 करोड़ रुपये का लोन मंज़ूर किया, ठीक अगले दिन वीडियोकॉन की कंपनी SEPL ने 64 करोड़ रुपये की रकम NRPL को ट्रांसफर कर दी।
देखने में ये रकम एक आम लेन-देन की तरह लग सकती है, मगर NRPL असल में चंदा के पति दीपक कोचर द्वारा कंट्रोल की जा रही कंपनी थी।
यही नहीं, दस्तावेज़ों में NRPL का मालिकाना हक वीडियोकॉन के चेयरमैन वेणुगोपाल धूत के नाम दिखाया गया, लेकिन जांच में सामने आया कि असली नियंत्रण दीपक कोचर के पास था।
ED की जांच और ट्रिब्यूनल की टिप्पणी
ट्रिब्यूनल ने ये भी कहा कि चंदा कोचर ने बैंक के 'कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट' (हितों के टकराव) के नियमों का खुला उल्लंघन किया। उन्होंने ये जानकारी छुपाई कि उनके पति की वीडियोकॉन ग्रुप से बिजनेस साझेदारी है।
ये केवल नियमों का उल्लंघन नहीं था, बल्कि एक CEO के रूप में अपने पद और ताकत का निजी फायदे के लिए दुरुपयोग भी था।
अंदर की कहानी और पैसा कैसे घूमा
दरअसल, चंदा कोचर ने न सिर्फ बैंक के नियमों को ताक पर रखा बल्कि एक बारीकी से सोची-समझी योजना के तहत पूरी फंडिंग और पैसे का ट्रांसफर प्लान किया गया।
ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट कहा कि ये मामला ‘quid pro quo’ का है, यानि "कुछ के बदले कुछ"।
बैंक से लोन मंजूर कराना और फिर उसी लोन के बदले अपने परिवार को फायदा पहुंचाना, ये रिश्वत की सबसे क्लासिक मिसाल मानी गई है।
2020 के फैसले पर भी झटका
खास बात ये है कि ट्रिब्यूनल ने साल 2020 में एक अथॉरिटी द्वारा चंदा कोचर और उनके साथियों की 78 करोड़ की संपत्ति को रिलीज करने के फैसले को भी गलत ठहराया है। उस वक्त की अथॉरिटी ने ED के सबूतों को नज़रअंदाज़ कर दिया था।
मगर अब ट्रिब्यूनल ने माना कि ED ने अपने दावे को स्पष्ट टाइमलाइन और मजबूत दस्तावेज़ों के साथ पेश किया था, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था।
चंदा कोचर की सफाई और आगे क्या?
फिलहाल चंदा कोचर की तरफ से इस फैसले पर कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन उनके वकीलों ने ये जरूर कहा है कि वो फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट का रुख कर सकते हैं।
वहीं ED का अगला कदम चंदा कोचर और दीपक कोचर की और संपत्तियों को फ्रीज़ करना और चार्जशीट दाखिल करना हो सकता है।
व्यापार और नैतिकता का टकराव
कहना गलत नहीं होगा कि चंदा कोचर का मामला भारत की कॉर्पोरेट गवर्नेंस की नैतिकता पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।
एक तरफ ICICI जैसे बड़े बैंक का नाम, दूसरी तरफ उसी बैंक की CEO द्वारा अपने ही पद का दुरुपयोग... ये उस भरोसे को चोट पहुंचाता है जो एक आम नागरिक बैंकिंग संस्थाओं पर करता है।
फिलहाल जाँच जारी है…
ED अब इस केस में और भी बिजनेस ट्रांजेक्शंस को खंगाल रही है। साथ ही ये भी जांच चल रही है कि क्या इस पूरे मामले में और कोई बैंक अधिकारी या बाहरी कारोबारी साझीदार शामिल था।
चंदा कोचर की ये गिरावट कॉर्पोरेट जगत में एक बड़ी चेतावनी मानी जा रही है, कि जितनी ऊंचाई, उतनी जिम्मेदारी भी।
आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ।
Comments (0)
No comments yet. Be the first to comment!