बिहार में इस वक्त SIR यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन का आखिरी और सबसे अहम फेज चल रहा है। 7.9 करोड़ से ज्यादा रजिस्टर्ड वोटर्स की लिस्ट को सुधारने और अपडेट करने का काम तेज़ी से हो रहा है, लेकिन इस पूरे प्रोसेस के दौरान जो आंकड़े सामने आए हैं, वो काफी चौंकाने वाले हैं।जहां अब तक 96 फीसदी से ज्यादा वोटर्स ने अपना फॉर्म भरकर प्रोसेस पूरा कर लिया है, वहीं करीब 42 लाख वोटर्स ऐसे भी हैं जिनकी जानकारी या तो अधूरी है या बिल्कुल संदिग्ध। क्या है मामला, आइये ज़रा विस्तार से आपको बताते हैं!11 हजार वोटर्स का कोई पता नहीं!सबसे बड़ी और हैरान कर देने वाली बात ये है कि करीब 11,000 वोटर्स ऐसे हैं जो नॉट ट्रेसेबल हैं यानी दर्ज पते पर मौजूद नहीं हैं।चुनाव आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, जब बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) इन लोगों के घर पते पर पहुंचे, तो ना तो वहां कोई व्यक्ति मिला और ना ही पड़ोसियों को उनके बारे में कुछ जानकारी थी।कुछ मामलों में तो ऐसे भी पते सामने आए जहां मकान ही मौजूद नहीं था। अब इस पर सवाल उठने लगे हैं कि आखिर ये नाम वोटर लिस्ट में आए कैसे?फर्जी वोटर कार्ड और विदेशी घुसपैठ?सूत्रों का कहना है कि ये ‘गायब वोटर्स’ दरअसल फर्जी तरीके से बनाए गए वोटर्स हो सकते हैं, जिनका कोई असली अस्तित्व नहीं है।टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव आयोग को शक है कि इनमें से कुछ बांग्लादेशी या रोहिंग्या प्रवासी हो सकते हैं, जो गैरकानूनी तरीके से दूसरे राज्यों में रह रहे हैं, लेकिन बिहार की वोटर लिस्ट में नाम जुड़वा चुके हैं।एक अधिकारी ने तो ये भी कहा कि इनमें से कई ने शायद सरकारी सिस्टम में सेंध लगाकर अपने नाम जुड़वा लिए हों ताकि चुनाव में फर्जी वोट डाले जा सकें। जो कि सीधे तौर पर भारत के लोकतंत्र के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है।42 लाख वोटर्स पर भी शक की सुईइतना ही नहीं, रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि करीब 42 लाख वोटर्स, यानी कुल वोटर्स का 5.3%, BLO की तीन बार की विज़िट के बावजूद अपने पते पर नहीं पाए गए। इन 42 लाख वोटर्स की स्थिति कुछ इस तरह है:14.3 लाख वोटर्स संभवतः अब इस दुनिया में नहीं हैं यानी मर चुके हैं19.7 लाख वोटर्स शायद स्थायी रूप से दूसरी जगह शिफ्ट हो चुके हैं7.5 लाख वोटर्स ऐसे हैं जिनके नाम कई जगहों पर दर्ज हैंऔर 11 हजार वोटर्स पूरी तरह लापता हैं, जिनका कोई अता-पता नहीं मिलामतलब साफ है कि बिहार की वोटर लिस्ट में बड़ी गड़बड़ है, जिसे अब फिक्स करने की कोशिश की जा रही है।चुनाव आयोग की चिंता और प्लानचुनाव आयोग ने अब तक दावा किया है कि करीब 95.92% वोटर्स का फॉर्म प्रोसेस हो चुका है, लेकिन इन बची हुई 5.3% वोटर्स की वजह से पूरा सिस्टम सवालों के घेरे में आ गया है।एक अधिकारी ने कहा कि अगर ये फर्जी नाम नहीं हटाए गए, तो ये भविष्य के चुनावों में फर्जी वोटिंग का रास्ता खोल सकते हैं, और जब इन फर्जी नामों को विधानसभा या लोकसभा क्षेत्रों में बांट दिया जाता है, तो ये आंकड़े चुनाव के नतीजों को पलट सकते हैं।सिर्फ 5 दिन बचे हैं, वक्त की रेस शुरूअब जब SIR प्रक्रिया खत्म होने में केवल 5 दिन बचे हैं, आयोग की कोशिश है कि इस दौरान बचे हुए करीब 32 लाख वोटर्स को ड्राफ्ट लिस्ट में जोड़ा जाए या हटाया जाए, ताकि फाइनल लिस्ट एकदम सटीक हो।आपको बता दें कि इस पूरे रिवीजन का मकसद सिर्फ लिस्ट अपडेट करना नहीं, बल्कि चुनावी ईमानदारी को पक्का करना है। अगर फर्जी नाम हटे नहीं, तो आने वाले चुनावों में जनता का भरोसा हिल सकता है।क्या हो सकता है असर?चुनाव विशेषज्ञों का मानना है कि 42 लाख वोटर्स, अगर अलग-अलग सीटों में फैले हों, तो कई सीटों पर हार-जीत का फर्क सिर्फ इनकी वजह से तय हो सकता है, और अगर इनमें से कुछ हजार भी फर्जी वोटिंग में इस्तेमाल हो गए, तो चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठेंगे।इसलिए इन बचे हुए 5 दिनों में आयोग पर एक बड़ी जिम्मेदारी है, हर नाम की सही जांच करके तय करना कि कौन असली है और कौन फर्जी।आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ। Comments (0) Post Comment